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कालीबाड़ी मंदिर में धूमधाम से मनाई गई सरस्वती पूजा, बच्चों ने निभाई ''हाथ कोड़ी'' की परंपरा

बसंत पंचमी पर शिमला के प्रसिद्ध कालीबाड़ी मंदिर में सरस्वती पूजा का आयोजन किया गया. हर साल की तरह ही इस साल भी बंगाली परंपरा से ही यह पूजन मंदिर में हुआ और बच्चों को अक्षर ज्ञान दिया.

कालीबाड़ी मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा
कालीबाड़ी मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा
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Published : Feb 16, 2021, 5:19 PM IST

Updated : Feb 16, 2021, 5:37 PM IST

शिमलाः कोरोना काल के लंबे दौर के बाद बसंत पंचमी पर शिमला के प्रसिद्ध कालीबाड़ी मंदिर में सरस्वती पूजा का आयोजन किया गया. हर साल की तरह ही इस साल भी बंगाली परंपरा से ही यह पूजन मंदिर में हुआ और बच्चों को अक्षर ज्ञान दिया. इस दौरान सभी श्रद्धालुओं ने कोरोना के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए मां सरस्वती का आशीर्वाद लिया. इस पूजा में विशेष रूप से नन्हें बच्चे जो इस वर्ष स्कूल जाना शुरू करेंगे, उन्होंने मां सरस्वती से आशीर्वाद लेकर अपने छात्र जीवन की शुरुआत की.

Basant Panchami Saraswati Puja done at Kalibadi temple in shimla
कालीबाड़ी मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा

मां सरस्वती की पूजा और प्रार्थना

मां सरस्वती के सामने बच्चों को "हाथ कोड़ी" यानी अक्षर ज्ञान दिया गया. इस मौके पर छात्र जीवन की शुरुआत करने वाले नन्हें बच्चों ने स्लेट पर पहला अक्षर लिखा. बसंत पंचमी पर बच्चों को अक्षर ज्ञान देने की प्रथा के अनुसार मंदिर में मां सरस्वती की पूजा और प्रार्थना के बाद विधिवत बच्चों को पहला अक्षर ज्ञान करवाया गया और उनके छात्र जीवन की सफलता की प्रार्थना की गई.

कालीबाड़ी मंदिर में बच्चों ने अपनी मां की गोद में बैठकर पहला अक्षर लिखा. माताओं ने हाथखोड़ी पूजा करके अपने बच्चों के हाथ में कलम पकड़ाकर इस अक्षर ज्ञान देने की परंपरा को श्रद्धा से निभाया.

बसंत पंचमी मां सरस्वती के पूजा का दिन

बंगाली परंपरा के अनुसार बसंत पंचमी को मां सरस्वती की पूजा का दिन माना जाता है. इस दिन बंगाली समुदाय विशेष तौर पर मां की आराधना करते हैं. स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी, अध्यापक और अन्य किसी भी क्षेत्र में अध्ययनरत लोग मां की पूजा करते हैं.

वीडियो

खिचड़ी और खीर का भोग लगाया

पूजा अर्चना के बाद मां को खिचड़ी और खीर का भोग लगाया गया. बंगाली समुदाय के अलावा स्थानीय निवासियों ने भी मां सरस्वती के दर्शन किए. श्रद्धालु शुभाना का कहना है की स्कूल जाने से पहले सरस्वती पूजा से उनके विद्यार्थी जीवन की शुरुआत होती है. उन्होंने भी मंदिर में इसी तरह से अपना पहला अक्षर लिखा था जिसके बाद वह स्कूल गई थी. इसी परंपरा को हर साल बसंत पंचमी पर पूरा किया जाता हैं और वह मां सरस्वती की पूजा करने के लिए यहां आती हैं.

''हाथ कोड़ी'' की परंपरा

बता दें कि बसंत ऋतु की पंचम तिथि में पड़ने वाली सरस्वती पूजा का छात्र जीवन में विशेष महत्व है. यही वजह भी है कि हर साल मंदिर में इस दिन पूजा किया जाता है. आज भी मंदिर में आयोजित की गई पूजा में विद्या प्रदायिनी व संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित इस तिथि पर पहली बार स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों को मां सरस्वती के सामने अक्षर ज्ञान करवाया जाता है. अक्षर ज्ञान की इस प्रक्रिया को "हाथ कोड़ी"कहा जाता है.

