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करगिल की विजय में चमक रहा देवभूमि के बांकुरों का खून, अब तो हिमालयन रेजिमेंट दे दो सरकार

करगिल युद्ध के इसी पराक्रम में छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के रणबांकुरों की कुर्बानी स्वर्ण अक्षरों में चमक रही है. हिमाचल के सैन्य अफसरों व जांबाजों ने युद्ध के मैदान और अन्य बहादुरी की कहानियों को साकार रूप देते हुए 1159 शौर्य सम्मान हासिल किए हैं. प्रदेश के तीन लाख से अधिक जांबाज इस समय सेना में हैं. इस तरह करीब साढ़े चार लाख हिमाचली परिवार भारतीय सेना का गौरवमयी हिस्सा हैं. हिमाचल प्रदेश केंद्र सरकार से हिमालयन रेजिमेंट के गठन का आग्रह करता आ रहा है लेकिन अब तक यह मांग पूरी नहीं हुई है.

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Published : Jul 26, 2021, 9:45 AM IST

Updated : Jul 26, 2021, 10:04 AM IST

शिमला: सप्ताह के पहले दिन यानी सोमवार को इस समय देश करगिल युद्ध में भारतीय वीरों के पराक्रम को याद कर रहा है. विजय दिवस के अवसर पर भारत की सेना के अद्भुत शौर्य को हर देशवासी प्रणाम कर रहा है. करगिल युद्ध के इसी पराक्रम में छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के रणबांकुरों की कुर्बानी स्वर्ण अक्षरों में चमक रही है. महज सत्तर लाख की आबादी वाले पहाड़ी प्रदेश के बेमिसाल शौर्य ने विरली गाथा लिखी है. इसी गाथा में परमवीर विक्रम बत्रा का बलिदान अमर कहानी के रूप में दर्ज है.

परमवीर संजय कुमार करगिल की शौर्य गाथा कहने के लिए हमारे बीच उपस्थित हैं. करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 वीरों ने अपने लहू से विजय गाथा लिखी है. गर्व की बात है कि देश के पहले परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा भी हिमाचल से ही थे. मेजर शर्मा की ये विरासत कैप्टन धन सिंह थापा, अमर बलिदानी कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन (अब सूबेदार मेजर) संजय कुमार तक विस्तार पाती है. भारतीय सेना ने युद्ध भूमि व शौर्य के अन्य मोर्चों पर दुनिया में अनूठी मिसाल पेश की है. भारतीय सेना के शौर्य के किस्सों में हिमाचल के वीरों की शान भी खूब है.

हिमाचल के सैन्य अफसरों व जांबाजों ने युद्ध के मैदान और अन्य बहादुरी की कहानियों को साकार रूप देते हुए 1159 शौर्य सम्मान हासिल किए हैं. इनमें भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान के तौर पर 4 परमवीर चक्र, दो अशोक चक्र, दस महावीर चक्र, 18 कीर्ति चक्र, 51 वीरचक्र, 89 शौर्य चक्र व 985 अन्य सेना मेडल शामिल हैं. आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारतीय सेना को मिले शौर्य सम्मानों में से हर 10वां मेडल हिमाचली वीर के सीने पर सजा है. करीब 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में 1.06 लाख से अधिक भूतपूर्व फौजी हैं. यानी एक लाख से अधिक फौजी देश की सेवा करने के बाद सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं. यदि सेवारत सैनिकों व अफसरों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के तीन लाख से अधिक जांबाज इस समय सेना में हैं. इस तरह करीब साढ़े चार लाख हिमाचली परिवार भारतीय सेना का गौरवमयी हिस्सा हैं.

इस विस्तृत शौर्य गाथा का अगला पहलू ईटीवी भारत की आज की कहानी का शीर्षक है. हिमाचल ने देश की सेना में शानदार योगदान दिया है. देवभूमि के वीरों के साथ ही आने वाली पीढ़ी इस विरासत को और आगे ले जाने में कोई कसर नहीं रखेगी. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश केंद्र सरकार से हिमालयन रेजीमेंट के गठन का आग्रह करता आ रहा है. हिमाचल की ये मांग पूरी नहीं हुई है. हिमाचल अथवा हिमालयी राज्यों की अलग से बटालियन हो, ये सपना सबसे पहले प्रेम कुमार धूमल ने देखा था. पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने इसके लिए काफी प्रयास किया. बाद में हिमाचल के हर सीएम ने इसके लिए प्रयास किए. स्व. वीरभद्र सिंह और फिर मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर की सरकार ने भी बाकायदा विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा. इन संकल्प प्रस्तावों पर हिमाचल को केंद्र की तरफ से नजर-ए-इनायत का इंतजार है.

