शिमला: हिमाचल का नाम सुनते ही मन में रसीले सेबों की तस्वीर घूमने लगती है. सेब उत्पादन में लंबी छलांग लगाने वाले हिमाचल में इन दिनों एप्पल सीजन (Apple production in Himachal) गति पकड़ रहा है. देवभूमि की धरती पर विदेशी गाला किस्म के सेब ने अपनी जगह बना ली है. इन दिनों ऊपरी शिमला की पराला मंडी में गाला की डार्क बैरन किस्म का सेब 200 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा है.
हाल ही में कोकूनाला के बागवान बिट्टू नैहराइक के बागीचे में उगाया गया डार्क बैरन गाला (Dark Baron Gala apples in fruit market ) दो लेयर यानी 12 किलो की पेटी में 2300 रुपये प्रति पेटी बिका. इसी तरह कोटखाई के बखोल के संजय चौहान के बागीचे का स्कारलेट स्पर किस्म का सेब 2400 रुपये प्रति पेटी बिका.
हिमाचल में हर साल ढाई से साढ़े तीन करोड़ पेटी सेब उत्पादन: हिमाचल में गाला व स्कारलेट जैसी किस्में एक दशक (Scarlett-2 apples in fruit market) से उगाई जा रही हैं. परंपरागत रॉयल किस्म की जगह अब बागवान स्पर किस्मों को पैदा कर रहे हैं. हिमाचल में हर साल ढाई से साढ़े तीन करोड़ पेटी सेब होता है. साल भर में ये 3500 से 5000 करोड़ रुपये की आर्थिकी का स्रोत है. जुलाई माह के पहले पखवाड़े में सेब सीजन गति पकड़ना शुरू कर देता है.
इस समय शिमला में पराला मंडी, भट्टाकुफर मंडी में सेब (Himachali apples in parala mandi) बिकने के लिए आ रहे हैं. कुछ बागवान सेब को बाहर भी भेजना शुरू कर चुके हैं. जुलाई के अंतिम सप्ताह में सेब सीजन और गति पकड़ेगा. हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक सेब शिमला जिला में पैदा होता है. पूरे प्रदेश के कुल उत्पादन का अस्सी फीसदी सेब शिमला जिला में पैदा होता है. यहां के बागवान एक दशक से भी अधिक समय से स्पर किस्मों की तरफ झुकाव पैदा कर चुके हैं. हिमाचल में इस समय न्यूजीलैंड, इटली, अमेरिका, चीन आदि देशों में प्रचलित सेब किस्मों को उगाया जा रहा है.
हिमाचल में सेब उत्पादन का इतिहास: हिमाचल में सेब उत्पादन का इतिहास एक शताब्दी से भी अधिक पुराना है. आरंभ में हिमाचल में रॉयल किस्म के सेब को उगाया जाता था. कभी सेब की परंपरागत रॉयल किस्म के लिए पहचान रखने वाले हिमाचल में अब विदेशी किस्मों की धूम मची है. सौ साल से भी लंबे सेब बागवानी के इतिहास में ये दशक विदेशी किस्मों की बादशाहत का साबित हो रहा है.
हिमाचल की मंडियों में एक दशक में अब इटालियन किस्म रेड विलॉक्स, स्पर किस्में, गाला किस्में धूम मचा रही हैं. तीन साल पहले ऊपरी शिमला के कचीनघाटी इलाके के बागवान सुभाष गुप्ता के बागीचे के रेड विलॉक्स की पेटी 3800 रुपये की दर से बिकी थी. ये पेटी 28 किलो की थी. यानी 135 रुपये प्रति किलो. हिमाचल की मंडियों में आने वाले गहरे लाल रंग के रेड विलॉक्स सेब को आढ़तियों ने हाथों-हाथ लिया है. विदेशी किस्मों का ये सेब सीधा देश के महानगरों में फाइव स्टार होटल्स में जाता है.
बड़ी बात है कि बागवानों को अपना उत्पाद (Apple Season in Himachal) बेचने के लिए देश की मंडियों में नहीं जाना पड़ रहा. वे शिमला की ढली मंडी सहित रोहड़ू, पराला मंडी में ही अपना सेब बेच कर समय व लागत की बचत करते हैं. न तो उन्हें ट्रांस्पोर्ट का खर्च उठाना पड़ रहा है और न ही सेब के खराब होने का डर है. मौके पर ही सेब बिक रहा है और बागवानों को अच्छे दाम मिल रहे हैं. इटली की सेब किस्म रेड विलॉक्स वर्ष 2012 में हिमाचल में आई थी. इटली की अन्य सेब किस्मों में मेमा मास्टर, किंग रोट, मोडी एप्पल आदि हैं. वहीं, सेब की गाला किस्म में डार्क बैरन गाला, गेल गाला, फिंगल गाला आदि हैं.
