शिमला: आम बजट आने वाला है. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट (Union budget of India) पेश करेंगी. पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के पास खुद के आर्थिक संसाधन सीमित हैं और ये आर्थिक विकास और विकास परियोजनाओं के लिए अधिकतर केंद्रीय मदद पर निर्भर है. यूं तो आम बजट स्टेट स्पेसेफिक नहीं होता, फिर भी कुछ घोषणाएं ऐसी होती हैं, जिनका प्रभाव राज्यों पर भी पड़ता है. हिमाचल प्रदेश देश का प्रमुख सेब उत्पादक राज्य है. यहां चार लाख बागवान परिवार हैं.
हिमाचल की भौगोलिक परिस्थितियां जटिल हैं. प्रदेश की आर्थिकी में 4500 से 5000 करोड़ रुपए सालाना का योगदान देने वाले बागवानी सेक्टर की मांगों और समस्याओं को लेकर ईटीवी भारत ने हिमाचल में सेब उत्पादन से जुड़े नामी (problems of the horticulture sector) बागवानों से चर्चा की. ईटीवी भारत से ऑनलाइन जुड़े बागवानों में शिमला जिला के विख्यात चेहरे रामलाल चौहान सहित (Horticulture Sector in Himachal pradesh) उच्च शिक्षित युवा बागवान पंकज डोगरा, रिशभ चौहान सहित कुछ अन्य लोग जुड़े.
शिमला जिले के ढांगवी इलाके (Discussion of etv bharat with Orchardists) के बागवान रामलाल चौहान किसी परिचय के मोहताज नहीं है. सेब उत्पादन के क्षेत्र में दशकों के अनुभव से संपन्न रामलाल चौहान ने कई देशों की यात्रा कर वहां के बागवानी सेक्टर की खासियतों को नजदीक से देखा है. रामलाल चौहान ने कहा कि हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां विकट हैं. हिमाचल एकमात्र ऐसा सेब उत्पादक क्षेत्र है, जहां सिंचाई सुविधा (apple producing states himachal) के बिना उत्पादन किया जा रहा है. विश्व के अन्य सेब उत्पादक देशों में बागीचों तक सड़कें हैं. इससे उन्हें अपनी उपज मंडियों तक पहुंचाने में आसानी रहती है. हालांकि हिमाचल में ये काम लंबी प्रक्रिया वाला है, लेकिन इस दिशा में सोचा जाना चाहिए.
रामलाल चौहान ने कहा कि प्रदेश (Orchardists of HP) के सेब उत्पादन सेक्टर की दूसरी जरूरत सिंचाई सुविधा की है. उन्होंने इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति की जरूरत पर बल दिया और कहा कि इजराइल जैसा देश एक तालाब से भी सिंचाई का काम ले लेता है, हिमाचल के पास तो फिर भी नदियां हैं. इसी तरह रामलाल चौहान ने बागवानी सेक्टर से जुड़ी योजनाओं को तैयार करने में फील्ड का अनुभव रखने वाले बागवानों को नीति निर्धारण में शामिल करने की बात कही. उन्होंने केंद्र व राज्य सरकारों से इस दिशा में गंभीरता से काम करने की सलाह दी.
वहीं, बागवानी में पीढ़ियों की परंपरा को आगे बढ़ा रहे (Problems of Orchardists in himachal) उच्च शिक्षित युवा बागवान पंकज डोगरा ने कहा कि केंद्र सरकार को सेब आयात पर शुल्क को बढ़ाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ईरान, टर्की, चिली आदि देशों से आने वाला सेब सस्ता पड़ता है. हिमाचल के बागवान विपरीत परिस्थितियों में सेब उगाते हैं. भारत एक विशाल मार्केट है और ऐसे में विदेशी सेब का कारोबार करने वालों की बजाय देश के उत्पादकों का हित देखना चाहिए. उन्होंने सेब को ओपन जनरल लाइसेंसिंग से मुक्त कर विशेष कैटेगरी में रखने की मांग की. साथ ही सेब उत्पादन में जरूरी पैस्टीसाइड्स व अन्य सामान का इंपोर्ट सस्ता सुनिश्चित करने की वकालत की. उन्होंने फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स (food processing units in Himachal) स्थापित करने की बात भी कही.
हिमाचल का कुल्लू जिला भी सेब उत्पादन में अहम स्थान रखता है. ईटीवी के रिपोर्टर बालकृष्ण शर्मा का मानना है कि सेब सीजन के दौरान सड़कों की दशा खराब होने से उपज को मंडी तक पहुंचाना मुश्किल होता है. बालकृष्ण शर्मा का कहना था कि सेब को सुरक्षित रखने के लिए जिला में सीए स्टोर की सुविधा भी होनी चाहिए.
युवा बागवान रिशभ चौहान ने बागवानों की अलग तरह की समस्या की तरफ ध्यान आकर्षित किया. रिशभ चौहान ने कहा कि एमआईएस यानी मंडी मध्यस्थता योजना के तहत बागवानों को टूल्स की बजाय नकद भुगतान किया जाना चाहिए. अभी बागवानों का जो सेब खरीदा जाता है, बदले में एचपीएमसी टूल्स देता है. ये टूल्स महंगे होते हैं. बाजार में जो उपकरण चालीस हजार का होता है, वो बागवानों को साठ हजार में दिया जाता है. राज्य सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए.
चिली से सेब का सबसे ज्यादा आयात- सेब उत्पादन के कारण खास पहचान बनाने वाले शिमला जिले के (Apple production in Himachal) मड़ावग गांव के युवा बागवान पंकज डोगरा विदेशी सेब के खतरों से आगाह करते हैं. पंकज डोगरा कहते हैं कि पिछले सेब सीजन में अप्रैल 2021 से नवंबर 2021 तक देश में जितना भी सेब आयात हुआ उसमें चिली का सबसे अधिक आंकड़ा है. भारत में कुल आयात का 25 फीसदी चिली से 12.43 फीसदी तुर्की से और 7.75 फीसदी ईरान से आयात हुआ.
विगत में यह देखा गया है कि भारत के साथ सटे देशों के व्यापारी नियमों के खिलाफ ईरान का सेब भारत पहुंचाते हैं. इससे ईरान को भी लाभ है और कारोबारियों को भी. ईरान से एक क्रेट सेब 300 से 600 रुपए में देश की मंडियों में पहुंच जाता है. वहीं हिमाचल में एक पेटी सेब को पौधे से तोड़ना और पैक करके मार्केट में पहुंचाने में अधिकतम 300 रुपए खर्च होते हैं.
ये भी पढ़ें- हिमाचल को परेशान कर रहा तुर्की और ईरान का सेब, 4500 करोड़ के कारोबार पर पड़ रही मार