ETV Bharat / city

Hydroponic Farming: न मिट्टी न जमीन की जरूरत, अब किसान हवा और पानी से ही कर सकेंगे खेती

मिट्टी की लगातार गिरती गुणवत्ता और उससे जनित रोगों को देखते हुए पिछले कुछ सालों में भारत में खेती की नई-नई तकनीकें सामने आई हैं. आजकल छत और बालकनी या किसी (Soilless Farming or Micro Irrigation) भी सीमित जगह का इस्तेमाल कर फल और सब्जियों को उगाने का चलन बढ़ा है. ऐसे में हाइड्रोपोनिक फार्मिंग (how to do hydroponic farming) इसके लिए उपयुक्त तकनीक है.

Hydroponic Farming
Hydroponic Farming
author img

By

Published : Feb 23, 2022, 5:10 PM IST

Updated : Feb 23, 2022, 6:39 PM IST

सोलन: क्या आपने कभी बगैर मिट्टी के फल और सब्जियों को उगाने के बारे में सुना है? नहीं न? आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है? लेकिन इन दिनों हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में स्थापित डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी (Nauni Agricultural University) में इस पर शोध किया जा रहा है.

हालांकि अभी तक वैज्ञानिकों को इसमें काफी हद तक सफलता भी मिल चुकी है, लेकिन लगातार वैज्ञानिकों द्वारा इसमें शोध किया जा रहा है. फल और सब्जियों को उगाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा. केवल हवा और पानी की मदद से ही खेती को एक नया रूप देने पर काम किया जा रहा है.

बता दें कि भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की 60% आबादी खेती-बाड़ी (Soilless Farming or Micro Irrigation) से ही अपना गुजारा चल आती है, लेकिन बदलते समय और बढ़ती तकनीकों के साथ अब खेती के भी नए रूप देखने को मिल रहे हैं. लगातार बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ती खेती के बीच वैज्ञानिक समुदाय ने भविष्य में खेती के नए मॉडल पर काम करना तेज गति से शुरू कर दिया है. कम जगह पर ज्यादा पैसा कमाने वाली तरकीब निकाली जा रही है.

वीडियो. Hydroponic Farming

इन दिनों इसी को लेकर डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में (Grow Poison Free Vegetables) सॉइल्लेस यानी मिट्टी रहित खेती पर कार्य किया जा रहा है. इसको लेकर वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक खेती के शोध पर कार्य चल रहा है.

डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के सॉइल साइंस और वाटर मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रंजीत सिंह स्पेहिया बताते हैं कि कम जगह पर किस तरह से खेती की जाए इसको लेकर नौणी विश्वविद्यालय में हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक खेती (soilless farming in Himachal) पर कार्य किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस खेती के लिए सिर्फ हवा और पानी की जरूरत पड़ती है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

मिट्टी रहित होने वाली इस खेती में फल सब्जियां आधे समय में तैयार हो जाती हैं. वहीं, 22 गुना पानी की बचत भी इस खेती के माध्यम से होती है. डॉ. रंजीत ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती में सब्जियां उगाने के लिए सिर्फ पानी का उपयोग किया जाता है और इसमें निरंतर पौधों के बीच पानी बहता रहता है. वहीं, पौधों की सपोर्ट के लिए घिसे हुए बारीक पत्थर यानी वर्मीकुलाइट और परलाइट इसमें डाले जाते हैं जो कि लगातार बह रहे पानी के मॉइस्चराइजर को सोखते रहते हैं.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

वहीं, एरोपोनिक्स खेती में पौधों में 15 सेकंड के लिए 45 मिनट के बाद (Hydroponic Farming Himachal) पानी को छोड़ा जाता है. यह भी हाइड्रोपोनिक की ही तरह है, लेकिन इसमें पानी का बहाव निरंतर नहीं रहता है. वहीं, दूसरी तरफ सॉइललेस खेती को लेकर भी नौणी विश्वविद्यालय में शोध चल रहा है. खेती में मिट्टी का उपयोग न करके कोकोपीट यानी नारियल के बुरादा का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें बेहतर तरीके से फल सब्जियां उग रही हैं और काफी हद तक विश्वविद्यालय के शोध को सफलता भी मिल रही है.

