शिमला: पांच दशक तक हिमाचल प्रदेश की राजनीति को गहरे तक प्रभावित करने वाले वीरभद्र सिंह हर मोर्चे पर खुद को साबित करते आए हैं. छह बार प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले वीरभद्र सिंह के जीवट को हर कोई सलाम करता है. दो बार कोविड से संक्रमित होने के बाद भी वीरभद्र सिंह इस लड़ाई में विजेता बनकर निकले हैं. सेहत के मोर्चे पर बेशक इन दिनों वे कठिन दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन उनके समर्थकों को पूरा भरोसा है कि राजनीति के ये राजा जल्द ही स्वस्थ होकर उनसे रूबरू होंगे.
वीरभद्र सिंह के जन्मदिन पर प्रदेश भर में फैले समर्थक उनके लिए दुआएं कर रहे हैं. कोरोना काल से पहले जब स्थितियां सामान्य होती थीं तो इस अवसर पर पूरे हिमाचल से उनके चाहने वाले होली लॉज शिमला (Holly Lodge Shimla) में जुड़ते थे.
एक दफा उनके जन्मदिन पर शिमला के आइस स्केटिंग रिंक में समारोह हुआ तो पूरे मैदान में तिल रखने की जगह नहीं थी. इससे वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है. बड़ी बात ये है कि जिस समय भी उनके राजनीति में चुक जाने की चर्चाएं हुईं, वीरभद्र सिंह ने दमदार वापसी से सभी को चौंका दिया.
पूर्व सीएम वीरभद्र ने ऐसे खुद को साबित किया था
चाहे वो विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा में मंडी सीट से जीतकर केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने का दौर हो या फिर केंद्र से वापस लौटकर हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) की सरकार को सत्ता से हटाकर फिर से मुख्यमंत्री बनने का समय, वीरभद्र सिंह ने हर बार खुद को साबित किया है.
बुधवार यानी आज 23 जून को वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का जन्मदिन है. वे इस समय शिमला के आईजीएमसी अस्पताल (IGMC Hospital) में उपचाराधीन हैं, लेकिन प्रदेश भर में उनके समर्थक अपने ही तरीके से इस अवसर को मना रहे हैं. वीरभद्र सिंह के जन्मदिवस पर रक्तदान शिविर के अलावा कांग्रेस से जुड़े उनके समर्थक जनसेवा के कई आयोजन कर रहे हैं. यहां उनके अब तक के राजनीतिक जीवन की यात्रा का अवलोकन करना दिलचस्प होगा.
6 बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालना अपने आप में बड़ी बात
हिमाचल की राजनीति की चर्चा वीरभद्र सिंह के बिना अधूरी है. कहा जाता है कि प्रदेश की नींव हिमाचल निर्माता डॉ. वाईएस परमार ने रखी और उस पर वीरभद्र सिंह ने विकास का मजबूत ढांचा खड़ा किया है. छह बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालना अपने आप में बड़ी बात है.
यही नहीं, वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) ने केंद्र में भी महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाले हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता के केंद्र में हिमाचल और यहां की जनता की भलाई ही रही है. इसी वजह से वे केंद्र में जाने के बाद भी हिमाचल की तरफ ही लौटते रहे. लाल बहादुर शास्त्री जी की प्रेरणा से राजनीति में आए वीरभद्र सिंह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ काम किया है. अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) से भी उनके अच्छे संबंध रहे हैं.
वीरभद्र सिंह प्रमुखता के साथ शामिल हुए थे
अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) के देहावसान पर शिमला में आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वीरभद्र सिंह प्रमुखता के साथ शामिल हुए थे. आखिर ऐसा क्या है कि वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश की जनता और यहां के राजनीतिक गलियारों में इतने लोकप्रिय हैं?
इसके पीछे कई कारण हैं. वीरभद्र सिंह एक कुशल प्रशासक के तौर पर तो जाने ही जाते हैं, उनका प्रदेश के विकास को लेकर भी स्पष्ट विजन रहा है. हिमाचल प्रदेश में इस समय स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो आधारभूत ढांचा है, उसके पीछे वीरभद्र सिंह का ही विजन है.
आईजीएमसी अस्पताल (IGMC Hospital) में सुपर स्पेशिएलिटी डिपार्टमेंट्स शुरू करवाने में वीरभद्र सिंह का योगदान है. यहां ओपन हार्ट सर्जरी की सुविधा इनके ही कार्यकाल में आरंभ हुई है. तब वीरभद्र सिंह के प्रयासों से ही एम्स की टीम ने वर्ष 2005 में यहां आकर शुरुआती ऑपरेशन किए थे. इसी तरह प्रदेश के दूर-दराज इलाकों के विकास के लिए भी वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकारों ने काफी शानदार कार्य किया है.
2012 में अकेले अपने दम पर सत्ता में वापसी
वर्ष 2012 के चुनाव से पूर्व हिमाचल में भाजपा काफी अच्छी स्थिति में थी. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार को भरोसा था कि भाजपा मिशन रिपीट में कामयाब होगी. तब वीरभद्र सिंह केंद्र की राजनीति से वापस हिमाचल आए और अकेले अपने दम पर कांग्रेस को सत्ता में लाया. वर्ष 2012 के चुनाव में जीत हासिल करने के बाद वे छठी बार राज्य के सीएम बने.
