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शिमला के इस बुक शॉप तक खींचे चले आते हैं किताबों के शौकिन, 1946 से सहेजे हुए है दुर्लभ पुस्तकें

शिमला के इस बुक शॉप तक खींचे चले आते हैं किताबों के शौकिन 1946 से सहेजे हुए है दुर्लभ पुस्तकें दुकान में दुर्लभ पुस्तकों के साथ ही कलाकृतियां भी शामिल

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Published : Feb 27, 2019, 10:28 PM IST

दुर्लभ पुस्तकें

शिमला: आज के डिजिटल युग में भले ही युवाओं को किताबों को पढ़ने की रूचि कम हो गई है. छात्र पुस्तकों को पढ़ने में कम और डिजिटल जानकारी जुटाने को ज्यादा अहमियत देते हैं, लेकिन इसके वाबजूद भी कुछ लोग अभी भी ऐसे है जो किसी लाभ से नहीं बल्कि दुर्लभ पुस्तकों के संग्रहण को सहेजने के उद्देश्य मात्र से ही बुक स्टोर चला रहे हैं.

दुर्लभ पुस्तकें

ऐसा ही एक बुक स्टोर मारिया ब्रदर्ज शिमला के मॉल रोड पर भी साल 1946 से चल रहा है. इस स्टोर में दुर्लभ पुस्तकों का ऐसा खजाना है जो शायद ही कहीं और मिल सके.

यहां तक कि इस बुक स्टोर की किताबों को देखकर लगता है कि यह देश के उन कुछ एक किताबों की दुकानों में से एक दुकान हो सकती है जहां इतनी दुर्लभ किताबें हैं जो अब प्रिंट से भी बाहर हो गयी है यानी अब उन किताबों की प्रतियां भी नहीं मिल पाती है.

राजधानी शिमला के मॉल रोड पर चल रहे इस बुक स्टोर को स्थापित करने का श्रेय जिस शख्सियत को जाता है वो है ओमकार चंद सूद जो लाहौर से शिमला आ कर बसे तो उन्होंने यहां आजीविका के लिए अपने शौक को ही अपना व्यवसाय बना लिया.

उन्होंने मॉल रोड पर साल 1946 में अपनी किताबों की दुकान खोली ओर उसमें अपनी पुरानी किताबों की कलेक्शन को इस बुक स्टोर में शामिल कर दिया. उनकी इस दुकान में दुर्लभ पुस्तकों के साथ ही कलाकृतियां भी शामिल हैं.

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यह बुक स्टोर आज भी दशकों बाद पुरानी पेंटिंग्स, पुराने नक्शे, कलाकृतियों और पुस्तकों को अपने आप में संजोए हुए हैं. वर्तमान में इस बुक स्टोर को ओमकार चंद सूद के बेटे राजीव सूद ही संभाल रहे हैं और उनका कहना है कि इस बुक स्टोर से उन्हें लाभ तो नहीं मिल रहा है लेकिन उनकी भावनाएं इससे जुड़ी हुई हैं और यह उनके पिताजी के संघर्ष से बना बुक स्टोर है जिसे उन्होंने अभी भी चला रखा है, लेकिन अब जल्द ही वह इसका स्वरूप भी बदलने वाले हैं ताकि उनकी आजीविका का भी साधन बन सके.

मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर की बात की जाए तो इस बुक स्टोर पर 90 फीसदी किताबें इंग्लिश में ही उपलब्ध है जिनमें से अधिकांश किताबों के फर्स्ट एडिशन यहां हैं. अब वो किताबें मिलनी ओर प्रिंट होनी भी बंद हो गई है तो ऐसे में अगर कोई इन किताबों को खरीदने में रुचि रखता है तो उसे मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर पर ही यह किताबें मिल सकती है.

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यही एक वजह भी है कि इस बुक स्टोर पर किताबों की कीमत हजारों में है और आम लोगों की पहुंच से यह किताबें बहु दूर है. बुक स्टोर पर चमड़े के चर्म पत्र कवर के साथ तीस इंच की किताब तीस किलोग्राम की भारतीय चिकित्सा ग्रंथ जिसे सोने और चांदी की स्याही में लिखा गया है वो भी उपलब्ध है.

इसके अलावा पिछली सदी के एक महान यात्री फ्रांसिस युनुसगसबैंड और अलेक्जेंडर, सवेन हेइदन कनिंघम और होलिचे जैसे प्रसिद्ध यात्रियों की किताबें इस बुक स्टोर पर उपलब्ध है.

इसके अलावा मुनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश का 1899 संस्करण, च्यांग काई शेख चीन का मार्शल 1940 संस्करण, शिमला पास्ट ओर वर्तमान के 10 वे अंग्रेजी अनुवाद का दूसरा संस्करण 1924 , भारत और उसके राजकुमारों का एम ग्रिफिथ का पहला 1894 में लिखा गया संस्करण ,जोहान मिल्डेनहाल और एफ काट्राईट की ओओएसटी-इंडीज़ वोअगिएन जो लेखकों की फारस यात्रा ओर मुगलों के देशों के विवरण पर आधारित है.

