शिमला: हिमाचल की युवा पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती जा रही है. चिंता की बात है कि किशोर छात्र, छात्राएं भी अनेक कारणों से नशे का शिकार हो रहे हैं. शौकिया तौर पर बीड़ी सिगरेट के धुएं से शुरुआत करने के बाद छात्र धीरे-धीरे नशे की लत में गिरफ्तार हो जाते हैं. वैसे तो शैक्षणिक संस्थानों के इर्द-गिर्द 100 मीटर के दायरे में किसी भी तरह के (Tobacco Habit of Youth in Himachal) नशे के सामान जैसे बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, खैनी,आदि पर प्रतिबंद है, लेकिन लत का शिकार हुए बच्चे किसी न किसी तरह इनका जुगाड़ कर ही लेते हैं. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में स्कूल, कॉलेज व शैक्षणिक संस्थानों के 100 मीटर के दायरे में तंबाकू उत्पाद बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया था, लेकिन नियम कायदे ताक पर रख दुकानदार धड़ल्ले से तंबाकू उत्पाद की बिक्री कर रहे हैं.
कम्युनिटीज मेडिसिन के डॉक्टर समय समय पर समाज के विभिन्न वर्गों में नशे की आदतों को लेकर सर्वे करते रहे है. ऐसे में प्रदेश के सबसे बड़े स्वास्थ्य संस्थान आईजीएमसी अस्पताल के कम्युनिटी मेडिसिन ने स्कूली बच्चों के धूम्रपान सम्बंधित व्यवहार पर सर्वे किया है. जिसके अनुसार 24.9 फीसदी छात्र और 8.9 फीसदी छात्राओं ने कम से कम एक बार स्मोकिंग (school Student Smoking in Himachal) का नशा आजमा कर देखा है. स्कूल जाने वाले 13 से 19 साल के छात्र-छात्राओं से इस विषय पर बातचीत की गई थी. इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज शिमला के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग ने यह सर्वे किया.
सर्वे के अनुसार कुल्लू जिला सबसे अधिक प्रभावित है. यहां 13 से 19 साल के 16.5 फीसदी स्कूली बच्चे स्मोकिंग का स्वाद ले चुके हैं. इनमें लड़कियां भी शामिल हैं. सर्वे के एक अन्य हिस्से के अनुसार 117 टीबी के मरीजों की जांच में पाया गया कि उनमें से तीस फीसदी को टीबी होने का कारण स्मोकिंग रहा है. सर्वे करने वाली डॉक्टर्स (drugs addicted youth in himachal) की टीम ने शहर व ग्रामीण इलाकों के 2864 स्कूली बच्चों को सर्वे में शामिल किया था. सर्वे टीम में डॉ. शिशुपाल सिंह ठाकुर, डॉ. अनुपम पराशर, डॉ. डीएस डढ़वाल व डॉ. अंजलि महाजन शामिल थे.
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सर्वे में सामने आया कि 35.1 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो घर में ही सेकेंड हैंड स्मोक का शिकार हैं. कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ डॉ. अनमोल गुप्ता के अनुसार स्कूली बच्चों को धूम्रपान के बुरे प्रभावों के खिलाफ जागरूक करने की आवश्यकता है. साथ ही पेरेंट्स को भी इस दिशा में पहल कर बच्चों की आदतों पर नजर रखनी चाहिए. यहां बता दें कि कुछ वर्ष पहले किए गए कम्युनिटी मेडिसिन डिपार्टमेंट के ही सर्वे में पता चला था कि हिमाचल में 21 फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते हैं. इसके अलावा एक अन्य नशे पर सर्वे में चिंता जनक खुलासे हुए है. आईजीएमसी में कम्युनिटी मेडिसिन में डॉक्टर रहे व वर्तमान में हमीरपुर में स्वास्थ्य विभाग में जिला प्रोग्राम अधिकारी डॉ. राकेश ने बताया कि उन्होंने स्कूली छात्रों पर नशे को लेकर एक सर्वे किया था.
