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करगिल के परमवीर हिमाचल के 2 शूरवीर, विजय पताका में चमक रहा है देवभूमि के 52 जांबाजों का पवित्र लहू

करगिल युद्ध के बाद जवानों के शोर्य को देखते हुए कुल चार परमवीर चक्र दिए गए. हिमाचल के वीरों ने इस युद्ध में दो परमवीर चक्र हासिल किए थे. एक परमवीर चक्र शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा को मिला तो वहीं, दूसरा परमवीर चक्र राइफलमैन संजय कुमार जीवित रहते हुए दिया गया.

kargil War
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Published : Jul 26, 2019, 12:55 PM IST

शिमला: दो दशक पहले शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी छाई थी. करगिल युद्ध चल रहा था. दुश्मन देश के नापाक सैनिक चोटियों पर थे और भारत के बहादुर वीर उन्हें सबक सिखा रहे थे. इस युद्ध में शिमला जिला के जांबाज यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर कुर्बान हुए थे.

उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को करिगल की चोटियां दुश्मन से आजाद करवा लीं.

इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला. कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार. विक्रम बत्रा तो देश पर कुर्बान होकर अमिट सितारे बन गए. राइफलमैन संजय कुमार देशवासियों को करगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं. इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे.

करगिल युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और बेजोड़ युद्ध कौशल के लिए समूचे विश्व में चर्चित रहा है. करगिल वार में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय सेना ने देश को गर्व करने का बेमिसाल मौका दिया था. इस युद्ध को देवभूमि और वीरभूमि हिमाचल के जवानों की शूरवीरता के लिए भी याद किया जाता है.

कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी से थर्राया पाकिस्तान
हिमाचल के वीरों ने इस युद्ध में दो परमवीर चक्र हासिल किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की बेमिसाल बहादुरी से पाकिस्तान थर्रा गया था. देशवासी करगिल विजय दिवस पर हमेशा यही के लिए जीवित होते. देवभूमि के दूसरे शूरवीर राइफलमैन संजय अब सूबेदार मेजर हैं.

करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूत शहीद हुए थे. शिमला, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, कांगड़ा आदि जिलों के जांबाज सैनिकों ने बेमिसाल शौर्य गाथा लिखी थी. भारत हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाता है और अपने सपूतों को याद करता है.

दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में चोटी पर बैठे दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने बुरी तरह से खदेड़ा था. कैप्टन विक्रम बतरा की बहादुरी व शौर्य से पाकिस्तान की सेना में खौफ था. दुश्मन सैनिक उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारते थे. अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बतरा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बतरा का-ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.

कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की.

पढ़ेंः करगिल के पहले शहीद सैनिक की मां को याद आए अभिनंदन, मोदी सरकार से की ये गुजारिश

वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बतरा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला.

दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. विक्रम ने युद्ध के दौरान कई साहसिक फैसले लिए. जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे.

इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया.

जब निहत्थे दुशमनों से भिड़ गए राइफलमैन संजय कुमार
वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. करगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था.

संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे. 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था.

संजय कुमार 3 मार्च 1976 को बिलासपुर के बकैण गांव में जन्मे थे. वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं. वे कई संस्थानों में जाकर करगिल युद्ध के संस्मरण सुना चुके हैं.

इन दोनों के अलावा करगिल युद्ध में हिमाचल से संबंध रखने वाले सैनिकों व अफसरों की अहम भूमिका रही. उनमें ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह का भी नाम है. शिमला जिला से पहले शहीद यशवंत सिंह थे. शहादत का जाम पीकर जब यशवंत सिंह की पार्थिव देह शिमला के रिज मैदान पर दर्शनों के लिए रखी गई थी, उस समय रिज मैदान पर हजारों की संख्या में नम आंखों ने उन्हें विदाई दी थी.

उस दिन रिज मैदान पर तिल धरने को जगह नहीं थी. यशवंत सिंह के साथ देवभूमि के 52 सपूतों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी. आज करगिल विजय दिवस को पूरे 20 साल पूरे हुए हैं. देश आज उन सभी वीर जवानों की शहादत को याद कर रहा है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने आप को न्यौछावर कर दिया.

