चंबा: भरमौर जातर मेले के आखिरी दिन प्रसिद्ध चौरासी मंदिर समूह के आंगन में गद्दी समुदाय की कला और संस्कृति की झलक देखने को मिली. लुआंचड़ी-डोरा में गंगी डालती महिलाएं और चोला-डोरा के साथ सिर पर साफा पहन पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर डंडा रस करते पुरूषों का नजारा देखते ही बन रहा था.
बता दें कि चौरासी के प्रांगण में ये नजारा एक साल के बाद देखने को मिला. इसे देखने के लिए भारी भीड़ जुटी थी. लिहाजा सदियों से चलती आ रही इस परंपरा को स्थानीय लोगों ने ही निभाया. वहीं, ये भी जता दिया कि ये समुदाय आज भी अपनी कला और संस्कृति को पारंपरिक अंदाज में संजोए हुए है. मेले के दौरान स्थानीय लोगों द्वारा किया जाने वाला डंडारस नृत्य पूरे आयोजन में आकर्षण का केंद्र रहता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं.
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जानकारी के अनुसार भरमौर जातर मेले का शुक्रवार को बड़ी जातर के साथ ही समापन हो गया. अंतिम दिन चौरासी मंदिर परिसर के प्रांगण में आठ गांव की महिलाओं और पुरूषों ने डंडारस नृत्य किया. लिहाजा, चौरासी परिसर में शुक्रवार को ये नजारा देखते ही बन रहा था. पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुनों पर समूह में अलग-अलग नाचते महिलाएं और पुरूष गद्दी समुदाय की कला और संस्कृति की झलक पेश करते नजर आए.
बता दें कि जन्माष्टमी के पावन अवसर पर भरमौर जातर मेले का विधिवत रूप से शुभारंभ हुआ था. सात दिवसीय इस आयोजन के तहत सात जातरों का आयोजन यहां हुआ. इस दौरान स्थानीय महिलाओं और पुरूषों ने चौरासी में हर शाम पारंपरिक नृत्य किया. स्थानीय लोगों के मुताबिक जातर मेले के दौरान यहां पर डंडारस की परंपरा सदियों से चली आ रही है. शुक्रवार को महिलाएं और पुरूष पारंपरिक वेशभूषा में चौरासी पहुंचे और समूह में नृत्य किया. बहरहाल, अब जातरों के संपन्न होने के बाद आगामी दिनों में दंगल और तीन सांस्कृतिक संध्याएं आयोजित होंगी.
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