ये भी पढ़ें:- आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने सरकारी कर्मचारी घोषित करने की उठाई मांग, सीएम को भेजा मांगपत्र

शिमलाः कोरोना काल के लंबे दौर के बाद बसंत पंचमी पर शिमला के प्रसिद्ध कालीबाड़ी मंदिर में सरस्वती पूजा का आयोजन किया गया. हर साल की तरह ही इस साल भी बंगाली परंपरा से ही यह पूजन मंदिर में हुआ और बच्चों को अक्षर ज्ञान दिया. इस दौरान सभी श्रद्धालुओं ने कोरोना के दिशा निर्देशों का पालन करते हुए मां सरस्वती का आशीर्वाद लिया. इस पूजा में विशेष रूप से नन्हें बच्चे जो इस वर्ष स्कूल जाना शुरू करेंगे, उन्होंने मां सरस्वती से आशीर्वाद लेकर अपने छात्र जीवन की शुरुआत की.

Basant Panchami Saraswati Puja done at Kalibadi temple in shimla
कालीबाड़ी मंदिर में बसंत पंचमी की पूजा

मां सरस्वती की पूजा और प्रार्थना

मां सरस्वती के सामने बच्चों को "हाथ कोड़ी" यानी अक्षर ज्ञान दिया गया. इस मौके पर छात्र जीवन की शुरुआत करने वाले नन्हें बच्चों ने स्लेट पर पहला अक्षर लिखा. बसंत पंचमी पर बच्चों को अक्षर ज्ञान देने की प्रथा के अनुसार मंदिर में मां सरस्वती की पूजा और प्रार्थना के बाद विधिवत बच्चों को पहला अक्षर ज्ञान करवाया गया और उनके छात्र जीवन की सफलता की प्रार्थना की गई.

कालीबाड़ी मंदिर में बच्चों ने अपनी मां की गोद में बैठकर पहला अक्षर लिखा. माताओं ने हाथखोड़ी पूजा करके अपने बच्चों के हाथ में कलम पकड़ाकर इस अक्षर ज्ञान देने की परंपरा को श्रद्धा से निभाया.

बसंत पंचमी मां सरस्वती के पूजा का दिन

बंगाली परंपरा के अनुसार बसंत पंचमी को मां सरस्वती की पूजा का दिन माना जाता है. इस दिन बंगाली समुदाय विशेष तौर पर मां की आराधना करते हैं. स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थी, अध्यापक और अन्य किसी भी क्षेत्र में अध्ययनरत लोग मां की पूजा करते हैं.

वीडियो

खिचड़ी और खीर का भोग लगाया

पूजा अर्चना के बाद मां को खिचड़ी और खीर का भोग लगाया गया. बंगाली समुदाय के अलावा स्थानीय निवासियों ने भी मां सरस्वती के दर्शन किए. श्रद्धालु शुभाना का कहना है की स्कूल जाने से पहले सरस्वती पूजा से उनके विद्यार्थी जीवन की शुरुआत होती है. उन्होंने भी मंदिर में इसी तरह से अपना पहला अक्षर लिखा था जिसके बाद वह स्कूल गई थी. इसी परंपरा को हर साल बसंत पंचमी पर पूरा किया जाता हैं और वह मां सरस्वती की पूजा करने के लिए यहां आती हैं.

''हाथ कोड़ी'' की परंपरा

बता दें कि बसंत ऋतु की पंचम तिथि में पड़ने वाली सरस्वती पूजा का छात्र जीवन में विशेष महत्व है. यही वजह भी है कि हर साल मंदिर में इस दिन पूजा किया जाता है. आज भी मंदिर में आयोजित की गई पूजा में विद्या प्रदायिनी व संगीत की देवी मां सरस्वती को समर्पित इस तिथि पर पहली बार स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों को मां सरस्वती के सामने अक्षर ज्ञान करवाया जाता है. अक्षर ज्ञान की इस प्रक्रिया को "हाथ कोड़ी"कहा जाता है.

ये भी पढ़ें:- आंगनबाड़ी कर्मचारियों ने सरकारी कर्मचारी घोषित करने की उठाई मांग, सीएम को भेजा मांगपत्र

Last Updated : Feb 16, 2021, 5:37 PM IST
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