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HIMACHAL HIGH COURT: पोस्टिंग आदेशों को वापस लेने वाली याचिका खारिज - court-dismissed-petition

न्यायपालिका की स्वतंत्रता में लोगों का विश्वास न केवल जनहित में, बल्कि समाज के हित में भी सर्वोपरी है.प्रदेश हाईकोर्ट(High Court) ने यह टिप्पणी पोस्टिंग आदेशों को वापस लेने वाले आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की.

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Published : Nov 15, 2021, 8:29 PM IST

शिमला: न्यायपालिका की स्वतंत्रता में लोगों का विश्वास न केवल जनहित में, बल्कि समाज के हित में भी सर्वोपरी है. लोगों के इसी विश्वास को बनाये रखने का दायित्व वकीलों, न्यायाधीशों, विधायकों और अधिकारियों का बनता है. प्रदेश हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पोस्टिंग आदेशों को वापस लेने वाले आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान(Judge Tarlok Singh Chauhan) व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय में याचिकाकर्ता जैसे वादी के लिए कोई जगह नहीं जिसका न्यायपालिका पर कोई विश्वास नहीं है. मामले के अनुसार एचआरटीसी मंडी में तैनात ड्राइवर दीपक राज शर्मा को 28 अगस्त 2020 को जारी आदेशों के तहत इंचार्ज ड्राइवर्ज ड्यूटी पोस्टिंग(Incharge Driver Duty Posting) दी गयी थी.

जिन्हें अगले ही दिन वापस भी ले लिया गया था. प्रार्थी ने इन पोस्टिंग ऑर्डर वापस लेने वाले आदेशों को हाईकोर्ट में यह कहकर चुनौती दी थी कि उसके पोस्टिंग आदेश राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते वापस लिए गए और किसी अन्य ड्राइवर को इंचार्ज ड्राइवर्ज ड्यूटी तैनाती दी गई. कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का आचरण बोर्ड से ऊपर नहीं रहा, क्योंकि वह खुद ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ड्राइवर और कंडक्टर सहित विभिन्न यूनियनों को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. इतना ही नही कोर्ट ने मामले का रिकॉर्ड देखने पर पाया कि प्रार्थी ने अपनी मनमाफिक पोस्टिंग ऑर्डर पाने के लिए 15 अगस्त 2019 को भारतीय जनता पार्टी जिला मंडी के अध्यक्ष से मुलाकात कर सिफारिश भी करवाई जिससे जाहिर होता है कि उसका न्यायपालिका पर कोई विश्वास नहीं है.

कोर्ट ने इसी मामले में एक बार फिर स्पष्ट किया कि एचआरटीसी प्रबंधन कर्मचारियों के गैर-सहमति तबादलों के लिए किसी भी कर्मचारी संघ द्वारा की गई ऐसी सिफारिशों पर विचार करने और निर्णय लेने या कार्य करने पर विचार नहीं करेगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी यूनियन ने अगर इस तरह से कार्य मे शामिल होने का दुःसाहस किया तो उनके खिलाफ अदालतों की अवमानना सहित कोई अन्य कार्रवाई करने के अलावा इन यूनियनों/संघों को सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए मान्यता से वंचित और अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास बनाए रखना आवश्यक. ऐसा न करने पर यह अपना सम्मान खो देगी.

ये भी पढ़ें :पीएम नरेंद्र मोदी के सोलर एनर्जी के सपने को नई ऊंचाइयां दे रहा हिमाचल, अब ग्रीन सिटी होगी राजधानी शिमला

शिमला: न्यायपालिका की स्वतंत्रता में लोगों का विश्वास न केवल जनहित में, बल्कि समाज के हित में भी सर्वोपरी है. लोगों के इसी विश्वास को बनाये रखने का दायित्व वकीलों, न्यायाधीशों, विधायकों और अधिकारियों का बनता है. प्रदेश हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी पोस्टिंग आदेशों को वापस लेने वाले आदेशों को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की. न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान(Judge Tarlok Singh Chauhan) व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने कहा कि न्यायालय में याचिकाकर्ता जैसे वादी के लिए कोई जगह नहीं जिसका न्यायपालिका पर कोई विश्वास नहीं है. मामले के अनुसार एचआरटीसी मंडी में तैनात ड्राइवर दीपक राज शर्मा को 28 अगस्त 2020 को जारी आदेशों के तहत इंचार्ज ड्राइवर्ज ड्यूटी पोस्टिंग(Incharge Driver Duty Posting) दी गयी थी.

जिन्हें अगले ही दिन वापस भी ले लिया गया था. प्रार्थी ने इन पोस्टिंग ऑर्डर वापस लेने वाले आदेशों को हाईकोर्ट में यह कहकर चुनौती दी थी कि उसके पोस्टिंग आदेश राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते वापस लिए गए और किसी अन्य ड्राइवर को इंचार्ज ड्राइवर्ज ड्यूटी तैनाती दी गई. कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का आचरण बोर्ड से ऊपर नहीं रहा, क्योंकि वह खुद ही अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ड्राइवर और कंडक्टर सहित विभिन्न यूनियनों को एक ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा था. इतना ही नही कोर्ट ने मामले का रिकॉर्ड देखने पर पाया कि प्रार्थी ने अपनी मनमाफिक पोस्टिंग ऑर्डर पाने के लिए 15 अगस्त 2019 को भारतीय जनता पार्टी जिला मंडी के अध्यक्ष से मुलाकात कर सिफारिश भी करवाई जिससे जाहिर होता है कि उसका न्यायपालिका पर कोई विश्वास नहीं है.

कोर्ट ने इसी मामले में एक बार फिर स्पष्ट किया कि एचआरटीसी प्रबंधन कर्मचारियों के गैर-सहमति तबादलों के लिए किसी भी कर्मचारी संघ द्वारा की गई ऐसी सिफारिशों पर विचार करने और निर्णय लेने या कार्य करने पर विचार नहीं करेगा. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी भी यूनियन ने अगर इस तरह से कार्य मे शामिल होने का दुःसाहस किया तो उनके खिलाफ अदालतों की अवमानना सहित कोई अन्य कार्रवाई करने के अलावा इन यूनियनों/संघों को सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए मान्यता से वंचित और अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. कोर्ट ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि न्यायपालिका में आम जनता का विश्वास बनाए रखना आवश्यक. ऐसा न करने पर यह अपना सम्मान खो देगी.

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