शिमलाः कोरोना संकट का असर सबसे ज्यादा आईजीएमसी में स्टाफ पर पड़ा था. कोरोना संकट काल के दौरान प्रदेश के सबसे बड़े अस्पताल व शिक्षण संस्थान में स्टाफ की कमी रही. मरीजों तीमारदारों को परेशानी तो हुई, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अस्पताल में आने वाले संक्रमित मरीजों की देखभाल व उनका ईलाज करना जरूरी था.
एक दम से कोरोना के मामले बढ़ने के बाद अब संक्रमण में कमी दर्ज की जा रही है. अब कोरोना की रफ्तार कम होने से अस्पताल में भी कम मरीज आ रहे हैं. आईजीएमसी के ई-ब्लॉक कोरोना वार्ड में जहां पहले 120 तक मरीज पहुंच गए थे और कई सप्ताह तक 80 से 100 तक मरीजों का आंकड़ा रहता था. वहीं, अब घट कर 38 मरीज ही आईजीएमसी में कोरोना संक्रमण के दाखिल हैं, जिनका इलाज किया जा रहा है.
इस दौरान कोरोना महामारी सबसे ज्यादा स्टाफ के लिए भी चुनौती थी. इसके कारण आइसोलेशन वार्ड में सभी स्टाफ रोटेशन में 10 दिन की ड्यूटी करते थे और उसके बाद उन्हें 14 दिन क्वारंटाइन रहना पड़ता था. इससे अन्य स्टाफ पर बोझ पड़ता था.
प्रदेश में कोरोना की रफ्तार कम
प्रदेश में अब कोरोना की रफ्तार कम हो रही है, जिससे आईजीएमसी में स्टाफ ने राहत की सांस ली है. इस दौरान आइसोलेशन वार्ड में ड्यूटी पर तैनात नर्स से बात की गई तो उसका कहना था कि आइसोलेशन वार्ड तीन मंजिला है और सभी में कोरोना के मरीज दाखिल थे. उन्होंने कहा कि हर मरीज के पास जा कर दवाई देने, उनकी जांच करना किसी भी मरीज को परेशानी न हो इसका पूरा ध्यान रखा जाए, इसके लिए वो निरन्तर प्रयासरत रहीं.
बता दें कि प्रदेश में जहां पहले 500 से ज्यादा मरीज आ रहे थे. वहीं, यह आंकड़ा 1000 तक पहुंच गया था, जोकि अब 100 के लगभग रह गया है, जबकि शिमला में प्रतिदिन 150 से ज्यादा मरीज आने लगे थे अब 13 के लगभग मरीज ही आ रहे हैं.
ये भी पढ़ेंः अटल टनल बहाल, पर्यटकों को करना होगा अभी इंतजार