बिलासपुर: डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है. जिला बिलासपुर में एक ऐसा ही करिश्मा देखने को मिला है. जिला अस्पताल में शिशु रोग विषेशज्ञ डॉ. सतीष शर्मा और डॉ. अंकुर धर्माणी ने एक बच्चे की जिंदगी को बचाने में अहम भूमिका निभाई है. इस नवजात बच्चे का बचना लगभग नामुमकिन बताया जा रहा था.
जानकारी के अनुसार अस्पताल में चिकित्सकों और स्टाफ नर्सों ने इस बच्ची की तिमारदारी परिजनों से बढ़कर की. चूंकि बच्ची की मां की उसे जन्म देने के बाद मौत हो गई थी. करीब दो महीने तक इन्हीं डाक्टरों और नर्सों ने बच्ची का ख्याल रखा.
यह एक प्रवासी परिवार की बच्ची है. ये परिवार मजदूरी करके अपना पेट पालता है. कोरोना के कारण लगाए गए कर्फ्यू व लॉकडाउन के बीच इस प्रवासी परिवार की महिला को अस्पताल में प्रसव को लेकर दाखिल किया गया था. महिला ने प्री-मैच्योर डिलीवरी में बहुत ही कम वजन की बच्ची को जन्म दिया. बताया जाता है कि इस महिला को हार्ट संबंधी समस्या थी, जो बच्ची को जन्म देने के बाद बढ़ गई और उसे आईजीएमसी शिमला रेफर कर दिया गया था, जहां महिला की मौत हो गई थी.
वहीं, बहुत ही गरीब परिवार से संबंध रखने वाले इस परिवार की बच्ची का वजन केवल 860 ग्राम था. साथ ही बच्ची सांस में दिक्कत से लेकर दूसरी कई समस्याओं से भी ग्रसित थी. डॉ. सतीश शर्मा और डॉ. अंकुर धर्माणी ने बच्ची के जन्म से लेकर पूरी लग्न व दायित्व को निभाते हुए दिन रात सेवा की.
इसी का नतीजा रहा कि बच्ची गौरी को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया है. बच्ची के इलाज का सारा खर्च अस्पताल प्रशासन ने ही किया, लेकिन बच्ची को दूध व अन्य जरूरी सामान के लिए खर्च हुई सारी राशि सेवा में जुटी नर्सों ने अपनी आप जुटाई. करीब 62 दिनों के बाद अस्पताल से डिस्चार्ज होते समय गौरी का वजन 1 किलो 950 ग्राम था, जोकि हर्ष का विषय है.
उल्लेखनीय है जिला अस्पताल में पिछले दो सालों में करीब चार से छह मामले प्री-मैच्योर मामले आएं हैं. इन बच्चों का वजन 8 सौ से 9 सौ ग्राम के बीच में था. ऐसे बच्चों को भी यहां के चिकित्सकों ने ठीक कर घर भेजा है.