इस साल सर्वे की रिपोर्ट तैयार की गई. जिसके मुताबिक स्कूलों में 21 फीसदी छात्र छात्राएं किसी ना किसी नशे का शिकार हैं. सर्वे में सामने आया कि नौ फीसदी छात्र शराब, बीयर, भांग आदि का नशा करते हैं. एक प्रतिशत छात्र चिट्टे का सेवन कर रहे हैं. डॉ. राकेश ने बताया कि यह सर्वे 13 से 18 साल के 8वीं से 12वीं तक के स्कूली छात्रों से जुड़ा था.
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आईजीएमसी में कम्युनिटी मेडिसिन के डॉक्टर व वर्तमान में शिमला एड्स कंट्रोल सोसाइटी (Shimla AIDS Control Society) में जिला प्रोग्राम अधिकारी डॉ. घनश्याम ने बताया कि उनके सर्वे में यह सामने आया है कि बच्चे पारिवारिक दबाव, मानसिक परेशानी के कारण नशे की गिरफ्त में फंस जाते है. आईजीएमसी अस्पताल के मनोचिकित्सक प्रो. डॉ. देवेश शर्मा का कहना है कि पेरेंट्स नशे का शिकार हुए बच्चों को लेकर (school going youth himachal consuming tobacco) काउंसलिंग के लिए उनके पास आते हैं. अधिकांश बच्चे पहले शौकिया तौर पर नशा करते हैं और बाद में उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है.
उल्लेखनीय है कि अब युवा पीढ़ी चिट्टे का शिकार हो रही है. हिमाचल पुलिस को एक गोपनीय चिट्ठी मिली थी कि प्रदेश में युवाओं को बड़े पैमाने पर चिट्टे का आदि बनाया जा रहा है. हिमाचल के कई युवा, जो पढ़ाई के लिए चंडीगढ़, जालंधर, गुरदासपुर व हरियाणा के शहरों में जाते हैं, वे भी चिट्टे की लत का शिकार हो रहे हैं. कुछ अभिभावकों को जब पता चला कि हिमाचल से बाहर पढ़ाई के लिए गए उनके बच्चे नशे के जाल में फंस रहे हैं तो वे अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़वा कर घर ला रहे हैं. चिट्टे का नशा इतना खतरनाक है कि कुछ अरसा लगातार नशा करने के बाद युवा मौत का शिकार हो जाते हैं.
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दस या बीस रुपए के नोट पर चिट्टा रखकर और फिर नोट के नीचे लाइटर सुलगा कर चिट्टे को सूंघा जाता है. उससे एक अजीब सा नशा हो जाता है. इस प्रक्रिया में नोट कुछ हद तक जल भी जाता है. पुलिस के अनुसार अभिभावकों को जवान होते बच्चों पर नजर रखनी चाहिए. यदि उनकी आदतें असामान्य रूप से बदलने लगे और व्यवहार में परिवर्तन आए तो चौकस हो जाएं. यहां चिंताजनक बात देखने में आई थी कि नशे की लत में (drug addiction in himachal) बुरी तरह फंसे शिमला के युवक ने तस्करों को अपनी मां के गहने बेच चिट्टे का जुगाड़ किया था. संजौली में नशे के कारण एक दशक में नौ युवकों की मौत हो चुकी है.
हिमाचल पुलिस में एसपी (नारकोटिक्स क्राइम) रहीं शुभ्रा तिवारी का कहना है कि अभिभावकों को भी सतर्क (himachal drug addiction Awareness) रहने की जरूरत है. उल्लेखनीय है कि हिमाचल हाईकोर्ट ने 2017 में नशे के तस्करों को मौत की सजा का प्रावधान करने के लिए कहा था. सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा के अनुसार हिमाचल ज्ञान विज्ञान समिति निरंतर नशे के खिलाफ अभियान चलाती है. नशे के शिकार युवाओं की काउंसलिंग और उनका पुनर्वास जरूरी है. हिमाचल सरकार ने इसी बजट सत्र में बताया था कि प्रदेश में 6 नशा निवारण केंद्र चलाए जा रहे हैं. हिमाचल में तब एक महीने में ही एनडीपीएस के 138 मामले दर्ज किए गए थे.
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