नाहन: सिरमौर जिले का मैदानी इलाका खासकर पांवटा साहिब क्षेत्र स्ट्रॉबेरी के उत्पादन के लिए जाना जाता है. हालांकि नाहन के कुछ इलाकों में भी इसकी खेती की जाती है, लेकिन 90 से 95 प्रतिशत स्ट्रॉबेरी का उत्पादन पांवटा साहिब घाटी में ही होता है. यहां की स्ट्रॉबेरी हिमाचल सहित पड़ोसी राज्यों में भी सप्लाई की जाती है. स्ट्रॉबेरी उत्पादकों को इससे अच्छी आमदनी की उम्मीद रहती है. यही वजह है कि पिछले साल की अपेक्षा इस साल स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए किसानों व बागवानों का रूझान बढ़ा है.
हालांकि इस बार बारिश अधिक होने से कुछ किसानों को नुकसान भी उठाना पड़ा है, लेकिन जिला उद्यान विभाग को फिर भी अच्छी आमदनी की उम्मीद है, क्योंकि इस बार काफी संख्या में किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती की है. दरअसल जिले में उद्यान विभाग की मानें तो पिछले साल करीब 150 बागवानों ने ही स्ट्रॉबेरी की खेती की थी, जिससे करीब डेढ़ करोड़ की आमदनी किसानों व बागवानों को हुई थी. मगर इस बार उक्त खेती की तरफ किसानों का रूझान काफी अधिक बढ़ा है. यही वजह है कि इस साल पांवटा साहिब इलाके में ही 250 से 300 किसानों व बागवानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती की है.
ऐसे में विभाग करीब ढाई करोड़ रुपए तक आमदनी की संभावना जता रहा है. वहीं, इस साल नाहन के मैदानी इलाकों में बारिश अधिक होने की वजह से कुछ बागवानों को नुकसान जरूर उठाना पड़ा है. बागवानों का कहना है कि शुरू में बारिश अधिक होने की वजह से स्ट्रॉबेरी का पौधा नहीं चल पाया. इस वजह से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा है. ऐसे में उन्होंने सरकार से मदद की मांग की है.
राजगढ़ में तैयार होती है पौध, पांवटा साहिब में किया जाता है उत्पादन: जिला उद्यान विभाग सिरमौर के उपनिदेशक डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि सिरमौर जिले के राजगढ़ क्षेत्र में विभाग द्वारा स्ट्रॉबेरी की पौध तैयार की जाती है और मैदानी इलाके पांवटा साहिब में स्ट्रॉबेरी फल का उत्पादन होता है. उन्होंने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती जल्द नष्ट होने वाली होती है. लिहाजा बागवान इसका उत्पादन या तो मार्केट के हिसाब से करते हैं या फिर उद्यान केंद्रों के आसपास इसकी खेती की जाती है. इस खेती के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था की जरूरत होती है.
पांवटा साहिब क्षेत्र में करीब साढ़े 350 बीघा भूमि पर खेती: जिला उद्यान विभाग के उपनिदेशक डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि इस बार पांवटा साहिब क्षेत्र के तहत 30 हैक्टेयर यानी करीब साढ़े 350 बीघा भूमि में करीब 250 से 300 किसान-बागवानों द्वारा स्ट्रॉबेरी की खेती (Strawberry Farming in Sirmaur) की गई है.
बारिश की वजह से शुरू में नहीं मिले उचित दाम: बागवानी उपनिदेशक डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि यूं तो स्ट्रॉबेरी के दाम अच्छे मिलते हैं, लेकिन इस बार शुरू में बारिश की वजह से दामों में कुछ कमी जरूर आई थी. मगर अब बारिश का ऑफ सीजन होने के कारण स्ट्रॉबेरी की खेती अच्छी हो रही है और इसके दाम भी उचित मिल रहे हैं.
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए विभाग करता है मदद, ये उगाई जाती है किस्में: डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सरकार के माध्यम से विभाग बागवानों की मदद भी करता है. बागवानों व किसानों को साढ़े 62 हजार रुपए की सब्सिडी साढ़े 12 बीघा खेती के लिए विभाग द्वारा प्रदान की जाती है. जिले में स्ट्रॉबेरी की महत्वपूर्ण किस्म केमोरोजा, विंटरडोन आदि उगाई जाती है, जोकि काफी अच्छा उत्पादन दे रही है.
मौसम की वजह से उत्पादन में आई कुछ कमी, वर्तमान में रेट मिल रहे सही: डॉ. सतीश शर्मा ने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस बार मौसम की वजह से स्ट्रॉबेरी के उत्पादन में कुछ कमी भी आई है, लेकिन वर्तमान में अभी भी 70 से 80 रुपए के हिसाब से स्ट्रॉबेरी का फल मार्किट में जा रहा है. कुल मिलाकर पिछले कुछ सालों की अपेक्षा इस साल जिले में स्ट्रॉबेरी के उत्पादन की दिशा में बागवानों का रूझान बढ़ा है. यही वजह है कि बागवानी विभाग इस बार जिले में बागवानों को करीब ढाई करोड़ रुपए की आमदनी की उम्मीद जता रहा है. हालांकि जिन कुछ किसानों को नुकसान उठाना पड़ा है, वह सरकार से मदद की गुहार जरूर लगा रहे हैं.
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