इसी संदर्भ में एक किस्सा दर्ज करना जरूरी है. पूर्व पीएम व हिमाचल को दूसरा घर कहने वाले महान नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हिमाचल की ये मांग उठी तो तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने कहा था कि राज्यों के नाम से रेजिमेंट नहीं बनती. तब ये कहा गया कि हिमाचल न सही हिमालयन रेजिमेंट का गठन किया जाए, जिसमें सभी हिमालयी राज्य शामिल हों. यदि ये संभव हो जाए तो हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और अन्य हिमालयी राज्यों के वीरों को नई पहचान भी मिलेगी और युवाओं के सामने शौर्य का आकाश छूने के सपने और समीप हो जाएंगे.

कुछ समय पहले रक्षा मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि जनसंख्या के आधार पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सेना में भागीदारी सर्वाधिक है. देश की जनसंख्या का 16.5 प्रतिशत यूपी में है और सेना में भागीदारी 14.5 प्रतिशत है. इसी तरह पंजाब में देश की जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत हिस्सा है और सेना में भागीदारी 7.7 प्रतिशत है. इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान तथा फिर हरियाणा का नंबर आता है. हरियाणा की सेना में भागीदारी 5.7 प्रतिशत है. यदि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल को देखा जाए तो यहां देश की जनसंख्या का क्रमश: 1.01 और 0.57 प्रतिशत है लेकिन सेना में भागीदारी चार प्रतिशत या उससे अधिक है.

हिमाचल प्रदेश में हर तीसरे घर से एक फौजी की परंपरा चली आ रही है. हिमाचल के वीर लाला राम और भंडारी राम को विक्टोरिया क्रास मिल चुका है. इस समय सत्तासीन पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल से हैं. अनुराग ठाकुर केंद्र में कद्दावर नेता हो चुके हैं. फिर पीएम नरेंद्र मोदी तो हिमाचल को अपना दूसरा घर कहते ही हैं. ऐसे में जब देश में पंजाब रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, सिख लाइट इन्फेंट्री, जम्मू कश्मीर रेजिमेंट, जम्मू कश्मीर राइफल्स, लद्दाख स्काउट्स सक्रिय है तो हिमालयन रेजिमेंट का अस्तित्व भी हो जाए तो सोने पर सुहागा हो सकता है. हिमाचल विधानसभा ने मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर के कार्यकाल में भी ऐसा संकल्प पारित किया है. ये संकल्प करगिल युद्ध के शौर्य और विजय दिवस पर और मजबूत हो तथा केंद्र सरकार हिमालयन रेजिमेंट के गठन को राजी हो तो हर हिमाचल वासी कहेगा...जय हिंद.

ये भी पढ़ें: इस शिव मंदिर में दो धर्मों के अनुयायी एक साथ करते हैं पूजा, यहां पाप-पुण्य का भी होता है फैसला

शिमला: सप्ताह के पहले दिन यानी सोमवार को इस समय देश करगिल युद्ध में भारतीय वीरों के पराक्रम को याद कर रहा है. विजय दिवस के अवसर पर भारत की सेना के अद्भुत शौर्य को हर देशवासी प्रणाम कर रहा है. करगिल युद्ध के इसी पराक्रम में छोटे से पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के रणबांकुरों की कुर्बानी स्वर्ण अक्षरों में चमक रही है. महज सत्तर लाख की आबादी वाले पहाड़ी प्रदेश के बेमिसाल शौर्य ने विरली गाथा लिखी है. इसी गाथा में परमवीर विक्रम बत्रा का बलिदान अमर कहानी के रूप में दर्ज है.

परमवीर संजय कुमार करगिल की शौर्य गाथा कहने के लिए हमारे बीच उपस्थित हैं. करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 वीरों ने अपने लहू से विजय गाथा लिखी है. गर्व की बात है कि देश के पहले परमवीर मेजर सोमनाथ शर्मा भी हिमाचल से ही थे. मेजर शर्मा की ये विरासत कैप्टन धन सिंह थापा, अमर बलिदानी कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन (अब सूबेदार मेजर) संजय कुमार तक विस्तार पाती है. भारतीय सेना ने युद्ध भूमि व शौर्य के अन्य मोर्चों पर दुनिया में अनूठी मिसाल पेश की है. भारतीय सेना के शौर्य के किस्सों में हिमाचल के वीरों की शान भी खूब है.