देवभूमि के 52 अमर शहीदों के नाम

  • कांगड़ा से कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र, लेफ्टिनेंट सौरव कालिया, जीडीआर बजिंद्र सिंह, आरएफएन राकेश कुमार, लांस नायक वीर सिंह, आरएफएन अशोक कुमार, आरएफएन सुनील कुमार, सिपाही लखबीर सिंह, नायक ब्रह्मन दास, आरएफएन जगजीत सिंह, सिपाही संतोख सिंह, हवलदार सुरिंद्र सिंह, लांस नायक पदम सिंह, जीडीआर सुरजीत सिंह, जीडीआर योगिंद्र सिंह शामिल थे.
  • जिला मंडी से कैप्टन दीपक गुलेरिया, नायब सूबेदार खेमचंद राणा, हवलदार कृष्ण चंद, नायक सरवन कुमार, सिपाही टेकराम मस्ताना, सिपाही राकेश कुमार चौहान, सिपाही नरेश कुमार, सिपाही हीरा सिंह, जीडीआर पूर्ण सिंह, एल/ हवलदार गुरदास सिंह.
  • जिला हमीरपुर से हवलदार कश्मीर सिंह (एम-इन-डी), हवलदार राजकुमार (एम-इन- डी), सिपाही दिनेश कुमार, हवलदार स्वामी दास चंदेल, सिपाही राकेश कुमार, आरएफएन प्रवीण कुमार, सिपाही सुनील कुमार, आरएफएन दीपचंद( एम-इन-डी).
  • जिला बिलासपुर से हवलदार उधम सिंह, नायक मंगल सिंह, आरएफएन विजयपाल, हवलदार राजकुमार, नायक अश्वनी कुमार, हवलदार प्यार सिंह, नायक मस्तराम.
  • जिला शिमला से जीएनआर यशवंत सिंह, आरएफएन श्याम सिंह( वीआरसी), जीडीआर नरेश कुमार, जीडीआर अनंतराम शामिल थे.
  • जिला ऊना से कैप्टन अमोल कालिया वीर चक्र, आरएफएन मनोहर लाल.
  • जिला सोलन से सिपाही धर्मेंद्र सिंह, आरएफएन प्रदीप कुमार.
  • सिरमौर जिला से आरएफएन कुलविंद्र सिंह, आरएसएन कल्याण सिंह सेना मेडल.
  • जिला चंबा से सिपाही खेमराज. जिला कुल्लू से हवलदार ढोला राम सेना मेडल कारगिल युद्ध के हीरो रहे हैं.

करगिल की जीत का सेहरा कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर बांधा था. भारत के जाबांजों ने जब अपना शौर्य दिखाया होगा और हंसते हुए सीने पर गोलियां खाई होंगी तो पाकिस्तान की कब्जे में कैद निसप्राण करगिल की पहाड़ियों ने भी उन माताओं को नमन किया होगा जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया था.

ये भी पढ़ेंः कारगिल विजय दिवस: ऑपरेशन विजय को 20 साल पूरे

शिमला: दो दशक पहले शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी छाई थी. करगिल युद्ध चल रहा था. दुश्मन देश के नापाक सैनिक चोटियों पर थे और भारत के बहादुर वीर उन्हें सबक सिखा रहे थे. इस युद्ध में शिमला जिला के जांबाज यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर कुर्बान हुए थे.

उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था. हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी. भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को करिगल की चोटियां दुश्मन से आजाद करवा लीं.

इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला. कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार. विक्रम बत्रा तो देश पर कुर्बान होकर अमिट सितारे बन गए. राइफलमैन संजय कुमार देशवासियों को करगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं. इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे.

करगिल युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और बेजोड़ युद्ध कौशल के लिए समूचे विश्व में चर्चित रहा है. करगिल वार में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय सेना ने देश को गर्व करने का बेमिसाल मौका दिया था. इस युद्ध को देवभूमि और वीरभूमि हिमाचल के जवानों की शूरवीरता के लिए भी याद किया जाता है.

कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी से थर्राया पाकिस्तान
हिमाचल के वीरों ने इस युद्ध में दो परमवीर चक्र हासिल किए थे. महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की बेमिसाल बहादुरी से पाकिस्तान थर्रा गया था. देशवासी करगिल विजय दिवस पर हमेशा यही के लिए जीवित होते. देवभूमि के दूसरे शूरवीर राइफलमैन संजय अब सूबेदार मेजर हैं.

करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूत शहीद हुए थे. शिमला, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, कांगड़ा आदि जिलों के जांबाज सैनिकों ने बेमिसाल शौर्य गाथा लिखी थी. भारत हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाता है और अपने सपूतों को याद करता है.

दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में चोटी पर बैठे दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने बुरी तरह से खदेड़ा था. कैप्टन विक्रम बतरा की बहादुरी व शौर्य से पाकिस्तान की सेना में खौफ था. दुश्मन सैनिक उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारते थे. अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बतरा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है. विक्रम बतरा का-ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था.

कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं. हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था. बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ. डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की.

पढ़ेंः करगिल के पहले शहीद सैनिक की मां को याद आए अभिनंदन, मोदी सरकार से की ये गुजारिश

वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए. कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई. जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया. ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बतरा भी मोर्चे पर पहुंचे. उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला.

दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया. विक्रम ने युद्ध के दौरान कई साहसिक फैसले लिए. जुलाई 1999 की 7 तारीख थी. कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे.

इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे. युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया.

जब निहत्थे दुशमनों से भिड़ गए राइफलमैन संजय कुमार
वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया. करगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा. संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था.

संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था. संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे. 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था.

संजय कुमार 3 मार्च 1976 को बिलासपुर के बकैण गांव में जन्मे थे. वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे. संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं. वे कई संस्थानों में जाकर करगिल युद्ध के संस्मरण सुना चुके हैं.

इन दोनों के अलावा करगिल युद्ध में हिमाचल से संबंध रखने वाले सैनिकों व अफसरों की अहम भूमिका रही. उनमें ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह का भी नाम है. शिमला जिला से पहले शहीद यशवंत सिंह थे. शहादत का जाम पीकर जब यशवंत सिंह की पार्थिव देह शिमला के रिज मैदान पर दर्शनों के लिए रखी गई थी, उस समय रिज मैदान पर हजारों की संख्या में नम आंखों ने उन्हें विदाई दी थी.

उस दिन रिज मैदान पर तिल धरने को जगह नहीं थी. यशवंत सिंह के साथ देवभूमि के 52 सपूतों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी. आज करगिल विजय दिवस को पूरे 20 साल पूरे हुए हैं. देश आज उन सभी वीर जवानों की शहादत को याद कर रहा है जिन्होंने देश की रक्षा के लिए अपने आप को न्यौछावर कर दिया.

देवभूमि के 52 अमर शहीदों के नाम

  • कांगड़ा से कैप्टन विक्रम बत्रा परमवीर चक्र, लेफ्टिनेंट सौरव कालिया, जीडीआर बजिंद्र सिंह, आरएफएन राकेश कुमार, लांस नायक वीर सिंह, आरएफएन अशोक कुमार, आरएफएन सुनील कुमार, सिपाही लखबीर सिंह, नायक ब्रह्मन दास, आरएफएन जगजीत सिंह, सिपाही संतोख सिंह, हवलदार सुरिंद्र सिंह, लांस नायक पदम सिंह, जीडीआर सुरजीत सिंह, जीडीआर योगिंद्र सिंह शामिल थे.
  • जिला मंडी से कैप्टन दीपक गुलेरिया, नायब सूबेदार खेमचंद राणा, हवलदार कृष्ण चंद, नायक सरवन कुमार, सिपाही टेकराम मस्ताना, सिपाही राकेश कुमार चौहान, सिपाही नरेश कुमार, सिपाही हीरा सिंह, जीडीआर पूर्ण सिंह, एल/ हवलदार गुरदास सिंह.
  • जिला हमीरपुर से हवलदार कश्मीर सिंह (एम-इन-डी), हवलदार राजकुमार (एम-इन- डी), सिपाही दिनेश कुमार, हवलदार स्वामी दास चंदेल, सिपाही राकेश कुमार, आरएफएन प्रवीण कुमार, सिपाही सुनील कुमार, आरएफएन दीपचंद( एम-इन-डी).
  • जिला बिलासपुर से हवलदार उधम सिंह, नायक मंगल सिंह, आरएफएन विजयपाल, हवलदार राजकुमार, नायक अश्वनी कुमार, हवलदार प्यार सिंह, नायक मस्तराम.
  • जिला शिमला से जीएनआर यशवंत सिंह, आरएफएन श्याम सिंह( वीआरसी), जीडीआर नरेश कुमार, जीडीआर अनंतराम शामिल थे.
  • जिला ऊना से कैप्टन अमोल कालिया वीर चक्र, आरएफएन मनोहर लाल.
  • जिला सोलन से सिपाही धर्मेंद्र सिंह, आरएफएन प्रदीप कुमार.
  • सिरमौर जिला से आरएफएन कुलविंद्र सिंह, आरएसएन कल्याण सिंह सेना मेडल.
  • जिला चंबा से सिपाही खेमराज. जिला कुल्लू से हवलदार ढोला राम सेना मेडल कारगिल युद्ध के हीरो रहे हैं.

