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हिमाचल में पहली बार टांडा मेडिकल कॉलेज में हुआ कैडेवरिक ऑर्गन डोनेशन, ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया

हिमाचल के इतिहास में पहली बार कैडेवरिक ऑर्गन डोनेशन हुआ. इस इतिहास का गवाह टांडा मेडिकल (Organ donation process in Tanda Medical College)कॉलेज बना, जहां रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी की ओर से ऑर्गन रिट्रीवल हुआ.

Organ donation process in Tanda Medical College
ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया
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Published : Mar 12, 2022, 9:43 PM IST

धर्मशाला: दुनिया में सबसे बड़ा दान जीवनदान माना जाता है. किसी भी तरीके से अगर किसी को जीवन दिया जा सके तो उससे बड़ा काम कुछ नहीं हो सकता. किसी मृत व्यक्ति का ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अपना अंग दान करके दूसरों को नए जीवन की सौगात दे सकता है. कुछ ऐसा ही कांगड़ा जिले के टांडा मेडिकल कॉलेज में हुआ. हिमाचल के इतिहास में पहली बार कैडेवरिक ऑर्गन डोनेशन हुआ. इस इतिहास का गवाह टांडा मेडिकल (Organ donation process in Tanda Medical College)कॉलेज बना, जहां रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी की ओर से ऑर्गन रिट्रीवल हुआ.

कांगड़ा जिले का रहने वाला 18 वर्षीय विशाल 10 मार्च को सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया था. गंभीर अवस्था में उसे टांडा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. हेड इंजरी होने के कारण मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी. परिजनों ने उसे लुधियाना स्थित निजी अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए शिफ्ट किया. वहां पर मरीज का डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया.मरीज के जीवित ना रहने की निराशा के कारण परिजन उसे वापस टांडा मेडिकल कॉलेज लेकर आ गए.

अस्पताल में मरीज आईसीयू में दाखिल रहा, आगामी जांच में अस्पताल की विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने उसके ब्रेन डेड होने की पुष्टि कर दी. रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राकेश चौहान सहित अन्य डॉक्टरों ने परिजनों को अंगदान के महत्व के बारे में बताया. परिजनों ने हिम्मत दिखाते हुए मरीज के पिता व अन्य अंगदान करने के लिए राजी हो गए. ऑर्गन मैच के लिए ब्लड के सैंपल दोपहर करीब 12.50 बजे धर्मशाला से फ्लाइट के माध्यम से पीजीआई चंडीगढ़ भेजे गए.

इसी बीच अंग रिट्रीव करने के लिए पीजीआई चंडीगढ़ से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम टांडा अस्पताल पहुंची पहुंच गई. शनिवार दोपहर बाद करीब 3:00 बजे रिट्रीवर प्रक्रिया शुरू हुई ,जोंकि करीब 2 से ढाई घंटे चली. इस दौरान मरीज के शरीर से दो किडनी और 2 कॉर्निया निकाले गए. ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से कुछ ही घंटों के भीतर किडनी से भरे कंटेनर्स को वाहन के जरिए पीजीआई पहुंचाया गया.डॉक्टर राकेश चौहान ने बताया कि परिजनों की सहमति के बिना अंगदान का यह महान दान संभव ना हो पाता.उन्होंने बताया कि देशभर में लाखों मरीज अंग ना मिलने के कारण मौत के मुंह में चले जाते ,लेकिन ऐसे मामले वरदान साबित होते है. उन्होंने बताया कि दोनों किडनी ट्रांसप्लांट के लिए पीजीआई भेज दी गई. वहीं, दो कॉर्निया को अस्पताल में 2 जरूरतमंद मरीजों में ट्रांसप्लांट किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के दौरान अस्पताल प्रशासन के अलावा एनेस्थीसिया सहित अन्य विभागों के आपसी समन्वय से ऑर्गन रिट्रीवाल सफलतापूर्वक हो सका. उन्होंने कहा कि सोटो हिमाचल में भी प्रक्रिया को पूरा करने में पूरा सहयोग दिया .वहीं, स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन हिमाचल प्रदेश के नोडल ऑफिसर डॉ .पुनीत महाजन ने कहां की टांडा मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्टरों सहित अन्य टीम की कड़ी मेहनत के चलते हिमाचल में पहली बार ब्रेन डेड मरीज से अंगदान संभव हुआ.प्रदेश के आईजीएमसी अस्पताल में साल 2021 से स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन यानी सोटो इकाई स्थापित की गई, जोंकि लोगों में लगातार अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही है. यह इकाई नेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के तहत कार्य करती है.

पहली बार बना ग्रीन कॉरिडोर: पुलिस प्रशासन के सहयोग से टांडा मेडिकल कॉलेज से लेकर पीजीआई चंडीगढ़ तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया. टांडा मेडिकल कॉलेज में ऑर्गन रिट्रीवेल के बाद कांगड़ा, उना, रोपड़ मोहाली और चंडीगढ़ पुलिस प्रशासन के सहयोग से ऑर्गन ले जाने वाले वाहन को प्राथमिकता पर आगे भेजा गया ,ताकि दान किए गए अंगों को कम से कम समय में पीजीआई पहुंचाया जा सके.
यह रहे मौजूद: पीजीआई से एचओडी रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी डॉ. आशीष शर्मा, डॉ. सर्बप्रीत, डॉ .विवेक ठाकुर, डॉ. पारुल गुप्ता और नर्सिंग ऑफिसर शीनम मौजूद रह. वहीं, टांडा मेडिकल कॉलेज के एमएस डॉ .मोहन सिंह, प्रिंसिपल डॉ. भानु अवस्थी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर डॉ .अरविंद राणा सहित अन्य डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद रहा.

