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280 करोड़ रुपए बचाने के लिए हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में जाएगी हिमाचल सरकार, अदानी समूह से जुड़ा है मामला - हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच

ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश में जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत प्रोजेक्ट (Jangi Thopan Powari Hydroelectric Project) आरंभ से ही विवादों में रहा है. हिमाचल हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह अदानी समूह की कंपनी अदानी पावर लिमिटेड की तरफ से जमा किए गए 280 करोड़ के अपफ्रंट प्रीमियम को उसे दो माह के भीतर वापस करे. पढे़ं पूरी खबर...

Hydroelectric Project in Himachal Pradesh
जंगी थोपन पोवारी जल विद्युत प्रोजेक्ट
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Published : Apr 29, 2022, 8:46 PM IST

शिमला: ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश में जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत प्रोजेक्ट आरंभ से ही विवादों में रहा है. हिमाचल हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह अदानी समूह की कंपनी अदानी पावर लिमिटेड की तरफ से जमा किए गए 280 करोड़ के अपफ्रंट प्रीमियम को उसे दो माह के भीतर वापस करे. हिमाचल सरकार 280 करोड़ रुपए की इस रकम को बचाना चाहती है यही कारण है कि सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले को डिवीजन (Jangi Thopan Powari Hydroelectric Project) बैंच में चुनौती देगी. इस बारे में ऊर्जा विभाग ने हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है. जल्द ही राज्य सरकार हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में याचिका दाखिल करने का विचार कर रही है. आखिर जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत परियोजना का मामला क्या है और कैसे इस परियोजना से नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल पावर और भारत की कंपनियां रिलायंस तथा अदानी जुड़ी हुई हैं.


क्या है पूरा मामला: हिमाचल प्रदेश में किन्नौर जिले में जंगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ. अक्तूबर 2005 में हिमाचल सरकार ने इस परियोजना की निविदा जारी की. उसके बाद 17 साल पहले विदेशी कंपनी ब्रेकल ने सबसे अधिक बोली लगाई और अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ जमा किए. कुछ तकनीकी कारणों से राज्य सरकार ने फिर से बोली लगाने का फैसला किया. तब ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अदानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर के तौर पर उक्त रकम को अप-टू-डेट ब्याज के साथ वापस करने के लिए आग्रह किया. मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और फिर लंबा कानूनी विवाद शुरू हुआ.

वीरभद्र सरकार ने अदानी ग्रुप को रकम लौटाने का लिया था फैसला: पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पहले तो अक्तूबर 2017 में अदानी समूह को 280 करोड़ की रकम लौटाने का फैसला किया, लेकिन बाद में इस फैसले से पीछे हट गई. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले 5 दिसंबर 2017 को वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अदानी ग्रुप पर दिखाई गई 280 करोड़ रुपए की मेहरबानी वाला फैसला वापस से लिया. वर्ष 2017 की अक्टूबर महीने में हुई कैबिनेट मीटिंग में वीरभद्र सिंह सरकार ने फैसला लिया था कि अदानी समूह को पॉवर प्रोजेक्ट की 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी वापस की जाएगी. बाद में फैसले से पलटते हुए राज्य सरकार ने उक्त रकम वापिस करने संबंधी निर्णय वापिस ले लिया.

ब्रेकल ने नहीं जमा करवाई थी अपफ्रंट मनी: राज्य सरकार ने 30 नवंबर 2017 को सर्कुलेशन के जरिए फाइल साइन की थी. उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सहित अन्य कैबिनेट मंत्रियों में बाई सर्कुलेशन फाइल पर दस्तखत किए. इस तरह ठीक मतगणना से पहले वीरभद्र सरकार ने ये यू-टर्न लिया था. तब राज्य सरकार के उर्जा विभाग ने अपफ्रंट मनी वापस करने संबंधी पत्र को भी विदड्रॉ कर लिया था. करीब 960 मेगावाट के इस महत्वपूर्ण हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को पहले ब्रेकल कंपनी को आवंटित किया गया था. ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट 2007 में दिया गया था, परंतु ब्रेकल ने अपफ्रंट मनी जमा नहीं करवाई. ब्रेकल कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था. उसके बाद ये प्रोजेक्ट अदानी को दिया गया. अदानी समूह ने अपफ्रंट मनी के पैसे जमा करवाए थे. अक्टूबर 2017 महीने में राज्य सरकार ने अदानी समूह को अपफ्रंट मनी के पैसे वापस करने संबंधी फैसला लिया था, लेकिन बाद में उसे विदड्रॉ कर लिया गया है.

2007 में कांग्रेस सरकार में ब्रेकल को दिया गया था प्रोजेक्ट: अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट (Jangi Thopan Powari Hydroelectric Project) की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार किन्हीं कारणों से इस पैसे को वापस भी कर सकती है. ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने पर सरकार को कंपनियों द्वारा मिलने वाली अपफ्रंट मनी ही कमाई का बड़ा जरिया है. उल्लेखनीय है कि ये प्रोजेक्ट पूर्व कांग्रेस सरकार के समय वर्ष 2007 में ब्रेकल को दिया गया था. वर्ष 2008 में भाजपा सत्ता में आई और पहले तो उसने इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रोक दिया, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया था. वहीं, रिलायंस समूह भी इस प्रोजेक्ट को लेकर इंट्रस्टेड था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.