करगिल की जीत का सेहरा कई सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति देकर बांधा था. भारत के जाबांजों ने जब अपना शौर्य दिखाया होगा और हंसते हुए सीने पर गोलियां खाई होंगी तो पाकिस्तान की कब्जे में कैद निसप्राण करगिल की पहाड़ियों ने भी उन माताओं को नमन किया होगा जिन्होंने ऐसे वीर सपूतों को जन्म दिया था.

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करगिल के परमवीर हिमाचल के दो शूरवीर, विजय पताका में चमक रहा है हिमाचल के 52 जांबाजों का पवित्र लहू
शिमला। दो दशक पहले शिमला के रिज मैदान पर हजारों की भीड़ के बावजूद गहरी खामोशी छाई थी। करगिल युद्ध चल रहा था। दुश्मन देश के नापाक सैनिक चोटियों पर थे और भारत के बहादुर वीर उन्हें सबक सिखा रहे थे। शिमला जिला के जांबाज यशवंत सिंह रणभूमि में भारत मां पर कुर्बान हुए थे। उनका पवित्र पार्थिव शरीर शिमला के रिज मैदान पर देशवासियों के दर्शन के लिए रखा था। हजारों की भीड़ नम आंखों से खामोश होकर अपने वीर सपूत का अंतिम दर्शन करने कतार में खड़ी थी। भारत की बहादुर सेना ने 26 जुलाई को करिगल की चोटियां दुश्मन से आजाद करवा लीं। इस युद्ध में हिमाचल के दो शूरवीरों को परमवीर चक्र मिला। कैप्टन विक्रम बत्रा और राइफलमैन संजय कुमार। विक्रम बत्रा तो देश पर कुर्बान होकर अमिट सितारे बन गए। राइफलमैन संजय कुमार देशवासियों को करगिल युद्ध की गाथा सुनाने के लिए हम सबके बीच मौजूद हैं। इसी युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाजों ने अपने प्राण मातृभूमि की सेवा में अर्पित किए थे।
करगिल युद्ध भारतीय सेना के अदम्य साहस और बेजोड़ युद्ध कौशल के लिए समूचे विश्व में चर्चित रहा है। करगिल वार में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली भारतीय सेना ने देश को गर्व करने का बेमिसाल मौका दिया था। इस युद्ध को देवभूमि और वीरभूमि हिमाचल के जवानों की शूरवीरता के लिए भी याद किया जाता है। हिमाचल के वीरों ने इस युद्ध में दो परमवीर चक्र हासिल किए थे। महान योद्धा कैप्टन विक्रम बत्रा की बेमिसाल बहादुरी से पाकिस्तान थर्रा गया था। देशवासी करगिल विजय दिवस पर हमेशा यही के लिए जीवित होते। देवभूमि के दूसरे शूरवीर राइफलमैन संजय अब सूबेदार मेजर हैं। करगिल युद्ध में हिमाचल के 52 सपूत शहीद हुए थे। शिमला, बिलासपुर, हमीरपुर, सोलन, कांगड़ा आदि जिलों के जांबाज सैनिकों ने बेमिसाल शौर्य गाथा लिखी थी। भारत हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाता है और अपने सपूतों को याद करता है।
दुनिया के सबसे ऊंचे युद्ध क्षेत्र में चोटी पर बैठे दुश्मन सैनिकों को भारतीय सेना ने बुरी तरह से खदेड़ा था। कैप्टन विक्रम बतरा की बहादुरी व शौर्य से पाकिस्तान की सेना में खौफ था। दुश्मन सैनिक उन्हें शेरशाह के नाम से पुकारते थे। अहम चोटियों पर तिरंगा लहराने के बाद विक्रम बतरा ने आराम की परवाह भी नहीं की और जो नारा बुलंद किया, वो इतिहास बन गया है। विक्रम बतरा का-ये दिल मांगे मोर, नारा सैनिकों में जोश भर देता था।