महासू सीट से उन्होंने चुनाव जीता
वैसे तो वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का इरादा अध्यापन करने का था, लेकिन शास्त्री जी उन्हें राजनीति में ले आए. बुशहर रियासत के इस राजा ने आरंभिक स्कूली शिक्षा शिमला के विख्यात बिशप कॉटन स्कूल से की. उसके बाद दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से बीए (आनर्स) की डिग्री हासिल की. अध्ययन के बाद वे लाल बहादुर शास्त्री की सलाह पर 1962 के लोकसभा चुनाव में खड़े हो गए. महासू सीट से उन्होंने चुनाव जीता और तीसरी लोकसभा में पहली बार सांसद बने.
अगला चुनाव भी वीरभद्र सिंह ने महासू से ही जीता. फिर 1971 के लोकसभा चुनाव में भी वे विजयी हुए. यही नहीं, वीरभद्र सिंह सातवीं लोकसभा में भी सदस्य थे. उन्होंने 1980 का लोकसभा चुनाव जीता.
अंतिम लोकसभा चुनाव उन्होंने मंडी सीट से वर्ष 2009 में जीता और केंद्रीय इस्पात मंत्री बने. इस तरह वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) पांच बार सांसद रहे. वे पहली बार केंद्रीय कैबिनेट में वर्ष 1976 में पर्यटन व नागरिक उड्डयन मंत्री बने. फिर 1982 में उद्योग राज्यमंत्री का पदभार संभाला. वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद वे केंद्र में इस्पात मंत्री बने. बाद में उन्हें केंद्रीय सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजिज मंत्री बनाया गया.
ये भी पढ़ें: वीरभद्र सिंह के जन्मदिन पर CM जयराम ने दी बधाई, ट्वीट कर अच्छे स्वास्थ्य की कामना की
बिना थके काम करने की क्षमता
वीरभद्र सिंह की कार्यक्षमता सभी को हैरान करती है. पिछली बार सीएम रहते हुए अपने कार्यकाल के आखिरी बजट सत्र में वीरभद्र सिंह ने चार घंटे तक लगातार अंग्रेजी में बजट भाषण दिया था. उस दौरान उन्होंने एक आशार के जरिए अपने राजनीतिक विरोधियों पर तंज कसा था.
वीरभद्र सिंह ने कहा था- मेरा यही अंदाज जमाने को खलता है/इतनी मुश्किलों के बाद ये आदमी सीधा कैसे चलता है. उस दौरान वीरभद्र सिंह ने ये भी कहा था कि अभी इतना लंबा भाषण देने के बाद वे विधानसभा से मालरोड तक दौड़ लगा सकते हैं.
जनता से जुड़ाव की कला जानते हैं वीरभद्र
जिस तरह एक कुशल वैद्य मरीज की नब्ज पकड़ते ही मर्ज का पता लगा लेता है और इलाज करता है, उसी तरह वीरभद्र सिंह भी हिमाचल (Himachal) की जनता की नब्ज से वाकिफ हैं. होली लॉज पहुंचने वाले हर फरियादी को वीरभद्र सिंह ने कभी खाली हाथ नहीं लौटाया.
सीएम रिलीफ फंड से मदद करने में भी वीरभद्र सिंह ने कभी भेदभाव नहीं किया. वर्ष 2006 में मंडी जिला के एक भाजपा समर्थक की बाइपास सर्जरी के लिए 1.26 लाख रुपए सेंक्शन किए थे. ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जो वीरभद्र सिंह की लोकप्रियता को चार चांद लगाते हैं.
कृष्ण भानू के पास वीरभद्र सिंह से जुड़े कई संस्मरण हैं
वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) के कामकाज को करीब से देखने वाले हिमाचल के दिग्गज पत्रकार कृष्ण भानू का कहना है कि फीनिक्स की तरह बार-बार उठ कर अपने होने का अहसास करवाते हैं वीरभद्र सिंह. कृष्ण भानू के पास वीरभद्र सिंह से जुड़े कई संस्मरण हैं.
वीरभद्र सिंह विजनरी नेता हैं और अफसरशाही पर जबरदस्त कंट्रोल
वे कहते हैं कि वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) का राजनीतिक कद इतना बड़ा है कि उसे पक्ष-विपक्ष के दायरे में नहीं बांधा जा सकता. जो राजनेता छह बार प्रदेश का मुख्यमंत्री रहा हो, उसके जनता से जुड़ाव का अंदाजा लगाया जा सकता है.
इसके अलावा वीरभद्र सिंह विजनरी नेता हैं और उनका अफसरशाही पर जबरदस्त कंट्रोल रहा है. यही कारण है कि विकास योजनाओं को धरातल पर उतारने में वे सफल रहे हैं. जनता से सीधा संवाद और समर्थकों का आंख मूंदकर भरोसा करना वीरभद्र सिंह को वीरभद्र सिंह बनाता है.
ये भी पढ़ें: पिता वीरभद्र सिंह के BIRTHDAY पर विक्रमादित्य का पोस्ट, 'दिलों के राजा को जन्मदिन की हार्दिक बधाई'