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शिवरात्रि स्पेशल: ये है शिव का दूसरा घर, जहां मणि की तरह चमकता है पर्वत

महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर ईटीवी भारत आपको अपनी खास पेशकश शिवरात्रि स्पेशल में हिमाचल के प्रसिद्ध शिवालयों की यात्रा करवा रहा है, जहां के दर्शन पाकर शिव भक्त खुद को धन्य महसूस करते हैं.

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शिवरात्रि स्पेशल: ये है शिव का दूसरा घर
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Published : Feb 18, 2020, 4:01 PM IST

चंबा: शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवान भोले मणि के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. इसी कारण इस पर्वत को मणिमहेश कहा जाता है. धौलाधार, पांगी और जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से भी जाना जाता है.

मान्यता है कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं. मणिमहेश यात्रा कब शुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग विचार हैं लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं. 13,500 फीट की ऊंचाई परकिसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है.

वीडियो रिपोर्ट

शिव भक्तों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान भोले नाथ शेष मणि के रूप में विराजमान है. कहा यह भी जाता है कि भगवान शंकर ने पार्वती के साथ रहने के लिए इस मणिमहेश पर्वत की रचना की थी और वह यहां पर शिवलिंग के रूप में मौजूद है. जैसे महादेव हैं वैसे ही उनके भक्त भी हैं, जो अपने भोले नाथ के लिए दुर्गम से दुर्गम स्थान पर भी पहुंच जाते हैं. इसी का जीता जागता उदाहरण है मणिमहेश पर्वत.

मणिमहेश पर्वत के शिखर पर सुबह के समय एक प्रकाश उभरता है, जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है. यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं.

इस स्वर्णिम लम्हें के इंतजार में कई शिवभक्त पूरी रात सोते तक नहीं हैं. चमत्कारों और रहस्यों से भरे कैलाश पर्वत में दिखने वाले इस अद्भुत नजारे के आगे डल झील पर मौजूद हर कोई शख्स नतमस्तक हो जाता है. इस दृश्य के गवाह बनन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु हजारों की संख्या में मणिमहेश पहुंचते हैं. कड़ाके की ठंड के बीच इस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखों में समेटने के लिए महादेव के भक्त रात भर सूर्य की पहली किरण का इंतजार करते हैं.

मणिमहेश यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु डल झील में आस्था की डुबकी लगाते हैं. विशेषकर जन्माष्टमी और राधा अष्टमी वाले दिन डल झील में मणि के दर्शनों के लिए एक साथ लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं.

कहा जाता है कि मणिमहेश कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं लेकिन यहां अदृश्य शक्तियां हैं, जो इंसानी कदमों को रोक देती है. दंत कथाओं के मुताबिक एक गड़ेरिए ने अपनी भेड़ों के साथ पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह पर्वत की चोटी तक पहुंचने से पहले ही पत्थर के रूप में तब्दील हो गया था.

महादेव को समझ पाना आम इंसान के बस में कहां है, उनके रहस्य और उनकी महिमा को तो केवल वहीं जानते हैं. इंसान और विज्ञान भगवान को कैलाश और इन पर्वतों पर ढूंढने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन भोले नाथ के भक्त शायद इस बात को जानते हैं, कि महादेव और कहीं नहीं बल्कि अपने भक्तों के दिल में निवास करते हैं.

ये भी पढ़ें: शिवरात्रि स्पेशल: बैजनाथ में भक्तों के दुखों को हरते हैं भोलेनाथ

चंबा: शहर से करीब 85 किलोमीटर की दूरी पर बसे मणिमहेश में भगवान भोले मणि के रूप में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं. इसी कारण इस पर्वत को मणिमहेश कहा जाता है. धौलाधार, पांगी और जांस्कर पर्वत शृंखलाओं से घिरा यह कैलाश पर्वत मणिमहेश-कैलाश के नाम से भी जाना जाता है.

मान्यता है कि भगवान शिव इन्हीं पहाड़ों में निवास करते हैं. मणिमहेश यात्रा कब शुरू हुई, इसके बारे में अलग-अलग विचार हैं लेकिन कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने कई बार अपने भक्तों को दर्शन दिए हैं. 13,500 फीट की ऊंचाई परकिसी प्राकृतिक झील का होना किसी दैवीय शक्ति का प्रमाण है.

वीडियो रिपोर्ट

शिव भक्तों का मानना है कि कैलाश पर्वत पर भगवान भोले नाथ शेष मणि के रूप में विराजमान है. कहा यह भी जाता है कि भगवान शंकर ने पार्वती के साथ रहने के लिए इस मणिमहेश पर्वत की रचना की थी और वह यहां पर शिवलिंग के रूप में मौजूद है. जैसे महादेव हैं वैसे ही उनके भक्त भी हैं, जो अपने भोले नाथ के लिए दुर्गम से दुर्गम स्थान पर भी पहुंच जाते हैं. इसी का जीता जागता उदाहरण है मणिमहेश पर्वत.

मणिमहेश पर्वत के शिखर पर सुबह के समय एक प्रकाश उभरता है, जो तेजी से पर्वत की गोद में बनी झील में प्रवेश कर जाता है. यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर बने आसन पर विराजमान होने आ गए हैं.

इस स्वर्णिम लम्हें के इंतजार में कई शिवभक्त पूरी रात सोते तक नहीं हैं. चमत्कारों और रहस्यों से भरे कैलाश पर्वत में दिखने वाले इस अद्भुत नजारे के आगे डल झील पर मौजूद हर कोई शख्स नतमस्तक हो जाता है. इस दृश्य के गवाह बनन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु हजारों की संख्या में मणिमहेश पहुंचते हैं. कड़ाके की ठंड के बीच इस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखों में समेटने के लिए महादेव के भक्त रात भर सूर्य की पहली किरण का इंतजार करते हैं.

मणिमहेश यात्रा के दौरान लाखों की संख्या में श्रद्धालु डल झील में आस्था की डुबकी लगाते हैं. विशेषकर जन्माष्टमी और राधा अष्टमी वाले दिन डल झील में मणि के दर्शनों के लिए एक साथ लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं.

कहा जाता है कि मणिमहेश कैलाश पर्वत पर चढ़ाई करने के लिए कई बार प्रयास हो चुके हैं लेकिन यहां अदृश्य शक्तियां हैं, जो इंसानी कदमों को रोक देती है. दंत कथाओं के मुताबिक एक गड़ेरिए ने अपनी भेड़ों के साथ पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह पर्वत की चोटी तक पहुंचने से पहले ही पत्थर के रूप में तब्दील हो गया था.

महादेव को समझ पाना आम इंसान के बस में कहां है, उनके रहस्य और उनकी महिमा को तो केवल वहीं जानते हैं. इंसान और विज्ञान भगवान को कैलाश और इन पर्वतों पर ढूंढने की कोशिश में लगे हैं, लेकिन भोले नाथ के भक्त शायद इस बात को जानते हैं, कि महादेव और कहीं नहीं बल्कि अपने भक्तों के दिल में निवास करते हैं.

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