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जमीनी स्तर पर विफल सरकार की कागजी घोषणाएंः राजेंद्र राणा

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Published : Jul 8, 2020, 9:36 PM IST

राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने प्रेस में जारी बयान में कहा कि देश और प्रदेश की राजनीति में निरंतर बढ़ रहे राजनीतिक दखल और दबाव से आम आदमी में तनाव पैदा हो रहा है. सरकार की देखादेखी में प्रशासनशाही सर्वशक्तिमान की भूमिका में आम नागरिकों के हितों से रोज खिलवाड़ कर रही है, जिसको लेकर पूरे देश और प्रदेश में आक्रोश फैल रहा है.

Rajendra rana
Rajendra rana

सुजानपुर/हमीरपुर: राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने प्रेस में जारी बयान में कहा कि देश और प्रदेश की राजनीति में निरंतर बढ़ रहे राजनीतिक दखल और दबाव से आम आदमी में तनाव पैदा हो रहा है. आम नागरिक सरकार तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहा है और न ही उससे सुनने को कोई राजी है.

पूर्व मंत्री ने कहा कि आर्थिक संकट से जूझ रहे बेरोजगारों के परिवार सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार राहत देने की बजाय महामारी व मंहगाई के चंगुल में फंसी जनता के लिए हर रोज नई आफत तैयार कर रही है.

लॉकडाउन के बाद देश के करोड़ों मजदूर व कामगार गांवों की ओर लौट आए हैं, लेकिन सरकार के पास उनके लिए कोई कारगर योजना नहीं है.सरकार की राहतों की कागजी बौछार पर रोज मंहगाई की मार पड़ रही है.

सरकार की देखादेखी में प्रशासनशाही सर्वशक्तिमान की भूमिका में आम नागरिकों के हितों से रोज खिलवाड़ कर रही है, जिसको लेकर पूरे देश और प्रदेश में आक्रोश फैल रहा है. आलम यह है कि सत्तासीन पार्टी के पास आम नागरिकों के सवालों का ईमानदारी से कोई जवाब नहीं है. कोरी घोषणाओं व जुमलों के साथ कागजी आंकड़ों से जनता को संतुष्ट करवाने का असफल प्रयास किया जा रहा है.

राणा ने कहा कि सरकार को चाहिए कि नौकरी खोने के बाद गांवों की ओर लौट चुके बेरोजगारों को उन्हीं के क्षेत्रों में रोजगार मुहैया करवाया जाए. काम मिलने से जहां आम आदमी की जेब में पैसा आएगा, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों का प्राथमिक मूलभूत विकास भी संभव हो पाएगा. सत्ता के अहम में विपक्ष की बात को नजरअंदाज करना आम आदमी के हितों से कुठारघात होगा. सरकार को विपक्ष के सुझावों व जनता की शिकायतों को गंभीरता से सुनना समझना व उन पर अमल करना चाहिए.

राणा ने कहा है कि कोरोना के संकट के बीच नौकरी गंवा चुके प्रदेश के लाखों बेरोजगार लगातार उनसे मदद की गुहार लगा रहे हैं, जिसका सीधा मतलब यह है कि सरकार की कागजी घोषणाएं जमीन पर कोई असर नहीं दिखा पा रही हैं. हकीकत में सरकार गाइडलाइन लागू नहीं कर रही है, जिस कारण बेरोजगारी व आर्थिक महामारी में फंसे प्रदेश के लाखों बेरोजगारों को जीवन यापन के लाले पड़ चुके हैं.

सुजानपुर/हमीरपुर: राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने प्रेस में जारी बयान में कहा कि देश और प्रदेश की राजनीति में निरंतर बढ़ रहे राजनीतिक दखल और दबाव से आम आदमी में तनाव पैदा हो रहा है. आम नागरिक सरकार तक अपनी बात नहीं पहुंचा पा रहा है और न ही उससे सुनने को कोई राजी है.

पूर्व मंत्री ने कहा कि आर्थिक संकट से जूझ रहे बेरोजगारों के परिवार सरकार से राहत की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार राहत देने की बजाय महामारी व मंहगाई के चंगुल में फंसी जनता के लिए हर रोज नई आफत तैयार कर रही है.

लॉकडाउन के बाद देश के करोड़ों मजदूर व कामगार गांवों की ओर लौट आए हैं, लेकिन सरकार के पास उनके लिए कोई कारगर योजना नहीं है.सरकार की राहतों की कागजी बौछार पर रोज मंहगाई की मार पड़ रही है.

सरकार की देखादेखी में प्रशासनशाही सर्वशक्तिमान की भूमिका में आम नागरिकों के हितों से रोज खिलवाड़ कर रही है, जिसको लेकर पूरे देश और प्रदेश में आक्रोश फैल रहा है. आलम यह है कि सत्तासीन पार्टी के पास आम नागरिकों के सवालों का ईमानदारी से कोई जवाब नहीं है. कोरी घोषणाओं व जुमलों के साथ कागजी आंकड़ों से जनता को संतुष्ट करवाने का असफल प्रयास किया जा रहा है.

राणा ने कहा कि सरकार को चाहिए कि नौकरी खोने के बाद गांवों की ओर लौट चुके बेरोजगारों को उन्हीं के क्षेत्रों में रोजगार मुहैया करवाया जाए. काम मिलने से जहां आम आदमी की जेब में पैसा आएगा, वहीं ग्रामीण क्षेत्रों का प्राथमिक मूलभूत विकास भी संभव हो पाएगा. सत्ता के अहम में विपक्ष की बात को नजरअंदाज करना आम आदमी के हितों से कुठारघात होगा. सरकार को विपक्ष के सुझावों व जनता की शिकायतों को गंभीरता से सुनना समझना व उन पर अमल करना चाहिए.

राणा ने कहा है कि कोरोना के संकट के बीच नौकरी गंवा चुके प्रदेश के लाखों बेरोजगार लगातार उनसे मदद की गुहार लगा रहे हैं, जिसका सीधा मतलब यह है कि सरकार की कागजी घोषणाएं जमीन पर कोई असर नहीं दिखा पा रही हैं. हकीकत में सरकार गाइडलाइन लागू नहीं कर रही है, जिस कारण बेरोजगारी व आर्थिक महामारी में फंसे प्रदेश के लाखों बेरोजगारों को जीवन यापन के लाले पड़ चुके हैं.

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