ये भी पढ़ें :हिमाचल प्रदेश में डेढ़ लाख से ज्यादा किसान कर रहे नेचुरल फार्मिंग, विपक्ष का आरोप केवल आंकड़ों तक सीमित सरकार

धर्मशाला: दुनिया में सबसे बड़ा दान जीवनदान माना जाता है. किसी भी तरीके से अगर किसी को जीवन दिया जा सके तो उससे बड़ा काम कुछ नहीं हो सकता. किसी मृत व्यक्ति का ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अपना अंग दान करके दूसरों को नए जीवन की सौगात दे सकता है. कुछ ऐसा ही कांगड़ा जिले के टांडा मेडिकल कॉलेज में हुआ. हिमाचल के इतिहास में पहली बार कैडेवरिक ऑर्गन डोनेशन हुआ. इस इतिहास का गवाह टांडा मेडिकल (Organ donation process in Tanda Medical College)कॉलेज बना, जहां रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी की ओर से ऑर्गन रिट्रीवल हुआ.

कांगड़ा जिले का रहने वाला 18 वर्षीय विशाल 10 मार्च को सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गया था. गंभीर अवस्था में उसे टांडा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. हेड इंजरी होने के कारण मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी. परिजनों ने उसे लुधियाना स्थित निजी अस्पताल में बेहतर इलाज के लिए शिफ्ट किया. वहां पर मरीज का डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया.मरीज के जीवित ना रहने की निराशा के कारण परिजन उसे वापस टांडा मेडिकल कॉलेज लेकर आ गए.

अस्पताल में मरीज आईसीयू में दाखिल रहा, आगामी जांच में अस्पताल की विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम ने उसके ब्रेन डेड होने की पुष्टि कर दी. रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राकेश चौहान सहित अन्य डॉक्टरों ने परिजनों को अंगदान के महत्व के बारे में बताया. परिजनों ने हिम्मत दिखाते हुए मरीज के पिता व अन्य अंगदान करने के लिए राजी हो गए. ऑर्गन मैच के लिए ब्लड के सैंपल दोपहर करीब 12.50 बजे धर्मशाला से फ्लाइट के माध्यम से पीजीआई चंडीगढ़ भेजे गए.

इसी बीच अंग रिट्रीव करने के लिए पीजीआई चंडीगढ़ से विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम टांडा अस्पताल पहुंची पहुंच गई. शनिवार दोपहर बाद करीब 3:00 बजे रिट्रीवर प्रक्रिया शुरू हुई ,जोंकि करीब 2 से ढाई घंटे चली. इस दौरान मरीज के शरीर से दो किडनी और 2 कॉर्निया निकाले गए. ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से कुछ ही घंटों के भीतर किडनी से भरे कंटेनर्स को वाहन के जरिए पीजीआई पहुंचाया गया.डॉक्टर राकेश चौहान ने बताया कि परिजनों की सहमति के बिना अंगदान का यह महान दान संभव ना हो पाता.उन्होंने बताया कि देशभर में लाखों मरीज अंग ना मिलने के कारण मौत के मुंह में चले जाते ,लेकिन ऐसे मामले वरदान साबित होते है. उन्होंने बताया कि दोनों किडनी ट्रांसप्लांट के लिए पीजीआई भेज दी गई. वहीं, दो कॉर्निया को अस्पताल में 2 जरूरतमंद मरीजों में ट्रांसप्लांट किया जाएगा.

उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया के दौरान अस्पताल प्रशासन के अलावा एनेस्थीसिया सहित अन्य विभागों के आपसी समन्वय से ऑर्गन रिट्रीवाल सफलतापूर्वक हो सका. उन्होंने कहा कि सोटो हिमाचल में भी प्रक्रिया को पूरा करने में पूरा सहयोग दिया .वहीं, स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन हिमाचल प्रदेश के नोडल ऑफिसर डॉ .पुनीत महाजन ने कहां की टांडा मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञ डॉक्टरों सहित अन्य टीम की कड़ी मेहनत के चलते हिमाचल में पहली बार ब्रेन डेड मरीज से अंगदान संभव हुआ.प्रदेश के आईजीएमसी अस्पताल में साल 2021 से स्टेट ऑर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन यानी सोटो इकाई स्थापित की गई, जोंकि लोगों में लगातार अंगदान के प्रति जागरूकता फैलाने का काम कर रही है. यह इकाई नेशनल ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के तहत कार्य करती है.

पहली बार बना ग्रीन कॉरिडोर: पुलिस प्रशासन के सहयोग से टांडा मेडिकल कॉलेज से लेकर पीजीआई चंडीगढ़ तक ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया. टांडा मेडिकल कॉलेज में ऑर्गन रिट्रीवेल के बाद कांगड़ा, उना, रोपड़ मोहाली और चंडीगढ़ पुलिस प्रशासन के सहयोग से ऑर्गन ले जाने वाले वाहन को प्राथमिकता पर आगे भेजा गया ,ताकि दान किए गए अंगों को कम से कम समय में पीजीआई पहुंचाया जा सके.
यह रहे मौजूद: पीजीआई से एचओडी रीनल ट्रांसप्लांट सर्जरी डॉ. आशीष शर्मा, डॉ. सर्बप्रीत, डॉ .विवेक ठाकुर, डॉ. पारुल गुप्ता और नर्सिंग ऑफिसर शीनम मौजूद रह. वहीं, टांडा मेडिकल कॉलेज के एमएस डॉ .मोहन सिंह, प्रिंसिपल डॉ. भानु अवस्थी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर डॉ .अरविंद राणा सहित अन्य डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ मौजूद रहा.

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