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नॉर्थ जोन काउंसिल से हर बार आश्वासन लेकर लौटता है हिमाचल, बीबीएमबी परियोजनाओं में नहीं मिला 4000 करोड़ का हिस्सा

राजस्थान के जयपुर में 9 जुलाई को नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक (North Zone Council meeting) होने जा रही है. गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में होने वाली इस बैठक में हिमाचल के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी शिरकत करेंगे. केंद्र में डबल इंजन की सरकार का भी हिमाचल को कोई लाभ नहीं मिला है. हालांकि राजस्थान के साथ जमीन के पट्टों को लेकर कुछ प्रगति जरूर हुई थी, लेकिन बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (Bhakra Beas Management Board) के तहत चल रही परियोजनाओं में हिमाचल के हिस्से का एरियर अभी तक नहीं मिला है. पढ़ें पूरी खबर...

North Zone Council meeting in Jaipur
जयपुर में नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक.
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Published : Jul 7, 2022, 10:23 PM IST

शिमला: एक बार फिर से नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक (North Zone Council meeting) होने जा रही है. इस बार ये बैठक राजस्थान के जयपुर में 9 जुलाई को होगी. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बैठक में भाग लेने के लिए जयपुर जाएंगे. गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में बैठक (Home Minister Amit Shah in North Zone Council meeting) होगी. जहां तक हिमाचल के हक की बात है, ये पहाड़ी राज्य हर बार बैठक से आश्वासन लेकर ही लौटता आया है.

डबल इंजन की सरकार का भी हिमाचल को नहीं मिला लाभ: सरकार चाहे वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली है, चाहे प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई वाली या फिर अब जयराम ठाकुर की लीडरशिप वाली, हिमाचल हर बार खाली हाथ ही रहा है. केंद्र में डबल इंजन की सरकार का भी हिमाचल को कोई लाभ नहीं मिला है. राजस्थान के साथ जमीन के पट्टों को लेकर कुछ प्रगति जरूर हुई थी, लेकिन बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (Bhakra Beas Management Board) के तहत चल रही परियोजनाओं में हिमाचल के हिस्से का एरियर अभी तक नहीं मिला है. ये राशि चार हजार करोड़ रुपये के करीब है. सुप्रीम कोर्ट से भी हिमाचल के हक में फैसला आया है, लेकिन संबंधित राज्य एरियर देने में आनाकानी करते आ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के हक में फैसला: समय-समय पर हिमाचल प्रदेश में सत्तासीन रही सरकारें पंजाब, हरियाणा व राजस्थान से अपना हक लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई हैं. सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के हक में फैसला हुआ है. यही नहीं, सत्ता संभालने के बाद 2018 में सीएम जयराम ठाकुर ने संकेत दिए थे कि इस मसले पर अदालत की अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी. हैरानी की बात है कि हरियाणा में पिछली दो टर्म से भाजपा की सरकार है और उसने मसला सुलझाने के सकारात्मक संकेत भी दिए, लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिमाचल को पंजाब से अपना हक नहीं मिल रहा. पंजाब की विभिन्न सरकारें इस मामले में हिमाचल को अनदेखा करती रही हैं. हिमाचल को पंजाब से बीबीएमबी की हिस्सेदारी से दो हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम मिलनी है.

पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल मांग रहा हिस्सेदारी: हिमाचल व पंजाब के पुनर्गठन के समय कुछ इलाके हिमाचल में शामिल हुए थे. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के तहत चल रही बिजली परियोजनाओं में हिमाचल का हिस्सा जो पहले ढाई फीसदी थी, पुनर्गठन के बाद 7.19 फीसदी तय हुआ था. अपने हक के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी और ठीक एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के पक्ष में फैसला दिया था. पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपये मिलने हैं. पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल बीबीएमबी प्रोजेक्टों भाखड़ा, डैहर तथा पौंग में 7.19 प्रतिशत की हिस्सेदारी मांग रहा है.

पंजाब और हरियाणा पर 4200 करोड़ एरियर बकाया: हिस्सेदारी के मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के साथ साथ राजस्थान के भी अड़ियल रवैये को देखते हुए हिमाचल सरकार ने करीब दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल की थी. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने ये याचिका दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला दिया तो हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार (Former Himachal Chief Minister Prem Kumar Dhumal) थी. फिर वर्ष 2011 के बाद बीबीएमबी प्रोजेक्टों में प्रदेश को हिस्सेदारी मिल रही है, मगर हिमाचल सरकार को इससे पहले के करीब 42 सौ करोड़ के एरियर की देनदारी पंजाब व हरियाणा ने नहीं की है.

वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल सरकार भाखड़ा में 2724 करोड़, डैहर में 1034.54 करोड़ और पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये अवधि दस साल की जगह बीस साल करने को कहा.

