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IGMC में एडमिट मरीजों को बाहर से दवाएं और सर्जिकल आइटम लिखने के विरोध में RDA, प्रबंधन से की ये मांग - आईजीएमसी रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन

आईजीएमसी में एडमिट मरीजों को बाहर से दवाएं और सर्जिकल आइटम लिखने के विरोध में आईजीएमसी रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन (IGMC Resident Doctors Association , आरडीए) के सदस्य भी अब सामने आ गए हैं. आरडीए पदाधिकारियों का कहना है कि बाहर में कुछ दवा विक्रेता जानबूझकर मरीजों को महंगी दवाएं देते हैं. आईजीएमसी आरडीए अध्यक्ष (IGMC RDA President) विक्रम भरवाल कहा कि बाहर से दवाएं लिखने और लाने में काफी परेशानी आती है.

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आईजीएमसी.
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Published : Nov 12, 2021, 10:02 PM IST

शिमला: आईजीएमसी में एडमिट मरीजों (Admit patients in IGMC) को बाहर से दवाएं और सर्जिकल आइटम लिखने के विरोध में आईजीएमसी रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन (IGMC Resident Doctors Association) के सदस्य आगे आ गए हैं. एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि आईजीएमसी में एडमिट मरीजों और तीमारदारों को दवाओं और सर्जिकल आइटम लेने के लिए परेशान होना पड़ता है. खासकर हिमकेयर और आयुष्मान कार्ड होल्डरों को जब सरकार फ्री में इलाज दे रही है तो फिर उन्हें सामान अंदर बने सेंट्रल स्टोर से मुहैया क्यों नहीं करवाया जाता.

रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों से भी समस्या को लेकर आरडीए कार्यकारिणी मिल चुकी है. एसोसिएशन इसे लेकर आरडीए अध्यक्ष डाॅ विक्रम भरवाल की अध्यक्षता में एक बैठक भी कर चुकी है, जिसमें सभी आरडीए डाॅक्टरों ने इस समस्या को उठाया गया. पदाधिकारियों का कहना है कि जहां इससे तीमारदार और मरीज परेशान हो रहे हैं, वहीं डाॅक्टरों को भी एक-एक सामान के लिए उन्हें बाहर भेजने में दिक्कतें आती हैं.

इसलिए मरीजों के पक्ष में आए हैं डाॅक्टर: आरडीए डाॅक्टर इसलिए भी मरीजों के पक्ष में आए हैं, क्योंकि आईजीएमसी में सभी कार्ड होल्डर मरीजों के एडमिट होने के बाद उनके इलाज के लिए डाॅक्टर एक पैकेज तैयार करते हैं. यह पैकेज मरीज की बीमारी के अनुसार होता है. आरडीए पदाधिकारियों का दावा है कि बाहर में कुछ दवा विक्रेता जानबूझकर मरीजों को महंगी दवाएं देते हैं. इससे मरीज का तैयार किया गया इलाज का पैकेज भी जल्दी खत्म हो जाता है. वहीं, कई बार मरीज को अपनी जेब से भी इलाज के पैसे खर्च करने पड़ते हैं.

मरीजों और तीमारदारों को होती हैं ये परेशानी: इसके अलावा बाहर से दवाएं लिखने और लाने में काफी परेशानी आती है. जब डाॅक्टर दवाएं लिखते हैं तो इसमें पहले पर्ची की फोटो स्टेट करवाने लिए बाहर जाना पड़ता है. उसके बाद इसमें संबंधित वार्ड के डाॅक्टरों के साइन होते हैं. यहां से फिर मरीज को डिस्पेंसरी में इसके लिए स्टांप लगवानी होती है. फिर मरीज को फ्री मेडिसन स्टोर में दवाएं या सामान लेने भेजा जाता है. हैरानी कि बात यह है कि यहां पर आधी दवाएं भी नहीं मिलती हैं. फिर यहां पर स्टांप लगवाकर मरीज को दोबारा से जन औषधि केंद्रों (Jan Aushadhi Kendra) में पहुंचना पड़ता है. इस प्रक्रिया में करीब आधे से एक घंटे तक का समय खराब होता है.