कंपनी के फर्जीवाड़े की विजिलेंस जांच: जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट पर ब्रेकल विवाद (Jangi Thopan Power Project) से राज्य सरकार को रॉयल्टी के तौर पर सैकड़ों करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है. अगर यह प्रोजेक्ट समय पर तैयार होता तो न केवल कंपनी बल्कि सरकार के आर्थिक संसाधन में भी बढ़ोतरी होनी थी. कंपनी के फर्जीवाड़े की विजिलेंस जांच भी चल रही है. जांच एजेंसी ने अगस्त 2019 में शिमला में एफआईआर दर्ज की थी. जांच का जिम्मा विजिलेंस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट (एसआइयू) को सौंपा गया. इसके बाद इस प्रोजेक्ट का समझौता ज्ञापन (एमओयू) सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) के साथ हुआ है. जबकि 780 मेगावाट के इस प्रस्तावित प्रोजेक्ट में तीन से चार साल में बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है.

हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में चुनौती देने की तैयारी में हिमाचल सरकार: पहले 960 मेगावाट बिजली पैदा होनी थी. एसजेवीएनएल को अगर इसे पहले ही आवंटित करते तो सरकार को ज्यादा लाभ होता. इस निगम में हिमाचल की हिस्सेदारी 27 फीसद है. इस समय ब्रेकल कंपनी के कुछ लोगों को जांच एजेंसी विदेशों में तलाश रही है. फिलहाल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अदानी समूह को पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय 2015 में लिए गए फैसले के अनुसार 280 करोड़ की अपफ्रंट मनी वापस करने के लिए आदेश दिए हैं और हिमाचल सरकार इस आदेश को हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में चुनौती देने की तैयारी कर रही है. कारण यह है कि राज्य सरकार महसूस कर रही है कि इस केस में सरकार की तरफ से रखे गए तथ्य पूरी तरह से कंसिडर नहीं किए गए लिहाजा एलपीए यानी लेटर पेटैंट अपील दाखिल करने का विकल्प सरकार के पास है.

शिमला: ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश में जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत प्रोजेक्ट आरंभ से ही विवादों में रहा है. हिमाचल हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह अदानी समूह की कंपनी अदानी पावर लिमिटेड की तरफ से जमा किए गए 280 करोड़ के अपफ्रंट प्रीमियम को उसे दो माह के भीतर वापस करे. हिमाचल सरकार 280 करोड़ रुपए की इस रकम को बचाना चाहती है यही कारण है कि सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले को डिवीजन (Jangi Thopan Powari Hydroelectric Project) बैंच में चुनौती देगी. इस बारे में ऊर्जा विभाग ने हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन कर सरकार को रिपोर्ट सौंप दी है. जल्द ही राज्य सरकार हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में याचिका दाखिल करने का विचार कर रही है. आखिर जंगी-थोपन-पोवारी जल विद्युत परियोजना का मामला क्या है और कैसे इस परियोजना से नीदरलैंड की कंपनी ब्रेकल पावर और भारत की कंपनियां रिलायंस तथा अदानी जुड़ी हुई हैं.


क्या है पूरा मामला: हिमाचल प्रदेश में किन्नौर जिले में जंगी-थोपन-पोवारी प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ. अक्तूबर 2005 में हिमाचल सरकार ने इस परियोजना की निविदा जारी की. उसके बाद 17 साल पहले विदेशी कंपनी ब्रेकल ने सबसे अधिक बोली लगाई और अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ जमा किए. कुछ तकनीकी कारणों से राज्य सरकार ने फिर से बोली लगाने का फैसला किया. तब ब्रेकल कंपनी ने हिमाचल सरकार से पत्राचार किया और अगस्त 2013 को अदानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर के तौर पर उक्त रकम को अप-टू-डेट ब्याज के साथ वापस करने के लिए आग्रह किया. मामला हाईकोर्ट में पहुंचा और फिर लंबा कानूनी विवाद शुरू हुआ.

वीरभद्र सरकार ने अदानी ग्रुप को रकम लौटाने का लिया था फैसला: पूर्व की कांग्रेस सरकार ने पहले तो अक्तूबर 2017 में अदानी समूह को 280 करोड़ की रकम लौटाने का फैसला किया, लेकिन बाद में इस फैसले से पीछे हट गई. हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन से पहले 5 दिसंबर 2017 को वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अदानी ग्रुप पर दिखाई गई 280 करोड़ रुपए की मेहरबानी वाला फैसला वापस से लिया. वर्ष 2017 की अक्टूबर महीने में हुई कैबिनेट मीटिंग में वीरभद्र सिंह सरकार ने फैसला लिया था कि अदानी समूह को पॉवर प्रोजेक्ट की 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी वापस की जाएगी. बाद में फैसले से पलटते हुए राज्य सरकार ने उक्त रकम वापिस करने संबंधी निर्णय वापिस ले लिया.

