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स्वर्णिंम इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है ये किला, जहां आज भी सुनाई देती है मीरा के घुंघरुओं की आवाज!

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Published : Aug 12, 2019, 2:21 PM IST

हिमाचल की मनमोहक पहाड़ियों पर स्थित नूरपुर कस्बा बेहद ही खूबसूरत है और इस कस्बे का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र है, यहां की एक पहाड़ी पर बना नूरपुर किला.

nurpur fort

हिमाचल के जिला कांगड़ा का स्थित नूरपुर किला बेहद अद्भुत है. क्षतिग्रस्त होने के बावजूद भी किले की कला शैली और इतिहास अपने आप में बेहद रोचक है. इस किले का निर्माण राजा बासु के समय में 1580 से 1613 के मध्य हुआ था. किले में कई राजाओं ने शासन किया और किले का प्रवेश द्वार भी अपने आप में बेहद आकर्षण का केंद्र है.

nurpur fort
नूरपुर किला

साल 1905 में कांगड़ा में आए भूकंप से इस किले का काफी भाग क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन अब भी किले की दीवारें और कला शैली के आगे आधुनिक कला शैली फीकी ही नजर आती है.

nurpur fort
नूरपुर किला

नूरपुर के इस किले में जहांगीर ने भी कुछ समय राज किया था. उस समय जहांगीर की पत्नी नूरजहां भी यहां आई थी. इसके बाद ही इस स्थान का नाम नूरपुर पड़ा था, जबकि इस स्थान को पहले धमड़ी कहा जाता था. किले की दीवारें अब भी इतिहास की याद दिलाती है.

nurpur fort
नूरपुर किले में बृज स्वामी मंदिर

नूरपुर किले के अंतिम शासक राजा जगत सिंह रहे. उनके समय में ही यहां बृज स्वामी मंदिर की स्थापना हुई. इस मंदिर में भगवान कृष्ण की बेहद मनमोहक प्रतिमा और साथ में मीरा की मूर्ति है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में अब भी रात को मीरा के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है.

nurpur fort
नूरपुर किला

इस देवस्थल के पीछे की कहानी उतनी ही रोचक है जितना की खुद ये मंदिर. सन 1620 से पहले इस जगह पर राज सिंहासन हुआ करता था और ये जगह दरबारे खास थी. अलौकिक मूर्तियों की स्थापना के साथ साथ राजा जगत सिंह ने इन दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं का चित्रण भी करवाया.

nurpur fort
नूरपुर किला

वहीं, मौजूदा समय में 2001 में आर्कियालोजिकल विभाग ने इस किले को अपने अधीन कर लिया है. जिसके बाद काली माता मंदिर का पार्ट ठीक किया और किले में स्थित कुएं, तालाब को संरक्षित किया गया.

नूरपुर किला

ये भी पढ़ें - हिमाचल के किले: देश की सबसे पुरानी धरोहर कांगड़ा किला, महाभारत में भी है इसका उल्लेख

हिमाचल के जिला कांगड़ा का स्थित नूरपुर किला बेहद अद्भुत है. क्षतिग्रस्त होने के बावजूद भी किले की कला शैली और इतिहास अपने आप में बेहद रोचक है. इस किले का निर्माण राजा बासु के समय में 1580 से 1613 के मध्य हुआ था. किले में कई राजाओं ने शासन किया और किले का प्रवेश द्वार भी अपने आप में बेहद आकर्षण का केंद्र है.

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नूरपुर किला

साल 1905 में कांगड़ा में आए भूकंप से इस किले का काफी भाग क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन अब भी किले की दीवारें और कला शैली के आगे आधुनिक कला शैली फीकी ही नजर आती है.

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नूरपुर किला

नूरपुर के इस किले में जहांगीर ने भी कुछ समय राज किया था. उस समय जहांगीर की पत्नी नूरजहां भी यहां आई थी. इसके बाद ही इस स्थान का नाम नूरपुर पड़ा था, जबकि इस स्थान को पहले धमड़ी कहा जाता था. किले की दीवारें अब भी इतिहास की याद दिलाती है.

