चंबा: हिमाचल प्रदेश अपनी कला और संस्कृति के बूते विश्व भर में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. राज्य के विभिन्न जिलों में होने मनाए जाने वाले त्यौहार और उत्सव भी खुद में कई मान्यताओं को भी समेटे हुए हैं. इसी तरह चंबा के कबाईली क्षेत्र भरमौर की होली घाटी में भी बांडा महोत्सव की एक अनूठी परंपरा आज भी निभाई जा रही है.
हालांकि 25 सालों से यह आयोजन बंद पड़ा था, लेकिन स्थानीय युवाओं की पहल से पिछले साल यह आयोजन आरंभ हुआ था. लिहाजा इस साल कोरोना संकट के बीच केंद्र सरकार की ओर से मिली रियायतों के चलते होली के दयोल गांव में बांडा महोत्सव का आयोजन किया गया. दिन के समय खेल आयोजन समेत सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए.
वहीं, रात तीन बड़ी-बड़ी मशालों के बीच पारंपरिक डंडारस नृत्य का भी गांव में आयोजन हुआ. हालांकि तीन दिनों तक चलने वाला आयोजन इस साल एक दिन का ही हुआ. बहरहाल स्थानीय आयोजन समिति ने बांंडा महोत्सव का आयोजन कर अपनी परंपरा को निभाया.
आयोजन को लेकर मान्यता हैै कि बर्फबारी होने के कारण क्षेत्र के लोग व भेड़ पालक उत्सव के आखिरी दिन अपने पशुधन के साथ निचले इलाकों की ओर पलायन कर जाते हैं. महोत्सव की शुरुआत होते ही रिश्तेदार, बहू-बेटियां एक-दूसरे से मिलने आते हैं और उत्सव के आखिरी दिन सभी एक-दूसरे से जुदा हो जाते हैं.
लिहाजा इस साल भी वर्षों से चली आ रही परंपराओं को पुराने रीति-रिवाजों के साथ ही निभाया जा रहा है. महोत्सव की रात को गांव के खुले मैदान में तीन मशालें जलाई जाती हैं. मान्यता है कि ये मशालें ब्रह्मा, विष्णु व महेश का प्रतीक होती हैं. इस दौरान गांव की महिलाएं व पुरुष अपनी पारंपरिक वेशभूषा पहनकर मशाल के चारों तरफ ड़डारस नृत्य किया. यह नृत्य तब तक किया जाता है, जब तक मशालें बुझ नहीं गई.
लिहाजा बीती रात को यह पूरा आयोजन दयोल गांव में हुआ. बांडा महोत्सव समिति के संरक्षक डॉ. केहर सिंह बताते है कि महोत्सव के पहले दिन खेल आयोजन हुआ. साथ ही रंगारंग कार्यक्रम का आयोजन भी गांव में किया गया. उन्होंने बताया कि 25 सालों के बाद पिछले साल यह आयोजन आरंभ किया गया. लिहाजा समिति ने परंपरा को निभाते हुए इस साल भी यह आयोजन किया गया. उन्होंने कहा कि भविष्य में इस आयोजन को ओर बेहतर तरीके से मनाया जाएगा.