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गुस्ताउ डोरे की मिल्टन के पैराडाइज लॉस्ट एंड पैराडाइज रेगेड, फारसी ओर अरबी खंड,स्वान हेडीन के थ्रू एशिया सहित रंगून के नक़्शे, कलातीत नक़्शे और कुछ एक कलाकृतियां भी बुक स्टोर में रखी गई है.

शिमला: आज के डिजिटल युग में भले ही युवाओं को किताबों को पढ़ने की रूचि कम हो गई है. छात्र पुस्तकों को पढ़ने में कम और डिजिटल जानकारी जुटाने को ज्यादा अहमियत देते हैं, लेकिन इसके वाबजूद भी कुछ लोग अभी भी ऐसे है जो किसी लाभ से नहीं बल्कि दुर्लभ पुस्तकों के संग्रहण को सहेजने के उद्देश्य मात्र से ही बुक स्टोर चला रहे हैं.

दुर्लभ पुस्तकें

ऐसा ही एक बुक स्टोर मारिया ब्रदर्ज शिमला के मॉल रोड पर भी साल 1946 से चल रहा है. इस स्टोर में दुर्लभ पुस्तकों का ऐसा खजाना है जो शायद ही कहीं और मिल सके.

यहां तक कि इस बुक स्टोर की किताबों को देखकर लगता है कि यह देश के उन कुछ एक किताबों की दुकानों में से एक दुकान हो सकती है जहां इतनी दुर्लभ किताबें हैं जो अब प्रिंट से भी बाहर हो गयी है यानी अब उन किताबों की प्रतियां भी नहीं मिल पाती है.

राजधानी शिमला के मॉल रोड पर चल रहे इस बुक स्टोर को स्थापित करने का श्रेय जिस शख्सियत को जाता है वो है ओमकार चंद सूद जो लाहौर से शिमला आ कर बसे तो उन्होंने यहां आजीविका के लिए अपने शौक को ही अपना व्यवसाय बना लिया.

उन्होंने मॉल रोड पर साल 1946 में अपनी किताबों की दुकान खोली ओर उसमें अपनी पुरानी किताबों की कलेक्शन को इस बुक स्टोर में शामिल कर दिया. उनकी इस दुकान में दुर्लभ पुस्तकों के साथ ही कलाकृतियां भी शामिल हैं.

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यह बुक स्टोर आज भी दशकों बाद पुरानी पेंटिंग्स, पुराने नक्शे, कलाकृतियों और पुस्तकों को अपने आप में संजोए हुए हैं. वर्तमान में इस बुक स्टोर को ओमकार चंद सूद के बेटे राजीव सूद ही संभाल रहे हैं और उनका कहना है कि इस बुक स्टोर से उन्हें लाभ तो नहीं मिल रहा है लेकिन उनकी भावनाएं इससे जुड़ी हुई हैं और यह उनके पिताजी के संघर्ष से बना बुक स्टोर है जिसे उन्होंने अभी भी चला रखा है, लेकिन अब जल्द ही वह इसका स्वरूप भी बदलने वाले हैं ताकि उनकी आजीविका का भी साधन बन सके.

मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर की बात की जाए तो इस बुक स्टोर पर 90 फीसदी किताबें इंग्लिश में ही उपलब्ध है जिनमें से अधिकांश किताबों के फर्स्ट एडिशन यहां हैं. अब वो किताबें मिलनी ओर प्रिंट होनी भी बंद हो गई है तो ऐसे में अगर कोई इन किताबों को खरीदने में रुचि रखता है तो उसे मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर पर ही यह किताबें मिल सकती है.

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यही एक वजह भी है कि इस बुक स्टोर पर किताबों की कीमत हजारों में है और आम लोगों की पहुंच से यह किताबें बहु दूर है. बुक स्टोर पर चमड़े के चर्म पत्र कवर के साथ तीस इंच की किताब तीस किलोग्राम की भारतीय चिकित्सा ग्रंथ जिसे सोने और चांदी की स्याही में लिखा गया है वो भी उपलब्ध है.

इसके अलावा पिछली सदी के एक महान यात्री फ्रांसिस युनुसगसबैंड और अलेक्जेंडर, सवेन हेइदन कनिंघम और होलिचे जैसे प्रसिद्ध यात्रियों की किताबें इस बुक स्टोर पर उपलब्ध है.

इसके अलावा मुनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश का 1899 संस्करण, च्यांग काई शेख चीन का मार्शल 1940 संस्करण, शिमला पास्ट ओर वर्तमान के 10 वे अंग्रेजी अनुवाद का दूसरा संस्करण 1924 , भारत और उसके राजकुमारों का एम ग्रिफिथ का पहला 1894 में लिखा गया संस्करण ,जोहान मिल्डेनहाल और एफ काट्राईट की ओओएसटी-इंडीज़ वोअगिएन जो लेखकों की फारस यात्रा ओर मुगलों के देशों के विवरण पर आधारित है.

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गुस्ताउ डोरे की मिल्टन के पैराडाइज लॉस्ट एंड पैराडाइज रेगेड, फारसी ओर अरबी खंड,स्वान हेडीन के थ्रू एशिया सहित रंगून के नक़्शे, कलातीत नक़्शे और कुछ एक कलाकृतियां भी बुक स्टोर में रखी गई है.

