हमीरपुर: राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा परिवारवाद के मुद्दे पर कांग्रेस को हमेशा ही घेरती नजर आई है. भाजपा लंबे समय से परिवारवाद के सियासी अस्त्र को कांग्रेस के खिलाफ चुनावों में अक्सर प्रयोग करती है, लेकिन हमीरपुर जिले में सियासी अस्त्र ही भाजपा के लिए पॉलिटिकल सुसाइड बना. यही वजह रही कि जिले में सत्तारूढ़ भाजपा दल अपना खाता भी नहीं खोल पाई. बल्कि 2017 में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की हार के बावजूद जिले में भाजपा 2 सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. इस बार भाजपा पांच विधानसभा सीट वाले हमीरपुर जिला में एक भी सीट नहीं जीत पाई है.(Hamirpur district election result).
परिवारवाद के मायने बदल कर भाजपा ने हमीरपुर जिले की 5 विधानसभा सीट में से 3 पर परिवारवाद की परंपरा को कायम रखते हुए आवंटन किया था. इन 3 सीट पर भाजपा को दो जगह करारी हार और एक जगह कांटे की टक्कर में सीट गंवानी पड़ी है. बड़सर, भोरंज और हमीरपुर विधानसभा सीट पर पार्टी प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा है. जबकि यहां पर भाजपा से ही ताल्लुक रखने वाले प्रत्याशी बागी होकर चुनाव लड़ रहे थे. भाजपा के बागी यहां पर जीत तो हासिल नहीं कर पाए, लेकिन उन्होंने पार्टी की हार सुनिश्चित कर दी.(BJP Candidates in Hamirpur district lost election).
हमीरपुर में तीसरे नंबर पर रहे नरेंद्र ठाकुर: हमीरपुर विधानसभा सीट में भाजपा के प्रत्याशी नरेंद्र ठाकुर को करारी हार का सामना इस बार करना पड़ा है. वह तिकोने मुकाबले में इस बार तीसरे नंबर पर रहे हैं. भाजपा प्रत्याशी नरेंद्र ठाकुर ने 12,794 वोट हासिल किए हैं. दूसरे नंबर पर डॉ. पुष्पिंद्र वर्मा ने 13,017 वोट हासिल किए हैं. जबकि निर्दलीय प्रत्याशी आशीष शर्मा 25,916 वोट हासिल किए हैं. नरेंद्र ठाकुर भाजपा के दिग्गज रहे दिवंगत नेता ठाकुर जगदेव चंद के बेटे हैं, जिन्होंने लंबे समय तक हमीरपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया और यहां से भाजपा के मंत्री भी रहे. ठाकुर जगदेव चंद के छोटे बेटे नरेंद्र ठाकुर भी इस सीट से विधायक रहे हैं. लेकिन इस बार इस परिवार को हार का सामना करना पड़ा है.
भोरंज में सिटिंग विधायक का टिकट काटना नहीं आया काम: भोरंज विधानसभा क्षेत्र में सिटिंग विधायक कमलेश कुमारी का टिकट काटना भी भाजपा के काम नहीं आया. यहां पर दिवंगत पूर्व शिक्षा मंत्री ऑडी दिमाग के बेटे डॉ. अनिल धीमान को टिकट दिया था. कमलेश कुमारी का टिकट पार्टी ने काट दिया, लेकिन पूर्व विधायक अनिल धीमान कांटे की टक्कर में यहां पर चुनाव हार गए. 32 साल तक इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है. 90 के दशक से धीमान परिवार लगातार इस सीट पर भाजपा का प्रतिनिधित्व कर रहा था, लेकिन इस बार इस परिवार को यहां पर हार का सामना करना पड़ा है.
भाजपा प्रत्याशी अनिल कुमार धीमान को यहां पर 24,719 वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेश कुमार ने 24,779 वोट लेकर यहां पर महज 60 वोट से जीत हासिल की है. यहां पर भी परिवारवाद की राजनीति को आखिरकार जनता जनार्दन ने नकार दिया है. यहां पर भाजपा के बागी रहे 6861 मत हासिल किए हैं. पवन कुमार का चुनाव लड़ना भी यहां पर भाजपा प्रत्याशी की हार की बड़ी वजह बना है.
बड़सर में जिला अध्यक्ष की पत्नी को टिकट देना पड़ा महंगा: बड़सर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा को लगातार तीसरी हार का सामना करना पड़ा है. दो बार यहां पर वर्तमान जिला अध्यक्ष बलदेव शर्मा को हार का सामना करना पड़ा था तो वहीं दूसरी तरफ से तीसरी दफा उनकी पत्नी माया शर्मा को टिकट देने पर भी भाजपा को जीत नसीब नहीं हुई. 1998 से लेकर 2007 तक पूर्व विधायक बलदेव शर्मा ने तीन दफा इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. लेकिन 2012 से लेकर 2022 तक अब लगातार तीन हार का सामना यहां पर भाजपा और शर्मा परिवार को करना पड़ा है.
लगातार दो हार के बाद बलदेव शर्मा का टिकट तो यहां पर पार्टी ने काट दिया था, लेकिन उनकी पत्नी को चुनावी मैदान में उतारकर परिवारवाद को ही बढ़ावा दिया. ऐसे में बड़सर विधानसभा क्षेत्र की जनता ने परिवारवाद के मुद्दे पर भाजपा को सत्ता से महरूम रखा है. यहां पर कांग्रेस के प्रत्याशी इंद्र दत्ता लखनपाल को 30,293 वोट मिले हैं. जबकि भाजपा प्रत्याशी माया शर्मा को 16,501 वोट मिले हैं. वहीं, भाजपा के ही बागी संजीव कुमार को यहां पर 15,252 मत प्राप्त हुए हैं. 13,752 मतों के अंतर के साथ कांग्रेस ने यहां पर बड़ी जीत हासिल की है.
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