जगह की कमी नहीं सताएगी: डॉ. रंजीत ने बताया कि इसे खेती को अपनाकर (how to do hydroponic farming) हिमाचल जैसे क्षेत्र में युवा (soilless farming at home) काफी हद तक आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि हिमाचल में पथरीली जगह होने के कारण कई बार किसानों को जगह की कमी सताती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक एरोपोनिक और सॉइललेस खेती करने के लिए किसानों को जमीन इसकी चिंता नहीं सताएगी. किसान अब बंद कमरे में एक बिल्डिंग में खेती कर पाएंगे. डॉ. रंजीत ने बताया कि नौणी विश्वविद्यालय में इन दिनों किसानों को सिर्फ कल्टीवेशन के बारे में ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन आने वाले समय में किस तरह से इस खेती को किसान अपना सकते हैं इसके बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाएगा.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

क्या होती है हाइड्रोपोनिक खेती: हाइड्रोपोनिक खेती यानी बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए की जाने वाली खेती एक अत्याधुनिक खेती है. जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है. पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है. इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है और आद्रता को 80-85 फीसदी रखा जाता है. पौधों को पोषक तत्व भी पानी के जरिए ही दिए जाते हैं.

यह खेती पाइपों के जरिए होती है इनके ऊपर की तरफ से छेद के जाते हैं. उन्हीं छेदों में पौधे उगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और जो कि पौधों की जड़ों में उसी पानी में डूबी रहती है. इस पानी में वह हर पोषक तत्व को घोला जाता है जिसकी पौधों को जरूरत होती है. यह तकनीक छोटे पौधे वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

इसमें गाजर, शलगम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉवेरी, ब्लूवेरी, तरबूज, खरबूजा, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं. इसी खेती का फायदा यह है कि इसमें 90 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. वहीं, 100 वर्ग फुट में 200 पौधे लगाए जा सकते हैं. जिससे वातावरण से आने वाले कीटों से भी फसलों को सुरक्षा मिल सकती है.

क्या होती है एरोपोनिक खेती: एरोपोनिक खेती तकनीक कृषि (profit in hydroponic farming) की अन्य तकनीकों जैसे एक्वापोनिक्स, हाइड्रोपोनिक्स और प्लांट टिशु कल्चर से अलग है. इस तकनीक को पहली बार 1940 के दशक में पश्चिम में खोजा गया था. इस विधि के अंतर्गत स्वस्थ पौधों को मिट्टी रहित सांचे के अंदर लगाया व लटकाया जाता है और उन पौधों की जड़े अंधेरे डिब्बों के भीतर लटकते और बढ़ती रहती है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

ये भी पढ़ें- अनिल शर्मा परिवार के लिए ही नहीं पार्टी के लिए भी काम करते तो अच्छा रहता: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर

इस प्रणाली में एक बंद और अर्ध बंद वातावरण में पौधों को बिना मिट्टी के विकसित करना होता है, जिसके लिए पोषक तत्वों से भरपूर पानी को उसकी जड़ों पर छिड़का जाता है. इसकी मदद से उसमें तनों की कोशिकाओं का विकास होता है, यदि वास्तव में देखा जाए तो एरोपोनिक कोई नई प्रणाली नहीं है. इसे 1973 में कैबट फाउंडेशन लैब द्वारा विकसित किया गया था.

एरोपोनिक सिस्टम उन सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है. जिनकी जड़ें ऑक्सीजन और नमी जैसी सर्वोत्तम स्थिति को अपना सकती है. इन्हें नियंत्रित तापमान और आर्द्रता की स्थिति में उगाया जाता है. इस तकनीक की मदद से किसान पोषक तत्वों से भरपूर फसल प्राप्त कर सकते हैं. इस खेती के माध्यम से चुकंदर, गोभी, गाजर, फूलगोभी, मक्का, ककड़ी, बैंगन, अंगूर, प्याज, मटर, मिर्च और आलू जैसी फल सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री की दो टूक, आंदोलन करने वाले कर्मचारियों की बात नहीं सुनेगी सरकार

सोलन: क्या आपने कभी बगैर मिट्टी के फल और सब्जियों को उगाने के बारे में सुना है? नहीं न? आप सोच रहे होंगे कि ऐसा कैसे संभव हो सकता है? लेकिन इन दिनों हिमाचल प्रदेश के जिला सोलन में स्थापित डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी (Nauni Agricultural University) में इस पर शोध किया जा रहा है.