ब्रेकल ने नहीं जमा करवाई थी अपफ्रंट मनी: राज्य सरकार ने 30 नवंबर 2017 को सर्कुलेशन के जरिए फाइल साइन की थी. उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह सहित अन्य कैबिनेट मंत्रियों में बाई सर्कुलेशन फाइल पर दस्तखत किए. इस तरह ठीक मतगणना से पहले वीरभद्र सरकार ने ये यू-टर्न लिया था. तब राज्य सरकार के उर्जा विभाग ने अपफ्रंट मनी वापस करने संबंधी पत्र को भी विदड्रॉ कर लिया था. करीब 960 मेगावाट के इस महत्वपूर्ण हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को पहले ब्रेकल कंपनी को आवंटित किया गया था. ब्रेकल को ये प्रोजेक्ट 2007 में दिया गया था, परंतु ब्रेकल ने अपफ्रंट मनी जमा नहीं करवाई. ब्रेकल कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था. उसके बाद ये प्रोजेक्ट अदानी को दिया गया. अदानी समूह ने अपफ्रंट मनी के पैसे जमा करवाए थे. अक्टूबर 2017 महीने में राज्य सरकार ने अदानी समूह को अपफ्रंट मनी के पैसे वापस करने संबंधी फैसला लिया था, लेकिन बाद में उसे विदड्रॉ कर लिया गया है.

2007 में कांग्रेस सरकार में ब्रेकल को दिया गया था प्रोजेक्ट: अपफ्रंट मनी वो पैसा होता है जो कंपनी प्रति मेगावाट (Jangi Thopan Powari Hydroelectric Project) की तय दर से सरकार को देती है. वैसे तो ये पैसा नॉन रिफंडेबल होता है, लेकिन सरकार किन्हीं कारणों से इस पैसे को वापस भी कर सकती है. ऊर्जा प्रोजेक्ट लगाने पर सरकार को कंपनियों द्वारा मिलने वाली अपफ्रंट मनी ही कमाई का बड़ा जरिया है. उल्लेखनीय है कि ये प्रोजेक्ट पूर्व कांग्रेस सरकार के समय वर्ष 2007 में ब्रेकल को दिया गया था. वर्ष 2008 में भाजपा सत्ता में आई और पहले तो उसने इस प्रोजेक्ट के आवंटन को रोक दिया, लेकिन बाद में इसे बहाल कर दिया था. वहीं, रिलायंस समूह भी इस प्रोजेक्ट को लेकर इंट्रस्टेड था. मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था.


कंपनी के फर्जीवाड़े की विजिलेंस जांच: जंगी थोपन पावर प्रोजेक्ट पर ब्रेकल विवाद (Jangi Thopan Power Project) से राज्य सरकार को रॉयल्टी के तौर पर सैकड़ों करोड़ का नुकसान झेलना पड़ा है. अगर यह प्रोजेक्ट समय पर तैयार होता तो न केवल कंपनी बल्कि सरकार के आर्थिक संसाधन में भी बढ़ोतरी होनी थी. कंपनी के फर्जीवाड़े की विजिलेंस जांच भी चल रही है. जांच एजेंसी ने अगस्त 2019 में शिमला में एफआईआर दर्ज की थी. जांच का जिम्मा विजिलेंस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट (एसआइयू) को सौंपा गया. इसके बाद इस प्रोजेक्ट का समझौता ज्ञापन (एमओयू) सतलुज जल विद्युत निगम लिमिटेड (एसजेवीएनएल) के साथ हुआ है. जबकि 780 मेगावाट के इस प्रस्तावित प्रोजेक्ट में तीन से चार साल में बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा है.

हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में चुनौती देने की तैयारी में हिमाचल सरकार: पहले 960 मेगावाट बिजली पैदा होनी थी. एसजेवीएनएल को अगर इसे पहले ही आवंटित करते तो सरकार को ज्यादा लाभ होता. इस निगम में हिमाचल की हिस्सेदारी 27 फीसद है. इस समय ब्रेकल कंपनी के कुछ लोगों को जांच एजेंसी विदेशों में तलाश रही है. फिलहाल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अदानी समूह को पूर्व की कांग्रेस सरकार के समय 2015 में लिए गए फैसले के अनुसार 280 करोड़ की अपफ्रंट मनी वापस करने के लिए आदेश दिए हैं और हिमाचल सरकार इस आदेश को हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच में चुनौती देने की तैयारी कर रही है. कारण यह है कि राज्य सरकार महसूस कर रही है कि इस केस में सरकार की तरफ से रखे गए तथ्य पूरी तरह से कंसिडर नहीं किए गए लिहाजा एलपीए यानी लेटर पेटैंट अपील दाखिल करने का विकल्प सरकार के पास है.

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