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स्वतंत्रता सेनानी यशपाल के स्मारक बनाने की मांग, आजादी की लड़ाई में भगत सिंह के थे साथी - कहानीकार और उपन्यासकार यशपाल

सरदार भगत सिंह के साथी रहे हिमाचल के महान क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का जिला स्तर पर स्मारक बनाने की मांग उठ रही है ताकि युवा पीढ़ी उनके बारे में जान सके. हालांकि नादौन में यशपाल साहित्य सदन भवन का निर्माण भी करवाया गया है, लेकिन जिला स्तर पर इस महान स्वतंत्रता सेनानी की यादगार में कोई ऐसा संस्थान अथवा स्मारक नहीं बना है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके योगदान को जान सकें.

Freedom fighter Yashpal
स्वतंत्रता सेनानी यशपाल
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Published : Dec 3, 2019, 6:36 PM IST

हमीरपुर: देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले और सरदार भगत सिंह के साथी रहे हिमाचल के महान क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का जिला स्तर पर स्मारक बनाने की मांग उठ रही है ताकि युवा पीढ़ी उनके बारे में जान सके. हालांकि नादौन में यशपाल साहित्य सदन भवन का निर्माण भी करवाया गया है, लेकिन जिला स्तर पर इस महान स्वतंत्रता सेनानी की यादगार में कोई ऐसा संस्थान अथवा स्मारक नहीं बना है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके योगदान को जान सकें.

कहानीकार और उपन्यासकार यशपाल को भारत सरकार ने वर्ष 1970 में पद्मभूषण से नवाजा था. उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया है. इस बार भी विभाग धर्मशाला में मंगलवार को उनकी राज्यस्तरीय जयंती समारोह मना रहा है.

वीडियो.

यशपाल के बेटे कनाडा निवासी आनंद पिछले कई सालों से जिला प्रशासन और सरकार से अपने पिता के पैतृक गांव का राजस्व रिकॉर्ड लेने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा ने बताया कि ये जिला के लिए गर्व का विषय है कि महान स्वतंत्रता सेनानी यशपाल हमीरपुर के रहने वाले थे. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान सकें इसके लिए जिला स्तर पर उनका स्मारक बनाया जाना चाहिए.

यशपाल को 28 वर्ष की उम्र में सुनाई गई थी आजीवन कारावास की सजा

यशपाल को जब आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, तब वह महज 28 वर्ष के थे. उनका जन्म 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था. उनके पूर्वज हमीरपुर के भूंपल गांव के थे. दादा गरडूराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते और भोरंज तहसील में टिक्कर भरियां और खर्वारियां के निवासी थे.

पिता हीरालाल दुकानदार और तहसील के हरकारे थे. वह जिला महासू के तहत रियासत अर्की के चांदपुर ग्राम से हमीरपुर में शिफ्ट हुए थे. वर्ष 1937 में यशपाल को जेल से मुक्त तो कर दिया गया, लेकिन उनके पंजाब प्रांत जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.लखनऊ जेल से रिहाई के बाद यशपाल ने संयुक्त प्रांत की राजधानी लखनऊ में ही बस जाने का निर्णय लिया था. यशपाल का निधन 26 दिसंबर, 1976 को अपने संस्मरणों सिंहावलोकन का चौथा भाग लिखते समय हुआ था.

ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया

यशपाल ने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लिया था. नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान उनकी मित्रता सरदार भगत सिंह से हुई. यशपाल ने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ आजादी के आंदोलनों में भाग लिया. 1929 में उन्होंने ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया था.

लाहौर में बोर्सटल जेल से उन्होंने भगत सिंह को मुक्त कराने का भी प्रयास किया था. वर्ष 1932 में इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय पिस्तौल में गोलियां समाप्त होने पर यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें पुलिस से मुठभेड़ करने के लिए अंग्रेजी हकुमुत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

हमीरपुर: देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले और सरदार भगत सिंह के साथी रहे हिमाचल के महान क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का जिला स्तर पर स्मारक बनाने की मांग उठ रही है ताकि युवा पीढ़ी उनके बारे में जान सके. हालांकि नादौन में यशपाल साहित्य सदन भवन का निर्माण भी करवाया गया है, लेकिन जिला स्तर पर इस महान स्वतंत्रता सेनानी की यादगार में कोई ऐसा संस्थान अथवा स्मारक नहीं बना है, जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके योगदान को जान सकें.

कहानीकार और उपन्यासकार यशपाल को भारत सरकार ने वर्ष 1970 में पद्मभूषण से नवाजा था. उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया है. इस बार भी विभाग धर्मशाला में मंगलवार को उनकी राज्यस्तरीय जयंती समारोह मना रहा है.

वीडियो.

यशपाल के बेटे कनाडा निवासी आनंद पिछले कई सालों से जिला प्रशासन और सरकार से अपने पिता के पैतृक गांव का राजस्व रिकॉर्ड लेने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है. वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा ने बताया कि ये जिला के लिए गर्व का विषय है कि महान स्वतंत्रता सेनानी यशपाल हमीरपुर के रहने वाले थे. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान सकें इसके लिए जिला स्तर पर उनका स्मारक बनाया जाना चाहिए.

