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नवरात्रि स्पेशल 2022: लाला जी के साथ नमक की बोरी में आई थीं माता बालासुंदरी, शिवालिक पहाड़ियों के बीच है मां का भव्य दरबार

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Published : Apr 1, 2022, 7:13 PM IST

हिमाचल की धरती देवी-देवताओं की (Dev Bhoomi Himachal Pradesh) भूमि है. यहां देवी-देवताओं के प्रति लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि उनके विश्वास को तोड़ना मुश्किल है. हिमाचल प्रदेश में कई धार्मिक स्थल हैं और हर जगह की अपनी- अपनी मान्यता और आस्था है. इसी तरह जिला सिरमौर के नाहन से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित महामाया बाला सुंदरी का लगभग साढ़े 3 सौ वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है. इस मंदिर का क्या इतिहास है (History of Balasundari Temple) इस बारे में जानने के लिए पढ़ें पूरी खबर...

Balasundari Temple Trilokpur
बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर

नाहन: यूं तो देवभूमि हिमाचल के कण-कण में देवी-देवता वास करते हैं. प्रदेश में कई प्रसिद्ध दिव्य शक्तिपीठ भी स्थित हैं. इन्हीं में से एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में महामाया बालासुंदरी का दरबार भी है. यूं तो यहां साल भर श्रद्धालुओं का भारी संख्या में तांता लगा रहता है, लेकिन साल में दो मर्तबा नवरात्रों में यहां मेले का आयोजन होता है. जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्धालु हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली एवं उत्तराखंड राज्यों से आते हैं और माता बालासुंदरी के दर्शन करते हैं.

दरअसल शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित महामाया बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर (Balasundari Temple Trilokpur) में इस वर्ष भी 2 अप्रैल से 16 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र मेले का आयोजन किया जा रहा है. जिसके लिए त्रिलोकपुर मंदिर न्यास द्वारा सभी प्रबंध पूरे कर लिए गए हैं. जिला मुख्यालय नाहन से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित महामाया बाला सुंदरी का लगभग साढ़े 3 सौ वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है. महामाया बालासुंदरी मंदिर के इतिहास को लेकर मंदिर के वरिष्ठ पुजारी डॉ. सुरेश कुमार ने विस्तार से जानकारी दी.

बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर


जानिये क्या है इस मंदिर का इतिहास- मंदिर के (History of Balasundari Temple) वरिष्ठ पुजारी डॉ. सुरेश कुमार भारद्वाज सहित जनश्रुति के अनुसार महामाया बाला सुंदरी जी के मंदिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में तत्कालीन सिरमौर रियासत के राजा प्रदीप प्रकाश ने की थी. इस मंदिर की स्थापना के बारे में भिन्न-भिन्न किंवदंतियां है. कहा जाता है कि सन 1573 ई. यानी संवत 1630 में सिरमौर जिले में नमक की कमी हो गई थी. ज्यादातर नमक देवबंद नामक स्थान से लाना पड़ता था, जोकि आज उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का कस्बा है.

कहा जाता है कि लाला रामदास नामक व्यक्ति जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में (Balasundari Temple Trilokpur) नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थी. लाला रामदास की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी. लाला रामदास ने देवबंद से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए, मगर नमक समाप्त होने में नहीं आया. लाला जी उस पीपल के वृक्ष को हर रोज सुबह जल दिया करते थे और पूजा करते थे. उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया और चिंता में पड़ गए कि नमक समाप्त क्यों नहीं हो रहा.

एक दिन माता बाला सुंदरी ने प्रसन्न होकर रात्रि को लाला जी के सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि भक्त मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति प्रसन्न हूं. मैं यहां पीपल वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में स्थापित होना चाहती हूं और तुम मेरा यहां पर भवन बनवाओ. लाला जी को अब भवन निर्माण की चिंता सताने लगी. स्वप्न में लाला जी ने माता से आहवान किया कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है और विनती की कि आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दें.

माता ने अपने भक्त की पुकार सुन ली और उस समय के सिरमौर के राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण करने को कहा. महाराजा प्रदीप प्रकाश ने तुरंत जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य पूरा किया और वर्तमान में यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर उभर चुका है.


