किन्नौर: किन्नौर जिले के विभिन्न क्षेत्रों में माघ माह में मनाया जाने वाला साजो पर्व बड़ी ही आस्था के (Sazo festival celebrated in Kinnaur) साथ मनाया गया. डेढ़ से दो फीट बर्फबारी के बीच देवी देवताओं की पूजा करके बड़े ही उल्लास से यह पर्व मनाया. मान्यता के अनुसार साजो पर्व के बाद किन्नौर में नववर्ष शुरू होता है. जिले में 13 जनवरी से ही साजो मेले की शुरुआत होती है जिसके बाद अलग अलग क्षेत्रों में देवी देवता अपने गांव की परंपरा अनुसार ग्रामीणों के मध्य निकलकर मेला करते हैं और सभी को आशीर्वाद प्रदान करते हैं.
माघ के पहले दिन किन्नौर के देवी-देवता स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं और करीब 15 दिन बाद पृथ्वी लोक का आगमन होता है. इस दिन घर में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाकर पूजा-पाठ किया जाता है. साथ ही देवी-देवता वर्षभर के लिए भी भविष्यवाणी करते हैं जिसका इंतजार लोग बेसब्री से करते हैं.
इस दौरान स्थानीय देवी-देवताओं ने भी ग्रामीणों को आशीर्वाद प्रदान किया और इस मेले की समाप्ति के बाद देवी-देवताओं ने स्वर्गलोक की ओर प्रस्थान किया. वहीं, यहां के नियमानुसार जब तक देवी देवता धरती लोक वापस नहीं आ जाते तब तक गांव में हर प्रकार के कार्यक्रमों पर प्रतिबंध रहता है.
कल्पा गांव के ग्रामीण बलदेव बिष्ट नेगी का कहना है कि मान्यता अनुसार (history of sazo festival) सतयुग में देवी चंडिका का कल्पा में राजपाठ चलता था और इस सेरिग जगह पर राक्षस रहते थे. दोनों के मध्य अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए लड़ाई होती रहती थी और दोनों में कोई पराजित नहीं होता था.
अंत में देवी की मदद के लिए तेक (शिव का स्वरूप) सेरिग में प्रकट हुए जो आज भी धरांक (पत्थर की शिला) सेरिग खेत में मौजूद हैं. दोनों ने मिलकर राक्षसों का सामना किया और आज भी इसी परंपरा को निभाते हुए देवी तेक यानी बड़े गुप्त देवता से मिलने सेरिग में आते हैं. इस दौरान ग्रामीण, देवी देवताओं के पारम्परिक गीतों को गाते हैं और पूजा पाठ भी करते हैं.
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