शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने शास्त्री अध्यापकों की भर्ती के लिए बीएड शैक्षणिक योग्यता को अनिवार्य करने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान व न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने सभी पक्षकारों की ओर से दी गई दलीलें सुनने के पश्चात फैसला सुरक्षित रख लिया. मामले के अनुसार बीएड डिग्री धारकों ने 19 फरवरी 2020 की अधिसूचना के तहत करवाई जा रही शास्त्री पदों की भर्तियों को हाई कोर्ट में चुनौती दी है. कोर्ट ने 28 दिसम्बर 2021 को राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि भविष्य में एनसीटीई द्वारा जारी अधिसूचना के खिलाफ शास्त्री के पदों पर भर्ती न करे, चाहे यह भर्तियां बैच वाइज हो या हिमाचल प्रदेश सबोर्डिनेट स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के माध्यम से हो.
प्रार्थियों का आरोप है कि सरकार द्वारा शास्त्री पदों पर की जा रही भर्ती में बीएड अनिवार्य नहीं है. याचिकाकर्ताओं ने चुनौती दी है कि ये भर्ती एनसीटीई दिशानिर्देशों के विपरीत है और ये शिक्षा के अधिकार व मौलिक अधिकारों के विपरीत भी है. कोर्ट द्वारा समय समय पर जारी आदेशों के तहत एक बार राज्य सरकार से पूछा था कि ऐसे कितने शास्त्री हैं जिन्हें वर्ष 2012 से 23 सितंबर 2018 तक बिना बीएड की डिग्री के नियुक्त किया गया है. कोर्ट ने 29 जुलाई 2011 को एनसीटीई द्वारा जारी अधिसूचना के पश्चात की गई इस तरह की नियुक्तियों बाबत शपथ पत्र के माध्यम से स्पष्टीकरण भी मांगा था.
कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा था कि वर्ष 2018 के बाद शास्त्री के पदों पर ऐसे कितने लोगों की बैच वाइज भर्ती की गई है जिन्होंने एलिमेंट्री एजुकेशन डिप्लोमा या बीएड की डिग्री हासिल नहीं कर रखी है. न्यायालय ने इस बाबत भी स्पष्टीकरण मांगा था कि कोर्ट के समक्ष वक्तव्य देने के बाद भी सरकार ने शास्त्री के पदों पर होने वाली नियुक्ति के भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में आज तक एनसीटीई की अधिसूचना के मुताबिक संशोधन क्यों नहीं किया गया. अब कोर्ट ने पूरे मामले पर तीन दिन चली बहस के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया.
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