हालांकि अभी तक वैज्ञानिकों को इसमें काफी हद तक सफलता भी मिल चुकी है, लेकिन लगातार वैज्ञानिकों द्वारा इसमें शोध किया जा रहा है. फल और सब्जियों को उगाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा. केवल हवा और पानी की मदद से ही खेती को एक नया रूप देने पर काम किया जा रहा है.

बता दें कि भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की 60% आबादी खेती-बाड़ी (Soilless Farming or Micro Irrigation) से ही अपना गुजारा चल आती है, लेकिन बदलते समय और बढ़ती तकनीकों के साथ अब खेती के भी नए रूप देखने को मिल रहे हैं. लगातार बढ़ती जनसंख्या और सिकुड़ती खेती के बीच वैज्ञानिक समुदाय ने भविष्य में खेती के नए मॉडल पर काम करना तेज गति से शुरू कर दिया है. कम जगह पर ज्यादा पैसा कमाने वाली तरकीब निकाली जा रही है.

वीडियो. Hydroponic Farming

इन दिनों इसी को लेकर डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी में (Grow Poison Free Vegetables) सॉइल्लेस यानी मिट्टी रहित खेती पर कार्य किया जा रहा है. इसको लेकर वैज्ञानिकों द्वारा हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक खेती के शोध पर कार्य चल रहा है.

डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी के सॉइल साइंस और वाटर मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रंजीत सिंह स्पेहिया बताते हैं कि कम जगह पर किस तरह से खेती की जाए इसको लेकर नौणी विश्वविद्यालय में हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक खेती (soilless farming in Himachal) पर कार्य किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस खेती के लिए सिर्फ हवा और पानी की जरूरत पड़ती है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

मिट्टी रहित होने वाली इस खेती में फल सब्जियां आधे समय में तैयार हो जाती हैं. वहीं, 22 गुना पानी की बचत भी इस खेती के माध्यम से होती है. डॉ. रंजीत ने बताया कि हाइड्रोपोनिक खेती में सब्जियां उगाने के लिए सिर्फ पानी का उपयोग किया जाता है और इसमें निरंतर पौधों के बीच पानी बहता रहता है. वहीं, पौधों की सपोर्ट के लिए घिसे हुए बारीक पत्थर यानी वर्मीकुलाइट और परलाइट इसमें डाले जाते हैं जो कि लगातार बह रहे पानी के मॉइस्चराइजर को सोखते रहते हैं.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

वहीं, एरोपोनिक्स खेती में पौधों में 15 सेकंड के लिए 45 मिनट के बाद (Hydroponic Farming Himachal) पानी को छोड़ा जाता है. यह भी हाइड्रोपोनिक की ही तरह है, लेकिन इसमें पानी का बहाव निरंतर नहीं रहता है. वहीं, दूसरी तरफ सॉइललेस खेती को लेकर भी नौणी विश्वविद्यालय में शोध चल रहा है. खेती में मिट्टी का उपयोग न करके कोकोपीट यानी नारियल के बुरादा का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें बेहतर तरीके से फल सब्जियां उग रही हैं और काफी हद तक विश्वविद्यालय के शोध को सफलता भी मिल रही है.

जगह की कमी नहीं सताएगी: डॉ. रंजीत ने बताया कि इसे खेती को अपनाकर (how to do hydroponic farming) हिमाचल जैसे क्षेत्र में युवा (soilless farming at home) काफी हद तक आगे बढ़ सकते हैं, क्योंकि हिमाचल में पथरीली जगह होने के कारण कई बार किसानों को जगह की कमी सताती है, लेकिन हाइड्रोपोनिक एरोपोनिक और सॉइललेस खेती करने के लिए किसानों को जमीन इसकी चिंता नहीं सताएगी. किसान अब बंद कमरे में एक बिल्डिंग में खेती कर पाएंगे. डॉ. रंजीत ने बताया कि नौणी विश्वविद्यालय में इन दिनों किसानों को सिर्फ कल्टीवेशन के बारे में ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन आने वाले समय में किस तरह से इस खेती को किसान अपना सकते हैं इसके बारे में भी प्रशिक्षण दिया जाएगा.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