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नूरपुर किले में बृज स्वामी मंदिर

नूरपुर किले के अंतिम शासक राजा जगत सिंह रहे. उनके समय में ही यहां बृज स्वामी मंदिर की स्थापना हुई. इस मंदिर में भगवान कृष्ण की बेहद मनमोहक प्रतिमा और साथ में मीरा की मूर्ति है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में अब भी रात को मीरा के घुंघरुओं की आवाज सुनाई देती है.

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नूरपुर किला

इस देवस्थल के पीछे की कहानी उतनी ही रोचक है जितना की खुद ये मंदिर. सन 1620 से पहले इस जगह पर राज सिंहासन हुआ करता था और ये जगह दरबारे खास थी. अलौकिक मूर्तियों की स्थापना के साथ साथ राजा जगत सिंह ने इन दीवारों पर भगवान श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं का चित्रण भी करवाया.

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नूरपुर किला

वहीं, मौजूदा समय में 2001 में आर्कियालोजिकल विभाग ने इस किले को अपने अधीन कर लिया है. जिसके बाद काली माता मंदिर का पार्ट ठीक किया और किले में स्थित कुएं, तालाब को संरक्षित किया गया.

नूरपुर किला

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Intro:कुल्लू
कुल्लू में प्रतिबंध के बावजूद करवाई जा रही पैराग्लाइडिंगBody:
बरसात में हादसों के खतरों को देखते हुए प्रशासन व विभाग ने साहसिक गतिविधियों पैराग्लाइडिंग, रिवर राफ्टिंग आदि पर 15 सितंबर तक अधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगाया है। प्रशासन और विभाग की रोक के बावजूद कुल्लू जिले के मनाली में पैराग्लाइडिंग करवाई जा रही जिससे हादसे पेश आ रहे है। प्रशासन के आदेशों की परवाह न कर पैराग्लाइडर करवाने वाली एजेंसियां पैसा कमाने में जुटी हैं। एजेंसियां चंद पैसों के लिए पर्यटकों की जान पर भारी पड़ रही है। ऊझी घाटी में शनिवार को एक पैराग्लाइडर क्रैश हो गया। पैराग्लाइडर क्रैश होने से इसमें एक पर्यटक की मौत हो गई, जबकि हादसे में पायलट की हालत गंभीर बनी हुई है। पैराग्लाइडर का यह हादसा पर्यटन नगरी मनाली के शनाग में हुआ। अब जब प्रशासन की ओर से पैराग्लाइडिंग और रिवर राफ्टिंग पर पाबंदी लगाई गई है तो किसकी इजाजत से पैराग्लाइडिंग करवाई जा रही है। इस पर सवाल उठ रहे हैं। यह विधानसभा क्षेत्र वन, परिवहन, युवा सेवाएं खेल मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर का है। वन मंत्री के विस क्षेत्र में ही में पैराग्लाइडिंग करने वाले सरकार व प्रशासन के आदेशों को मानने को तैयार नहीं है। बरसात के मौसम में ब्यास नदी का जलस्तर काफी बढ़ जाता है। इसमें रिवर राफ्टिंग व अन्य साहसिक गतिविधियां खतरे से खाली नहीं होती हैं। बरसात में कुल्लू घाटी में पैराग्लाइडिंग भी काफी खतरनाक है। ऐसे में हर वर्ष कुल्लू जिले में 15 जुलाई से 15 सितंबर तक इन साहसिक गतिविधियों पर पूरी तरह रोक लगा दी जाती है। लेकिन इस रोक का असर कुल्लू जिले में नहीं हुआ है।
Conclusion:बॉक्स
15 सितंबर तक साहसिक गतिविधियों पर पाबंदी है। आदेशों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। जिस जगह पर हादसा हुआ है, वहां का मौका कर इसकी भी रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
- बीसी नेगी, जिला पर्यटन विकास अधिकारी
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