हिमाचल के सैन्य अफसरों व जांबाजों ने युद्ध के मैदान और अन्य बहादुरी की कहानियों को साकार रूप देते हुए 1159 शौर्य सम्मान हासिल किए हैं. इनमें भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान के तौर पर 4 परमवीर चक्र, दो अशोक चक्र, दस महावीर चक्र, 18 कीर्ति चक्र, 51 वीरचक्र, 89 शौर्य चक्र व 985 अन्य सेना मेडल शामिल हैं. आबादी के लिहाज से देखा जाए तो भारतीय सेना को मिले शौर्य सम्मानों में से हर 10वां मेडल हिमाचली वीर के सीने पर सजा है. करीब 70 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में 1.06 लाख से अधिक भूतपूर्व फौजी हैं. यानी एक लाख से अधिक फौजी देश की सेवा करने के बाद सेवानिवृत जीवन जी रहे हैं. यदि सेवारत सैनिकों व अफसरों की बात की जाए तो हिमाचल प्रदेश के तीन लाख से अधिक जांबाज इस समय सेना में हैं. इस तरह करीब साढ़े चार लाख हिमाचली परिवार भारतीय सेना का गौरवमयी हिस्सा हैं.

इस विस्तृत शौर्य गाथा का अगला पहलू ईटीवी भारत की आज की कहानी का शीर्षक है. हिमाचल ने देश की सेना में शानदार योगदान दिया है. देवभूमि के वीरों के साथ ही आने वाली पीढ़ी इस विरासत को और आगे ले जाने में कोई कसर नहीं रखेगी. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश केंद्र सरकार से हिमालयन रेजीमेंट के गठन का आग्रह करता आ रहा है. हिमाचल की ये मांग पूरी नहीं हुई है. हिमाचल अथवा हिमालयी राज्यों की अलग से बटालियन हो, ये सपना सबसे पहले प्रेम कुमार धूमल ने देखा था. पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल ने इसके लिए काफी प्रयास किया. बाद में हिमाचल के हर सीएम ने इसके लिए प्रयास किए. स्व. वीरभद्र सिंह और फिर मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर की सरकार ने भी बाकायदा विधानसभा से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा. इन संकल्प प्रस्तावों पर हिमाचल को केंद्र की तरफ से नजर-ए-इनायत का इंतजार है.

इसी संदर्भ में एक किस्सा दर्ज करना जरूरी है. पूर्व पीएम व हिमाचल को दूसरा घर कहने वाले महान नेता स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हिमाचल की ये मांग उठी तो तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीस ने कहा था कि राज्यों के नाम से रेजिमेंट नहीं बनती. तब ये कहा गया कि हिमाचल न सही हिमालयन रेजिमेंट का गठन किया जाए, जिसमें सभी हिमालयी राज्य शामिल हों. यदि ये संभव हो जाए तो हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और अन्य हिमालयी राज्यों के वीरों को नई पहचान भी मिलेगी और युवाओं के सामने शौर्य का आकाश छूने के सपने और समीप हो जाएंगे.

कुछ समय पहले रक्षा मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि जनसंख्या के आधार पर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की सेना में भागीदारी सर्वाधिक है. देश की जनसंख्या का 16.5 प्रतिशत यूपी में है और सेना में भागीदारी 14.5 प्रतिशत है. इसी तरह पंजाब में देश की जनसंख्या का 2.3 प्रतिशत हिस्सा है और सेना में भागीदारी 7.7 प्रतिशत है. इसके बाद महाराष्ट्र और राजस्थान तथा फिर हरियाणा का नंबर आता है. हरियाणा की सेना में भागीदारी 5.7 प्रतिशत है. यदि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल को देखा जाए तो यहां देश की जनसंख्या का क्रमश: 1.01 और 0.57 प्रतिशत है लेकिन सेना में भागीदारी चार प्रतिशत या उससे अधिक है.

हिमाचल प्रदेश में हर तीसरे घर से एक फौजी की परंपरा चली आ रही है. हिमाचल के वीर लाला राम और भंडारी राम को विक्टोरिया क्रास मिल चुका है. इस समय सत्तासीन पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल से हैं. अनुराग ठाकुर केंद्र में कद्दावर नेता हो चुके हैं. फिर पीएम नरेंद्र मोदी तो हिमाचल को अपना दूसरा घर कहते ही हैं. ऐसे में जब देश में पंजाब रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, सिख लाइट इन्फेंट्री, जम्मू कश्मीर रेजिमेंट, जम्मू कश्मीर राइफल्स, लद्दाख स्काउट्स सक्रिय है तो हिमालयन रेजिमेंट का अस्तित्व भी हो जाए तो सोने पर सुहागा हो सकता है. हिमाचल विधानसभा ने मौजूदा सीएम जयराम ठाकुर के कार्यकाल में भी ऐसा संकल्प पारित किया है. ये संकल्प करगिल युद्ध के शौर्य और विजय दिवस पर और मजबूत हो तथा केंद्र सरकार हिमालयन रेजिमेंट के गठन को राजी हो तो हर हिमाचल वासी कहेगा...जय हिंद.

ये भी पढ़ें: इस शिव मंदिर में दो धर्मों के अनुयायी एक साथ करते हैं पूजा, यहां पाप-पुण्य का भी होता है फैसला

Last Updated : Jul 26, 2021, 10:04 AM IST
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