इस संबंध में आईजीएमसी आरडीए अध्यक्ष (IGMC RDA President) विक्रम भरवाल ने बताया कि नेरचौक व मंडी का पैटर्न आईजीएमसी में भी लागू किया जाना चाहिए. वहां पर मरीजों को सारा सामान अस्पताल के अंदर स्टोर से मिलता है.

शिमला: आईजीएमसी में एडमिट मरीजों (Admit patients in IGMC) को बाहर से दवाएं और सर्जिकल आइटम लिखने के विरोध में आईजीएमसी रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन (IGMC Resident Doctors Association) के सदस्य आगे आ गए हैं. एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि आईजीएमसी में एडमिट मरीजों और तीमारदारों को दवाओं और सर्जिकल आइटम लेने के लिए परेशान होना पड़ता है. खासकर हिमकेयर और आयुष्मान कार्ड होल्डरों को जब सरकार फ्री में इलाज दे रही है तो फिर उन्हें सामान अंदर बने सेंट्रल स्टोर से मुहैया क्यों नहीं करवाया जाता.

रेजिडेंट डाॅक्टर एसोसिएशन का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों से भी समस्या को लेकर आरडीए कार्यकारिणी मिल चुकी है. एसोसिएशन इसे लेकर आरडीए अध्यक्ष डाॅ विक्रम भरवाल की अध्यक्षता में एक बैठक भी कर चुकी है, जिसमें सभी आरडीए डाॅक्टरों ने इस समस्या को उठाया गया. पदाधिकारियों का कहना है कि जहां इससे तीमारदार और मरीज परेशान हो रहे हैं, वहीं डाॅक्टरों को भी एक-एक सामान के लिए उन्हें बाहर भेजने में दिक्कतें आती हैं.

इसलिए मरीजों के पक्ष में आए हैं डाॅक्टर: आरडीए डाॅक्टर इसलिए भी मरीजों के पक्ष में आए हैं, क्योंकि आईजीएमसी में सभी कार्ड होल्डर मरीजों के एडमिट होने के बाद उनके इलाज के लिए डाॅक्टर एक पैकेज तैयार करते हैं. यह पैकेज मरीज की बीमारी के अनुसार होता है. आरडीए पदाधिकारियों का दावा है कि बाहर में कुछ दवा विक्रेता जानबूझकर मरीजों को महंगी दवाएं देते हैं. इससे मरीज का तैयार किया गया इलाज का पैकेज भी जल्दी खत्म हो जाता है. वहीं, कई बार मरीज को अपनी जेब से भी इलाज के पैसे खर्च करने पड़ते हैं.

मरीजों और तीमारदारों को होती हैं ये परेशानी: इसके अलावा बाहर से दवाएं लिखने और लाने में काफी परेशानी आती है. जब डाॅक्टर दवाएं लिखते हैं तो इसमें पहले पर्ची की फोटो स्टेट करवाने लिए बाहर जाना पड़ता है. उसके बाद इसमें संबंधित वार्ड के डाॅक्टरों के साइन होते हैं. यहां से फिर मरीज को डिस्पेंसरी में इसके लिए स्टांप लगवानी होती है. फिर मरीज को फ्री मेडिसन स्टोर में दवाएं या सामान लेने भेजा जाता है. हैरानी कि बात यह है कि यहां पर आधी दवाएं भी नहीं मिलती हैं. फिर यहां पर स्टांप लगवाकर मरीज को दोबारा से जन औषधि केंद्रों (Jan Aushadhi Kendra) में पहुंचना पड़ता है. इस प्रक्रिया में करीब आधे से एक घंटे तक का समय खराब होता है.

इस संबंध में आईजीएमसी आरडीए अध्यक्ष (IGMC RDA President) विक्रम भरवाल ने बताया कि नेरचौक व मंडी का पैटर्न आईजीएमसी में भी लागू किया जाना चाहिए. वहां पर मरीजों को सारा सामान अस्पताल के अंदर स्टोर से मिलता है.

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