कैप्टन बत्रा भारतीय सेना के ताज में जड़े बेमिसाल हीरों में से एक हैं। हिमाचल में कांगड़ा जिला के पालमपुर के गांव घुग्गर में 9 सितंबर 1974 को उनका जन्म हुआ था। बचपन में पिता से अमर शहीदों की गाथाएं सुनकर विक्रम को भी देश की सेवा का शौक पैदा हुआ। डीएवी स्कूल पालमपुर में पढ़ाई के बाद कॉलेज की शिक्षा उन्होंने डीएवी चंडीगढ़ से हासिल की। वर्ष 1996 में वे मिलेट्री अकादमी देहरादून के लिए सिलेक्ट हुए। कमीशन हासिल करने के बाद उनकी नियुक्ति 13 जैक राइफल में हुई। जून 1999 में कारगिल युद्ध छिड़ गया। ऑपरेशन विजय के तहत विक्रम बतरा भी मोर्चे पर पहुंचे। उनकी डैल्टा कंपनी को पॉइंट 5140 को कैप्चर करने का आदेश मिला। दुश्मन सेना के ध्वस्त करते हुए विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने पॉइंट 5140 की चोटी को कब्जे में कर लिया। विक्रम ने युद्ध के दौरान कई दुस्साहसिक फैसले लिए। जुलाई 1999 की 7 तारीख थी। कई दिनों से मोर्चे पर डटे विक्रम को उनके ऑफिसर्स ने आराम करने की सलाह दी थी, जिसे वे नजर अंदाज करते रहे। इसी दिन वे पॉइंट 4875 पर युद्ध के दौरान शहादत को चूम गए, लेकिन इससे पहले वे भारतीय सेना के समक्ष आने वाले सारे अवरोध दूर कर चुके थे। युद्ध के दौरान उनका नारा ये दिल मांगे मोर था, जिसे उन्होंने सच कर दिखाया।
वहीं, बिलासपुर जिला के बकैण गांव के संजय कुमार ने भी करगिल युद्ध में अदम्य शौर्य दिखाया। करगिल की पॉइंट 4875 चोटी पर पाकिस्तान ने भारतीय सेना के इस योद्धा का साहस देखा। संजय का सामना पाकिस्तानी सैनिकों की ऑटोमैटिक मशीनगन से हो गया था। संजय कुमार ने निहत्थे ही उनकी मशीनगन ध्वस्त कर सैनिकों को मार गिराया था। संजय के साहस से घबराए पाकिस्तानी सैनिक अपनी यूनिवर्सल मशीनगन छोड़ कर भाग गए थे। 13 जैक राइफल के संजय कुमार को इस शौर्य के लिए परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था। संजय कुमार 3 मार्च 1976 को बिलासपुर के बकैण गांव में जन्मे थे। वे आरंभ से ही भारतीय सेना का हिस्सा बनना चाहते थे। संजय कुमार अभी भी भारतीय सेना में सेवाएं दे रहे हैं। वे कई संस्थानों में जाकर करगिल युद्ध के संस्मरण सुना चुके हैं। इन दोनों के अलावा करगिल युद्ध में हिमाचल से संबंध रखने वाले सैनिकों व अफसरों की अहम भूमिका रही। उनमें ब्रिगेडियर खुशहाल सिंह का भी नाम है। शिमला जिला से पहले शहीद यशवंत सिंह थे। शहादत का जाम पीकर जब यशवंत सिंह की पार्थिव देह शिमला के रिज मैदान पर दर्शनों के लिए रखी गई थी, उस समय रिज मैदान पर हजारों की संख्या में नम आंखों ने उन्हें विदाई दी थी। उस दिन रिज मैदान पर तिल धरने को जगह नहीं थी। यशवंत सिंह के साथ देवभूमि के 52 सपूतों ने देश के लिए कुर्बानी दी थी। 
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