क्या होती है हाइड्रोपोनिक खेती: हाइड्रोपोनिक खेती यानी बिना मिट्टी के सिर्फ पानी के जरिए की जाने वाली खेती एक अत्याधुनिक खेती है. जिसमें पानी का इस्तेमाल करते हुए जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है. पानी के साथ थोड़े बालू या कंकड़ की जरूरत पड़ सकती है. इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच रखा जाता है और आद्रता को 80-85 फीसदी रखा जाता है. पौधों को पोषक तत्व भी पानी के जरिए ही दिए जाते हैं.

यह खेती पाइपों के जरिए होती है इनके ऊपर की तरफ से छेद के जाते हैं. उन्हीं छेदों में पौधे उगाए जाते हैं. पाइप में पानी होता है और जो कि पौधों की जड़ों में उसी पानी में डूबी रहती है. इस पानी में वह हर पोषक तत्व को घोला जाता है जिसकी पौधों को जरूरत होती है. यह तकनीक छोटे पौधे वाली फसलों के लिए बहुत अच्छी है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

इसमें गाजर, शलगम, मूली, शिमला मिर्च, मटर, स्ट्रॉवेरी, ब्लूवेरी, तरबूज, खरबूजा, अजवाइन, तुलसी, टमाटर, भिंडी जैसी सब्जियां और फल उगाए जा सकते हैं. इसी खेती का फायदा यह है कि इसमें 90 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. वहीं, 100 वर्ग फुट में 200 पौधे लगाए जा सकते हैं. जिससे वातावरण से आने वाले कीटों से भी फसलों को सुरक्षा मिल सकती है.

क्या होती है एरोपोनिक खेती: एरोपोनिक खेती तकनीक कृषि (profit in hydroponic farming) की अन्य तकनीकों जैसे एक्वापोनिक्स, हाइड्रोपोनिक्स और प्लांट टिशु कल्चर से अलग है. इस तकनीक को पहली बार 1940 के दशक में पश्चिम में खोजा गया था. इस विधि के अंतर्गत स्वस्थ पौधों को मिट्टी रहित सांचे के अंदर लगाया व लटकाया जाता है और उन पौधों की जड़े अंधेरे डिब्बों के भीतर लटकते और बढ़ती रहती है.

Hydroponic Techniques in Himachal
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग

ये भी पढ़ें- अनिल शर्मा परिवार के लिए ही नहीं पार्टी के लिए भी काम करते तो अच्छा रहता: मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर

इस प्रणाली में एक बंद और अर्ध बंद वातावरण में पौधों को बिना मिट्टी के विकसित करना होता है, जिसके लिए पोषक तत्वों से भरपूर पानी को उसकी जड़ों पर छिड़का जाता है. इसकी मदद से उसमें तनों की कोशिकाओं का विकास होता है, यदि वास्तव में देखा जाए तो एरोपोनिक कोई नई प्रणाली नहीं है. इसे 1973 में कैबट फाउंडेशन लैब द्वारा विकसित किया गया था.

एरोपोनिक सिस्टम उन सब्जियों की खेती के लिए उपयुक्त है. जिनकी जड़ें ऑक्सीजन और नमी जैसी सर्वोत्तम स्थिति को अपना सकती है. इन्हें नियंत्रित तापमान और आर्द्रता की स्थिति में उगाया जाता है. इस तकनीक की मदद से किसान पोषक तत्वों से भरपूर फसल प्राप्त कर सकते हैं. इस खेती के माध्यम से चुकंदर, गोभी, गाजर, फूलगोभी, मक्का, ककड़ी, बैंगन, अंगूर, प्याज, मटर, मिर्च और आलू जैसी फल सब्जियां उगाई जा सकती हैं.

ये भी पढ़ें- मुख्यमंत्री की दो टूक, आंदोलन करने वाले कर्मचारियों की बात नहीं सुनेगी सरकार

Last Updated : Feb 23, 2022, 6:39 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.