हमीरपुर: औद्यानिकी एवं वानिकी कॉलेज नेरी के विशेषज्ञों ने बागबानी की सघन घनत्व खेती तकनीक को विकसित किया है. बागवानी की इस आधुनिक तकनीक के तहत महज 1 से डेढ़ फीट की ऊंचाई पर ही फलों की पैदावार की जा रही है. कॉलेज के फल विभाग के विशेषज्ञों ने सदाबहार फलदार पौधों पर प्रूनिंग की आधुनिक पद्धति को लागू कर सार्थक नतीजे सामने लाए हैं. पारंपरिक बागवानी में सदाबहार फलदार पौधों जिनके पत्ते पतझड़ में नहीं झड़ते हैं. उनमें यह प्रयोग किया गया है.
'45 सेंटीमीटर ऊंचे पौधों पर फलों की भरमार': गर्म इलाके के इन फलदार पौधों पर सघन घनत्व तकनीक लागू की गई है. प्रूनिंग तकनीक के जरिए इन फलदार पौधों में बेहद ही कम ऊंचाई में फलों की पैदावार शुरू हो जाती है. 1 से डेढ़ फीट की ऊंचाई पर लीची, आम, अमरूद और नींबू प्रजाति के फल इस तकनीक के माध्यम से बेहतर पैदावार दे रहे हैं. आधुनिक बागवानी की इस तकनीक में प्रूनिंग यानि पेड़ों की कांट छांट का विशेष ध्यान रखना पड़ता है. फलदार पौधों की ब्रांच 45 सेंटीमीटर की ऊंचाई से ही शुरु कर दी जाती है. यानी की टहनियों को अधिक ऊंचाई से शुरू करने के बजाय कम ऊंचाई पर शुरू कर दिया जाता है.
'प्रूनिंग का रखना पड़ेगा खास ध्यान': पौधों की कम ऊंचाई पर टहनियां शुरू होने से पेड़ का आकार नियंत्रित रहता है. यह आकार नियंत्रित होने की वजह से एक हेक्टेयर में पारंपरिक तकनीक के मुकाबले इस सघन घनत्व तकनीक को लागू कर दोगुना संख्या में पौधे लगाकर आधिक पैदावार ली जा सकती है. औद्यानिकी एवं वानिकी कॉलेज नेरी के फल विज्ञान विभाग के फल शोध केंद्र के विशेषज्ञों ने बाकायदा संस्थान के परिसर में इस तकनीक को लागू कर कई बीघा में विभिन्न फलों के बगीचे तैयार किए हैं. मौसमी, आम, अमरूद और लीची के इन बगीचों में महज एक से डेढ़ फीट की ऊंचाई पर ही फल लगे हैं. सकारात्मक नतीजे आने के बाद अब संस्थान की तरफ से किसानों और बागवानों को इसके प्रति जागरूक किया जा रहा है.
'विभिन्न पौधों के लिए 1 से 3 मीटर की दूरी': औद्यानिकी एवं वानिकी कॉलेज नेरी के डीन डॉ. सोमदेव शर्मा का कहना है कि सदाबहार फलदार पौधे पारंपरिक पद्धति के मुताबिक 6 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते थे. उन्होंने कहा कि नई तकनीक के मुताबिक मौसमी, आम, अमरूद और लीची के पौधे कम दूरी पर लगाए गए हैं. इन पौधों को 1 से 3 मीटर की दूरी पर लगाया गया है. इस तकनीक में प्रूनिंग का खास ध्यान रखना होता है ताकि पेड़ों का आकार नियंत्रित रहे. उन्होंने कहा कि इस तकनीक को लागू कर सीज़न फलदार पौधों से एक सीजन में 50 किलो तक पैदावार ली जा सकती है.
'छोटे पौधों में फलों की पैदावार': कॉलेज के फल विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर विकास कुमार शर्मा का कहना है कि पौधे के आकार को नियंत्रित करने के लिए फलन को कम दूरी पर लाया गया है. उच्च अथवा सघन घनत्व की खेती के अनुकूल पेड़ों का साइज हो इसका विशेष ध्यान रखना पड़ता है. इस तकनीक को लागू कर एक हेक्टेयर जमीन पर आम के 2 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस तकनीक को लागू करने से फल का साइज बेहतर होता है और क्वालिटी भी बेहतर मिलती हैं. उन्होंने कहा कि अमरूद की खेती में इस तकनीक को लागू करने पर एक हेक्टेयर में 5 हजार तक पौधे लगाए जा सकते हैं. जबकि पारंपरिक तकनीक में पौधों की यह संख्या आधे से भी कम होती है. अखिल भारतीय अनुसंधान केंद्र की तरफ से एक रिसर्च सेंटर भी कॉलेज में स्थापित है, जोकि आम, लीची, अमरूद और एवोकाडो के फल पर रिसर्च की जा रही है.
'नींबू प्रजाति के फलों के लिए भी कारगर तकनीक': फल विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर संजीव बन्याल का कहना है कि नींबू प्रजाति के फलों में विभिन्न किस्में शामिल है. नींबू प्रजाति के पौधों पर उच्च अथवा सघन घनत्व की खेती की तकनीक को लागू किया जा सकता है. इस तकनीक के अंतर्गत जिससे 25 किलो तक पैदावार एक पेड़ से दी जा सकती है. हालांकि इसमें प्रूनिंग का विशेष ध्यान रखना पड़ता है ताकि पेड़ एक दूसरे से ना जुड़े और पैदावार प्रभावित ना हो.
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