गाला किस्म की खासियत: गाला किस्म की खासियत ये है कि इसमें रेगुलर फ्रूट मिलता है. यानी हर साल फल आते हैं. रॉयल किस्म में ऑफ इयर व ऑन इयर का कंसेप्ट है. यानी ऑफ इयर में उत्पादन न के बराबर होता है और ऑन इयर में खूब फल आते हैं. एक साल ऑफ इयर व एक साल ऑन इयर रहता है. युवा बागवान संजीव चौहान का कहना है कि गाला किस्में सेल्फ पोलीनाइजर किस्में हैं. इसमें पोलीनाइजेशन की जरूरत नहीं रहती. इन किस्मों से बागवानों को अनेक लाभ हैं.
संजीव चौहान का कहना है कि गाला किस्मों को केवल 800 चिलिंग आवर्स की जरूरत होती है. यानी कम समय में उनकी चिलिंग रिक्वायरमेंट पूरी हो जाती है. वहीं, परंपरागत किस्मों को 1200 से 1600 घंटों की चिलिंग की जरूरत पड़ती है. इस तरह गाला किस्में हिमाचल के बागवानों के लिए लाभ का सौदा साबित हो रही हैं. संजीव चौहान का कहना है कि स्पर किस्में, गाला व अन्य विदेशी किस्मों का सेब प्रति किलो अधिकतम 260 रुपये तक भी बिकता है.
सेब खरीदने कोलकाता, मुंबई समेत कई राज्यों से आते हैं आढ़ती: लुधियाना मंडी में भी बागवानों को अच्छे दाम मिलते हैं. इसके अलावा अहमदाबाद, कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, पंजाब आदि के आढ़ती भी हिमाचल आते हैं. हिमाचल के बागवान अपनी फसल सुविधा के अनुसार बेचते हैं. मार्केट में कंपीटिशन होने से बागवानों को लाभ मिलता है. गाला व स्पर किस्मों का सेब न केवल अपनी रंगत से खरीदारों को आकर्षित करता है, बल्कि इनका स्वाद व गुण भी लोगों को पसंद आता है.
मंडी में बिट्टू नैहराइक के बगीचे का डार्क बैरन गाला सेब: कोकूनाला के बागवान बिट्टू नैहराइक का कहना है कि उन्हें गाला किस्म को उगाते हुए छह साल हो गए हैं. हाल ही में ऊपरी शिमला की पराला मंडी में उनके बागीचे का डार्क बैरन गाला सेब 2300 रुपये बिका. ये टू लेयर यानी 12 किलो प्रति पेटी के हिसाब से बिका है. इसी तरह बखोल गांव के बागवान संजय चौहान का स्पर किस्म का सेब 2400 रुपये प्रति पेटी बिका है. ये भी 12 किलो की पेटी में पैक था. यानी 200 रुपये प्रति किलो.
खूब चर्चा में रहा संजय चौहान के बागीचे का स्कारलेट स्पर-2 सेब: सोमवार को मंडी में संजय चौहान के बागीचे का स्कारलेट स्पर खूब चर्चा में रहा. अपने बागीचों में स्पर किस्मों को लेकर डेढ़ दशक से विभिन्न प्रयोग कर रहे हैं और सफलतापूर्वक उत्पादन कर रहे हैं. हिमाचल में बागवानी के क्षेत्र में शिमला जिले के बागवान काफी सक्रिय हैं. यहां रामलाल चौहान, संजीव चौहान, पंकज डोगरा, कपूर जिस्टू, मनोज चौहान, कुनाल चौहान, सुभाष गुप्ता सहित अन्य अनेक बागवान ऐसे हैं, जो सेब उत्पादन की बारीकियों पर गहरी पकड़ रखते हैं. आने वाले दिनों में हिमाचल में गाला व स्पर किस्मों जैसे स्कारलेट स्पर-2 के और ऊंचे दाम मिलने के आसार हैं.