साल 2017 में उठा था भाखड़ा बांध परियोजना का मुद्दा: वर्ष 2017 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार (Former Himachal Chief Minister Vir Bhadra Singh) के समय चंडीगढ़ में नॉर्थ जोन काउंसिल की मीटिंग में उस समय के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष हिमाचल के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने प्रदेश का पक्ष रखा था. भाखड़ा बांध परियोजना में हिमाचल ने बेशकीमती जमीन (Himachal land in Bhakra dam project) दी थी. तब 2017 में हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पंजाब तथा हरियाणा के खिलाफ एरियर दावों की गणना नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड की दरों पर की गई है, जो पूरी तरह से अनुचित है. इन दरों को अन्तरराज्यीय ऊर्जा समझौता दरों के अनुसार गणना में लाया जाए.

बद्दी तक रेल लाइन के लिए हिमाचल को जमीन अधिग्रहण की जरूरत: इसके अलावा हिमाचल को बद्दी तक रेल लाने के लिए जमीन अधिग्रहण की जरूरत है. हरियाणा सरकार के साथ ये मसला भी चल रहा है. इस रेल लाइन के लिए हरियाणा के दायरे में 52 एकड़ जमीन है. इसमें से 27 एकड़ सरकारी जमीन है और बाकी निजी भूमि है. इसके अलावा पौंग बांध विस्थापितों का मसला भी अनसुलझा हुआ है.

उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जेएंडके, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर व चंडीगढ़ शामिल होते हैं. इन राज्यों के बीच पानी, बिजली व एरियर आदि के कई मसले विवाद का विषय बने हुए हैं. इन सबमें हिमाचल को अधिक मार पड़ रही है. दिलचस्प तथ्य ये है कि बंडारू दत्तात्रेय (Former Himachal Governor Bandaru Dattatreya) जब राज्यपाल के तौर पर हिमाचल से हरियाणा के लिए तब्दील होकर गए थे तो उन्होंने हिमाचल को भरोसा दिलाया था कि वे हरियाणा सरकार से बात करेंगे.

नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में सात एजेंडे: जयपुर में ये बैठक इस बार 25 साल बाद हो रही है. बैठक में सात एजेंडे शामिल किए गए हैं. हिमाचल भी बीबीएमबी परियोजना में सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की मांग अरसे से कर रहा है. राज्य सरकार के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह (Himachal Chief Secretary Ram subhag Singh) के अनुसार हिमाचल ने मीटिंग के लिए अपना एजेंडा तैयार कर लिया है.

शिमला: एक बार फिर से नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक (North Zone Council meeting) होने जा रही है. इस बार ये बैठक राजस्थान के जयपुर में 9 जुलाई को होगी. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बैठक में भाग लेने के लिए जयपुर जाएंगे. गृह मंत्री अमित शाह की अगुवाई में बैठक (Home Minister Amit Shah in North Zone Council meeting) होगी. जहां तक हिमाचल के हक की बात है, ये पहाड़ी राज्य हर बार बैठक से आश्वासन लेकर ही लौटता आया है.

डबल इंजन की सरकार का भी हिमाचल को नहीं मिला लाभ: सरकार चाहे वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली है, चाहे प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई वाली या फिर अब जयराम ठाकुर की लीडरशिप वाली, हिमाचल हर बार खाली हाथ ही रहा है. केंद्र में डबल इंजन की सरकार का भी हिमाचल को कोई लाभ नहीं मिला है. राजस्थान के साथ जमीन के पट्टों को लेकर कुछ प्रगति जरूर हुई थी, लेकिन बीबीएमबी यानी भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (Bhakra Beas Management Board) के तहत चल रही परियोजनाओं में हिमाचल के हिस्से का एरियर अभी तक नहीं मिला है. ये राशि चार हजार करोड़ रुपये के करीब है. सुप्रीम कोर्ट से भी हिमाचल के हक में फैसला आया है, लेकिन संबंधित राज्य एरियर देने में आनाकानी करते आ रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के हक में फैसला: समय-समय पर हिमाचल प्रदेश में सत्तासीन रही सरकारें पंजाब, हरियाणा व राजस्थान से अपना हक लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक गई हैं. सुप्रीम कोर्ट से हिमाचल के हक में फैसला हुआ है. यही नहीं, सत्ता संभालने के बाद 2018 में सीएम जयराम ठाकुर ने संकेत दिए थे कि इस मसले पर अदालत की अवमानना की कार्रवाई भी की जाएगी. हैरानी की बात है कि हरियाणा में पिछली दो टर्म से भाजपा की सरकार है और उसने मसला सुलझाने के सकारात्मक संकेत भी दिए, लेकिन जमीन पर कोई काम नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद हिमाचल को पंजाब से अपना हक नहीं मिल रहा. पंजाब की विभिन्न सरकारें इस मामले में हिमाचल को अनदेखा करती रही हैं. हिमाचल को पंजाब से बीबीएमबी की हिस्सेदारी से दो हजार करोड़ रुपये से अधिक की रकम मिलनी है.

पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल मांग रहा हिस्सेदारी: हिमाचल व पंजाब के पुनर्गठन के समय कुछ इलाके हिमाचल में शामिल हुए थे. भाखड़ा-ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड के तहत चल रही बिजली परियोजनाओं में हिमाचल का हिस्सा जो पहले ढाई फीसदी थी, पुनर्गठन के बाद 7.19 फीसदी तय हुआ था. अपने हक के लिए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी और ठीक एक दशक पहले सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल के पक्ष में फैसला दिया था. पंजाब व हरियाणा से हिमाचल को 4200 करोड़ रुपये मिलने हैं. पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल बीबीएमबी प्रोजेक्टों भाखड़ा, डैहर तथा पौंग में 7.19 प्रतिशत की हिस्सेदारी मांग रहा है.

पंजाब और हरियाणा पर 4200 करोड़ एरियर बकाया: हिस्सेदारी के मुद्दे पर पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के साथ साथ राजस्थान के भी अड़ियल रवैये को देखते हुए हिमाचल सरकार ने करीब दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दाखिल की थी. तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार ने ये याचिका दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने जब फैसला दिया तो हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार (Former Himachal Chief Minister Prem Kumar Dhumal) थी. फिर वर्ष 2011 के बाद बीबीएमबी प्रोजेक्टों में प्रदेश को हिस्सेदारी मिल रही है, मगर हिमाचल सरकार को इससे पहले के करीब 42 सौ करोड़ के एरियर की देनदारी पंजाब व हरियाणा ने नहीं की है.

वर्ष 1966 के पंजाब पुनर्गठन कानून के तहत हिमाचल सरकार भाखड़ा में 2724 करोड़, डैहर में 1034.54 करोड़ और पौंग प्रोजेक्ट में 491.89 करोड़ की हिस्सेदारी की मांग कर रही है. पंजाब सरकार ने पहले ये प्रस्ताव किया कि बीबीएमबी परियोजनाओं से हिमाचल पंजाब को मिलने वाली बिजली से कुछ बिजली बेचे और दस साल में अपना बकाया पूरा कर ले. हिमाचल इस पर राजी होने की बात सोच ही रहा था कि बाद में पंजाब ने ये अवधि दस साल की जगह बीस साल करने को कहा.

साल 2017 में उठा था भाखड़ा बांध परियोजना का मुद्दा: वर्ष 2017 में तत्कालीन वीरभद्र सिंह सरकार (Former Himachal Chief Minister Vir Bhadra Singh) के समय चंडीगढ़ में नॉर्थ जोन काउंसिल की मीटिंग में उस समय के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष हिमाचल के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने प्रदेश का पक्ष रखा था. भाखड़ा बांध परियोजना में हिमाचल ने बेशकीमती जमीन (Himachal land in Bhakra dam project) दी थी. तब 2017 में हिमाचल ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि पंजाब तथा हरियाणा के खिलाफ एरियर दावों की गणना नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड की दरों पर की गई है, जो पूरी तरह से अनुचित है. इन दरों को अन्तरराज्यीय ऊर्जा समझौता दरों के अनुसार गणना में लाया जाए.

बद्दी तक रेल लाइन के लिए हिमाचल को जमीन अधिग्रहण की जरूरत: इसके अलावा हिमाचल को बद्दी तक रेल लाने के लिए जमीन अधिग्रहण की जरूरत है. हरियाणा सरकार के साथ ये मसला भी चल रहा है. इस रेल लाइन के लिए हरियाणा के दायरे में 52 एकड़ जमीन है. इसमें से 27 एकड़ सरकारी जमीन है और बाकी निजी भूमि है. इसके अलावा पौंग बांध विस्थापितों का मसला भी अनसुलझा हुआ है.

उत्तर क्षेत्रीय परिषद की बैठकों में राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, जेएंडके, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर व चंडीगढ़ शामिल होते हैं. इन राज्यों के बीच पानी, बिजली व एरियर आदि के कई मसले विवाद का विषय बने हुए हैं. इन सबमें हिमाचल को अधिक मार पड़ रही है. दिलचस्प तथ्य ये है कि बंडारू दत्तात्रेय (Former Himachal Governor Bandaru Dattatreya) जब राज्यपाल के तौर पर हिमाचल से हरियाणा के लिए तब्दील होकर गए थे तो उन्होंने हिमाचल को भरोसा दिलाया था कि वे हरियाणा सरकार से बात करेंगे.

नॉर्थ जोन काउंसिल की बैठक में सात एजेंडे: जयपुर में ये बैठक इस बार 25 साल बाद हो रही है. बैठक में सात एजेंडे शामिल किए गए हैं. हिमाचल भी बीबीएमबी परियोजना में सदस्य के रूप में शामिल किए जाने की मांग अरसे से कर रहा है. राज्य सरकार के मुख्य सचिव राम सुभग सिंह (Himachal Chief Secretary Ram subhag Singh) के अनुसार हिमाचल ने मीटिंग के लिए अपना एजेंडा तैयार कर लिया है.

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