Intro:आज के डिजिटल युग के भले ही युवाओं की किताबों को पढ़ने की रूचि कम हो गई है। छात्र पुस्तकों को पढ़ने में कम और डिजिटल जानकारी जुटाने को ज्यादा अहमियत देते है लेकिन इसके वाबजूद भी कुछ लोग अभी भी ऐसे है जो किसी लाभ से नहीं बल्कि दुर्लभ पुस्तकों के संग्रहण को सहेजने के उद्देश्य मात्र से ही बुक स्टोर चला रहे है। ऐसा ही एक बुक स्टोर मारिया ब्रदर्ज शिमला के मॉल रोड पर भी 1946 से चल रहा है। इस स्टोर में दुर्लभ पुस्तकों का ऐसा खज़ाना है जो शायद ही कहीं और मिल सकें। यहां तक कि इस बुक स्टोर की किताबों को देखकर लगता है कि यह देश के उन कुछ एक किताबों की दुकानों में से एक दुकान हो सकती है जहां इतनी दुर्लभ किताबें है जो अब प्रिंट से भी बाहर हो गयी है यानी अब उन किताबों की प्रतियां भी नहीं मिल पाती है।


Body:मॉल रोड पर चल रहे इस बुक स्टोर को स्थापित करने का श्रेय जिस शख्सियत को जाता है वो है ओम कार चंद सूद जो लाहौर से शिमला आ कर बसे तो उन्होंने यहां आजीविका के लिए अपने शौक को ही अपना व्यवसाय बना लिया। उन्होंने मॉल रोड पर 1946 में अपनी किताबों की दुकान खोली ओर उसमें अपनी पुरानी किताबों की कलेक्शन को इस बुक स्टोर में शामिल कर दिया। उनकी इस दुकान में दुर्लभ पुस्तकों के साथ ही कलाकृतियां भी शामिल है। यह बुक स्टोर आज भी दशकों बाद पुरानी पेंटिंग्स, पुराने नक़्शे, कलाकृतियों ओर पुस्तकों को अपने आप में संजोए हुए है। वर्तमान में इस बुक स्टोर को ओमकार चंद सूद के बेटे राजीव सूद ही संभाल रहे है ओर उनका कहना है कि इस बुक स्टोर से उन्हें लाभ तो नहीं मिल रहा है लेकिन हा उनकी भावनाएं इससे जुड़ी है और यह उनके पिताजी के संघर्ष से बना बुक स्टोर है जिसे उन्होंने अभी भी चला रखा है,लेकिन अब जल्द ही वह इसका स्वरूप भी बदलने वाले है ताकि कुछ लाभ इस बुक स्टोर का उनकी आजीविका का भी साधन बन सकें।


Conclusion:मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर की बात की जाए तो इस बुक स्टोर पर 90 फीसदी किताबें इंग्लिश की ही उपलब्ध है जिनमें से अधिकांश किताबों के फर्स्ट एडिशन यहां हैं। अब वो किताबें मिलनी ओर प्रिंट होनी भी बंद हो गई है तो ऐसे में अगर कोई इन किताबों को खरीदने में रुचि रखता है तो उसे मारिया ब्रदर्ज बुक स्टोर पर ही यह किताबें मिल सकती है। यही एक वजह भी है कि इस बुक स्टोर पर किताबों की कीमत हजारों में है और आम लोगों की पहुंच से यह किताबें दूर है। बुक स्टोर पर चमड़े के चर्म पत्र कवर के साथ तीस इंच की किताब तीस किलोग्राम की भारतीय चिकित्सा ग्रन्थ जिसे सोने और चांदी की स्याही में लिखा गया है वो उपलब्ध है। इसके अलावा पिछली सदी के एक महान यात्री फ्रांसिस युनुसगसबैंड ओर अलेक्जेंडर, सवेन हेइदन कनिघम ओर होलिचे जैसे प्रसिद्ध यात्रियों की किताबें इस बुक स्टोर पर उपलब्ध है। इसके अलावा मुनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोश का 1899 संस्करण, च्यांग काई शेख चीन का मार्शल 1940 संस्करण, शिमला पास्ट ओर वर्तमान के 10 वे अंग्रेजी अनुवाद का दूसरा संस्करण 1924 , भारत और उसके राजकुमारों का एम ग्रिफिथ का पहला 1894 में लिखा गया संस्करण ,जोहान मिल्डेनहाल ओर एफ काट्राईट की ओओएसटी-इंडीज़ वोअगिएन जो लेखकों की फ़ारस यात्रा ओर मुगलों के देशों के विवरण पर आधारित है। गुस्ताउ डोरे की मिल्टन के पैराडाइज लॉस्ट एंड पैराडाइज रेगेड, फारसी ओर अरबी खंड,स्वान हेडीन के थ्रू एशिया सहित रंगून के नक़्शे,कलातीत नक़्शे और कुछ एक कलाकृतियां भी बुक स्टोर में रखी गई है।
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