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गांधी जयंती: हिमाचल का 'काला पानी' थी ये जेल, मेहमान बनकर महात्मा गांधी ने गुजारी थी यहां एक रात - गांधी जयंती

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साल 1920 में सोलन में बनी डगशाई जेल में एक दिन की यात्रा पर आए थे. इस जेल में आइरिश सैनिकों को अंग्रेज कैदी बनाकर रखते थे. जिनका हाल जानने के लिए महात्मा गांधी यहां पर आए. पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को उपहार में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित किया.

MAHATMA GANDHI CONNECTION TO DAGSHAI JAIL OF HIMACHAL
फोटो.
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Published : Oct 2, 2021, 5:15 AM IST

Updated : Oct 2, 2021, 9:46 AM IST

शिमला: मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है. 2 अक्टूबर, 1869 को जन्म इनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. ब्रिटिश काल से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हिमाचल से खास नाता था. वे अक्सर उस समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में आते रहते थे.

सोलन जिला से 15 किलोमीटर की दूरी पर बनी डगशाई जेल में महात्मा गांधी साल 1920 में एक दिन की यात्रा पर आए थे. ये जेल अंग्रेजों ने बनवाई थी. इस जेल में आइरिश सैनिकों को अंग्रेज कैदी बनाकर रखते थे. जिनका हाल जानने के लिए महात्मा गांधी यहां पर आए. जेल की अंधेरी कोठरियों को देखकर आज भी लोगों की रुह कांप जाती है. इसी वजह से इसे हिमाचल का काला पानी भी कहा जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी था.

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनके बारे में जानने पर रूह कांप जाती है. इन कोठरियों में अंग्रेजों के किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.

सोलन की डगशाई जेल भी ऐसी ही एक जेल है जहां अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई के क्रांतिवीरों को ना सिर्फ कैद किया बल्कि उनपर जुल्म भी ढहाए. देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.

पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित कर साल 1849 में बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था. जेल में कुल 54 कोठरियां हैं जिनमें हवा और रोशनी नहीं आती थी. वहीं, 16 कोठरियों को एकांत कक्ष बनाया गया था जिनमें कैदियों को कठोर सजा दी जाती थी.

अब इस जेल को संग्रालय बना दिया गया है. जेल के जिस हिस्से में महात्मा गांधी ठहरे थे उसमें बापू की एक तस्वीर लगाई गई है जिसमें वे चरखा चला रहे हैं. यह जेल 'टी' आकार की है, जिसमें ऊंची छत और लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे ये उद्देश्य रहा होगा कि कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके.

केंद्रीय जेल का निर्माण सन् 1849 में 72 हजार 875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं. हर कैदकक्ष का क्षेत्रफल 812 फीट और छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी उसी स्वरूप में हैं. खास लोहे से बने कैदकक्ष यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण लोहे से किया गया है. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फांदकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए भी किया था.

ये भी पढ़ें: गांधी जयंती: शिमला में किसने लगवाई थी राष्ट्रपिता की प्रतिमा...कोई नहीं जानता

शिमला: मोहनदास करमचंद गांधी जिन्हें राष्ट्रपिता के नाम से भी जाना जाता है. 2 अक्टूबर, 1869 को जन्म इनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. ब्रिटिश काल से ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हिमाचल से खास नाता था. वे अक्सर उस समय भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला में आते रहते थे.

सोलन जिला से 15 किलोमीटर की दूरी पर बनी डगशाई जेल में महात्मा गांधी साल 1920 में एक दिन की यात्रा पर आए थे. ये जेल अंग्रेजों ने बनवाई थी. इस जेल में आइरिश सैनिकों को अंग्रेज कैदी बनाकर रखते थे. जिनका हाल जानने के लिए महात्मा गांधी यहां पर आए. जेल की अंधेरी कोठरियों को देखकर आज भी लोगों की रुह कांप जाती है. इसी वजह से इसे हिमाचल का काला पानी भी कहा जाता है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का हत्यारा नाथू राम गोडसे इस जेल का अंतिम कैदी था.

ब्रिटिशकाल के दौरान हिमाचल में बने कई भवन अपनी भव्यता के लिए पहचान रखते हैं, लेकिन कुछ भवन ऐसे भी हैं, जिनके बारे में जानने पर रूह कांप जाती है. इन कोठरियों में अंग्रेजों के किए गए जुल्मों से आज भी दिल सहम उठता है और मन भगवान का शुक्रिया अदा करता है कि हम उस गुलामी की जंजीरों की बजाए आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.

सोलन की डगशाई जेल भी ऐसी ही एक जेल है जहां अंग्रेजों ने आजादी की लड़ाई के क्रांतिवीरों को ना सिर्फ कैद किया बल्कि उनपर जुल्म भी ढहाए. देश की सबसे पुरानी ब्रिटिश छावनियों में से एक डगशाई छावनी में भारतीयों पर हुए जुल्मों की कहानी सुनकर आज भी लोग सिहर उठते हैं.

पहाड़ी पर स्थित डगशाई गांव को महाराजा पटियाला ने अंग्रेजों को दान में दिया था और अंग्रेजों ने इसे अपनी छावनी के रूप में स्थापित कर साल 1849 में बागियों को रखने के लिए एक केंद्रीय कारागार का भी निर्माण करवाया था. जेल में कुल 54 कोठरियां हैं जिनमें हवा और रोशनी नहीं आती थी. वहीं, 16 कोठरियों को एकांत कक्ष बनाया गया था जिनमें कैदियों को कठोर सजा दी जाती थी.

अब इस जेल को संग्रालय बना दिया गया है. जेल के जिस हिस्से में महात्मा गांधी ठहरे थे उसमें बापू की एक तस्वीर लगाई गई है जिसमें वे चरखा चला रहे हैं. यह जेल 'टी' आकार की है, जिसमें ऊंची छत और लकड़ी का फर्श है. ऐसे निर्माण के पीछे ये उद्देश्य रहा होगा कि कैदी की किसी भी गतिविधियों की आवाज को चौकसी दस्ते आसानी से सुन सके.

केंद्रीय जेल का निर्माण सन् 1849 में 72 हजार 875 रुपये की लागत से किया गया था, जिसमें 54 कैदकक्ष हैं. हर कैदकक्ष का क्षेत्रफल 812 फीट और छत 20 फीट ऊंची है. भूमिगत पाइपलाइन से भी अंदर हवा आने की सुविधा है, जो बाहर की दीवारों में जाकर खुलती है. इसका फर्श व द्वार दीमक प्रतिरोधी सागौन की लकड़ी से बने हैं जो आज भी उसी स्वरूप में हैं. खास लोहे से बने कैदकक्ष यहां जेल में बने हर कैदकक्ष के द्वारों का निर्माण लोहे से किया गया है. जेल एक मजबूत किले की तरह है, जिसका मुख्य द्वार बंद होने के बाद न तो फांदकर बाहर जाया जा सकता है और न ही अंदर प्रवेश किया जा सकता है. अंग्रेजों ने इस जेल का इस्तेमाल बागी आयरिश कैदियों को रखने के लिए भी किया था.

ये भी पढ़ें: गांधी जयंती: शिमला में किसने लगवाई थी राष्ट्रपिता की प्रतिमा...कोई नहीं जानता

Last Updated : Oct 2, 2021, 9:46 AM IST
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