यशपाल को 28 वर्ष की उम्र में सुनाई गई थी आजीवन कारावास की सजा

यशपाल को जब आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, तब वह महज 28 वर्ष के थे. उनका जन्म 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था. उनके पूर्वज हमीरपुर के भूंपल गांव के थे. दादा गरडूराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते और भोरंज तहसील में टिक्कर भरियां और खर्वारियां के निवासी थे.

पिता हीरालाल दुकानदार और तहसील के हरकारे थे. वह जिला महासू के तहत रियासत अर्की के चांदपुर ग्राम से हमीरपुर में शिफ्ट हुए थे. वर्ष 1937 में यशपाल को जेल से मुक्त तो कर दिया गया, लेकिन उनके पंजाब प्रांत जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.लखनऊ जेल से रिहाई के बाद यशपाल ने संयुक्त प्रांत की राजधानी लखनऊ में ही बस जाने का निर्णय लिया था. यशपाल का निधन 26 दिसंबर, 1976 को अपने संस्मरणों सिंहावलोकन का चौथा भाग लिखते समय हुआ था.

ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया

यशपाल ने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लिया था. नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान उनकी मित्रता सरदार भगत सिंह से हुई. यशपाल ने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ आजादी के आंदोलनों में भाग लिया. 1929 में उन्होंने ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया था.

लाहौर में बोर्सटल जेल से उन्होंने भगत सिंह को मुक्त कराने का भी प्रयास किया था. वर्ष 1932 में इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय पिस्तौल में गोलियां समाप्त होने पर यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें पुलिस से मुठभेड़ करने के लिए अंग्रेजी हकुमुत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.

Intro:स्वतंत्रता सेनानी यशपाल का स्मारक जिला स्तर पर बनाने की उठी मांग, आजादी की लड़ाई में सरदार भगत सिंह के रहे थे साथी
हमीरपुर.
देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले हिमाचल का गौरव सरदार भगत सिंह के साथी रहे महान क्रांतिकारी और लेखक यशपाल का जिला स्तर पर स्मारक बनाने की मांग उठी है ताकि युवा पीढ़ी उनके बारे में जान सके . हालांकि नादौन में ही यशपाल साहित्य सदन भवन का निर्माण भी करवाया है। लेकिन जिला स्तर पर इस महान स्वतंत्रता सेनानी की यादगार में कोई ऐसा संस्थान अथवा स्मारक नहीं बना है जिससे आने वाली पीढ़ियां उनके योगदान को जान सकें.
बता दें कि कहानीकार और उपन्यासकार यशपाल को भारत सरकार ने वर्ष 1970 में पद्मभूषण से नवाजा। इनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया। इस बार भी विभाग धर्मशाला में मंगलवार को उनकी राज्यस्तरीय जयंती समारोह मना रहा है। यशपाल के पुत्र कनाडा निवासी आनंद पिछले कई सालों से जिला प्रशासन और सरकार से अपने पिता के पैतृक गांव का राजस्व रिकॉर्ड लेने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है।




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वरिष्ठ पत्रकार सुशील शर्मा ने कहा कि यह जिला के लिए गर्व का विषय है कि महान स्वतंत्रता सेनानी यशपाल हमीरपुर के रहने वाले थे. उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियां उनके बारे में जान सके इसके लिए जिला स्तर पर उनका स्मारक बनाया जाना चाहिए.


Conclusion:
यशपाल को 28 वर्ष की उम्र में सुनाई थी आजीवन कारावास की सजा
 यशपाल को जब आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, तब वह सिर्फ 28 वर्ष के थे। उनका जन्म 3 दिसंबर 1903 को फिरोजपुर (पंजाब) में हुआ था। उनके पूर्वज हमीरपुर के भूंपल गांव के थे। दादा गरडूराम विभिन्न स्थानों पर व्यापार करते तथा भोरंज तहसील में टिक्कर भरियां और खर्वारियां के निवासी थे।
पिता हीरालाल दुकानदार तथा तहसील के हरकारे थे। वह जिला महासू के अंतर्गत रियासत अर्की के चांदपुर ग्राम से हमीरपुर में शिफ्ट हुए थे। वर्ष 1937 में यशपाल को जेल से मुक्त तो कर दिया गया। उनके पंजाब प्रांत जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लखनऊ जेल से रिहाई के बाद यशपाल ने संयुक्त प्रांत की राजधानी लखनऊ में ही बस जाने का निर्णय ले लिया था। यशपाल का निधन 26 दिसंबर, 1976 को अपने संस्मरणों सिंहावलोकन का चौथा भाग लिखते समय हुआ था।

ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया

यशपाल ने महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। नेशनल कॉलेज लाहौर में पढ़ाई के दौरान उनकी मित्रता सरदार भगत सिंह से हुई। यशपाल ने भगत सिंह और चंद्रशेखर आजाद के साथ आजादी के आंदोलनों में भाग लिया। कई जगह बम बनाने के लिए गुप्त रूप से विस्फोटक तैयार किए।

1929 में उन्होंने ब्रिटिश वाइसराय लॉर्ड इरविन की रेलगाड़ी के नीचे बम विस्फोट किया। लाहौर में बोर्सटल जेल से भगत सिंह को मुक्त कराने का प्रयत्न या। 1932 में इलाहाबाद में पुलिस से मुठभेड़ के समय पिस्तौल में गोलियां समाप्त होने पर यशपाल को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें केवल सशस्त्र मुठभेड़ के दंड के रूप में आजीवन कारावास दिया गया।  

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