शिमला: कैंसर(cancer) जैसी बीमारी के खिलाफ हिमाचल(Himachal) के पास काफल (kafal )नाम से जंगली फल के रूप में एक कारगर हथियार है.अपने अनेक औषधीय गुणों के कारण काफल की डिमांड दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही. इससे ना केवल कैंसर के खिलाफ शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती, बल्कि इसमें प्रचुर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट(anti oxidant) भी पाए जाते हैं. यह जंगली फल मुख्य रूप से हिमाचल के मंडी, कुल्लू, हमीरपुर, बिलासपुर आदि जिलों में पाया जाता है.
बड़ी बात यह है कि काफल साल में सिर्फ दो महीने ही जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगता है. इसके दिव्य औषधीय गुणों को देखते हुए हिमाचल प्रदेश के विश्व विख्यात उद्यान वैज्ञानिक डॉ. चिरंजीत परमार(Scientist Dr. Chiranjit Parmar) के मार्गदर्शन में आईआईटी कमांद मंडी(IIT Command Mandi) के वैज्ञानिक खास तौर पर केवल और केवल काफल उद्यान (kafa Garden विकसित करने की दिशा में आगे बढ़े हैं. प्रयोग के तौर पर इस अभियान का प्रारंभिक चरण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया.
हिमाचल प्रदेश में काफल उद्यान विकसित होने के बाद आईआईटी मंडी(IIT Mandi) इस दिशा में उत्तराखंड(Uttarakhand) को भी सहयोग करेगा. उत्तराखंड में भी यह जंगली फल पाया जाता है.आईआईटी मंडी के काफल उद्यान प्रोजेक्ट के सफल होने पर देश भर में इसकी मार्केटिंग की जाएगी. यह देश का पहला वैज्ञानिक तौर पर विकसित उद्यान होगा.
हिमाचल प्रदेश में मंडी और कुल्लू में काफल बहुत लोकप्रिय है .यहां तक की इस पर लोकगीत (Folk song) भी बने हैं. इसे लोक फल की संज्ञा भी दी गई. यह अमूमन मई और जून महीने में उगता है. हिमाचल प्रदेश में शिवालिक रेंज(Shivalik Range) वाले इलाकों के लोग इसे जंगलों से इकट्ठा कर बाजार में बेचते हैं. अभी तक इसकी मार्केटिंग का कोई योजनाबद्ध प्रारूप नहीं और न ही सरकार ने इसकी तरफ ध्यान दिया है. काफल के कैंसर रोधी गुणों के कारण पिछले एक दशक में लोगों में इसके प्रति उत्सुकता पैदा हुई.
इसे बल्क में उगाने के लिए आईआईटी मंडी आगे आई .विख्यात बागवानी विशेषज्ञ डॉक्टर परमार के अनुसार काफल में बहुत से औषधीय गुण और इसका उद्यान भी स्वतंत्र रूप से विकसित किया जा सकता है. इससे रोजगार भी पैदा किया जा सकता है. देशभर से इसकी डिमांड आती, लेकिन इसे जंगलों से चुनना और मार्केट तक पहुंचना आसान नहीं होता. काफल को पेड़ से तोड़ने के बाद 36 घंटे के अंदर उपयोग करना होता है. यह जल्दी खराब हो जाता है. ऐसे में इसकी मार्केटिंग का कोई टिकाऊ उपाय तलाशने की जरूरत है. उद्यान के विकसित हो जाने के बाद इसपर भी प्रयोग किया जा सकता कि इसकी शेल्फ लाइफ (shelf life) कैसे बढ़ाई जा सकती है.
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उल्लेखनीय है कि चीन(China) ने काफी पहले काफल की अहमियत को पहचान लिया था. चीन वैक्स बेरी(china wax berry) के नाम से इसकी मार्केटिंग करता है. इसे डिब्बों में भी पैक किया जाता है.चीन ने इस पर काफी शोध(research) किया है. उसने वैक्स बेरी की सेल्फ लाइफ भी बढ़ाई .साथ ही इसके औषधीय गुणों पर भी बहुत काम किया है. हालांकि, हिमाचल प्रदेश में ग्रामीण लंबे समय से काफल को जंगलों से तोड़कर मार्केट में बेचते हैं, लेकिन इसकी मार्केटिंग का कोई वैज्ञानिक सिस्टम(scientific system) तैयार नहीं हुआ.
यह फल हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के जंगलों में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाया जाता है.काफल का रंग लाल होता और यह छोटे आकार का होता है. इसे अकसर सेंधा नमक(rock salt) के साथ खाया जाता है. काफल स्वाद में हल्की खटास लिए होता है.आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. अनुराग विजयवर्गीय(Ayurveda Specialist Dr. Anurag Vijayvargiya) के अनुसार इसमें मल्टी विटामिन(multi vitamin) और एंटी ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं. यही नहीं काफल लू से भी बचाव करता है.
इसके पेड़ की छाल भी औषधीय गुणों वाली होती है. मई व जून के महीने में ग्रामीण लोग इसे टोकरियों में लाकर बाजार में बेचते हैं. सीजन के दौरान काफल 300 से 400 रुपए प्रति किलो की दर से बिकता है. राजधानी शिमला(shimla) में भी इसकी खूब धूम रहती है. उस दौरान हिमाचल में समर टूरिस्ट सीजन(summer tourist season) जोरों पर होता है. शिमला सहित कुल्लू-मनाली व चंबा में काफल खूब बिकता है,चूंकि यह जल्दी खराब हो जाता इसलिए फल कारोबारी काफल की सीमित मात्रा ही ग्रामीणों से खरीदते हैं.
डॉ. चिरंजीत परमार का कहना है कि आईआईटी मंडी के सहयोग से जल्द ही देश का पहला काफल उद्यान विकसित होने की संभावना है. हिमाचल सरकार के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर(Horticulture Minister Mahendra Singh Thakur) का कहना है कि राज्य सरकार काफल की मार्केटिंग के लिए भरपूर सहयोग करेगी.
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