यह भी है किदवंति- हालांकि मां बालासुंदरी के नमक की बोरी में आने की किदवंति अधिक परिचालित है, लेकिन यदि मंदिर परिसर में मंदिर के इतिहास को लेकर लगाए गए बोर्ड की मानें तो वहां उपरोक्त इतिहास के बाद एक दूसरी किदवंति का भी जिक्र किया गया है. दूसरी किदवंति के अनुसार लाला रामदास के घर के सामने पीपल का एक पेड़ था. वहां वह हर रोज जल एवं फल- फूल चढ़ाया करता था. एक बार भंयक तूफान आया और पीपल का पेड़ उखड़ गया.

उस पेड़ के स्थान पर एक पिंडी प्रकट हुई. रामदास उस पिंडी को उठाकर घर लाए और उसे नहला पूजा अर्चना करने लगे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा. रामदास जी ने स्वप्न की चर्चा राजा से की, जिन्होंने श्रद्धापूर्वक त्रिलोकपुर में मंदिर बनवाया. मंदिर का दो बार सन 1823 में राजा फतेह प्रकाश व सन 1851 में राजा रघुबीर प्रकाश द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया.

ये भी है यहां लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता- यहां पर चैत्र और अश्वनी मास के नवरात्रों में लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता यह है कि यहां पर किसी भी प्रकार की शोभा यात्रा या जुलूस नहीं निकाला जाता. लोग हजारों की संख्या में पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश से टोलियों में मां भगवती की भेंटे गाते व जयकारे लगाते हुए यहां आते हैं. मुरादें पाने के लिए सुबह से ही लंबी कतारों में माता का गुणगान करते हुए माता बालासुंदरी के विशाल भवन में दर्शन करते हैं. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान है और यहां पर की गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है.
बाहरी राज्यों से आते हैं श्रद्धालु- मंदिर के पुजारी पंडित डॉ. सुरेश कुमार भारद्वाज ने बताया कि दूर-दूर से मां के दर्शनों के लिए यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी करती है. कुल मिलाकर महामाया बालासुंदरी के प्रति लाखों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है. यही वजह है कि दूर-दूर से भक्त माता के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं और मंदिर न्यास द्वारा भी यहां श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं.

ये भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2022: नवरात्रि में अलग-अलग प्रसाद का भोग लगाकर करें माता को प्रसन्न

नाहन: यूं तो देवभूमि हिमाचल के कण-कण में देवी-देवता वास करते हैं. प्रदेश में कई प्रसिद्ध दिव्य शक्तिपीठ भी स्थित हैं. इन्हीं में से एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में महामाया बालासुंदरी का दरबार भी है. यूं तो यहां साल भर श्रद्धालुओं का भारी संख्या में तांता लगा रहता है, लेकिन साल में दो मर्तबा नवरात्रों में यहां मेले का आयोजन होता है. जिसमें लाखों की तादाद में श्रद्धालु हिमाचल सहित पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली एवं उत्तराखंड राज्यों से आते हैं और माता बालासुंदरी के दर्शन करते हैं.

दरअसल शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित महामाया बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर (Balasundari Temple Trilokpur) में इस वर्ष भी 2 अप्रैल से 16 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र मेले का आयोजन किया जा रहा है. जिसके लिए त्रिलोकपुर मंदिर न्यास द्वारा सभी प्रबंध पूरे कर लिए गए हैं. जिला मुख्यालय नाहन से लगभग 23 किलोमीटर दूरी पर स्थित महामाया बाला सुंदरी का लगभग साढ़े 3 सौ वर्ष पुराना मंदिर धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन की दृष्टि से विशेष स्थान रखता है. महामाया बालासुंदरी मंदिर के इतिहास को लेकर मंदिर के वरिष्ठ पुजारी डॉ. सुरेश कुमार ने विस्तार से जानकारी दी.

बालासुंदरी मंदिर त्रिलोकपुर


जानिये क्या है इस मंदिर का इतिहास- मंदिर के (History of Balasundari Temple) वरिष्ठ पुजारी डॉ. सुरेश कुमार भारद्वाज सहित जनश्रुति के अनुसार महामाया बाला सुंदरी जी के मंदिर की स्थापना सोलहवीं शताब्दी में तत्कालीन सिरमौर रियासत के राजा प्रदीप प्रकाश ने की थी. इस मंदिर की स्थापना के बारे में भिन्न-भिन्न किंवदंतियां है. कहा जाता है कि सन 1573 ई. यानी संवत 1630 में सिरमौर जिले में नमक की कमी हो गई थी. ज्यादातर नमक देवबंद नामक स्थान से लाना पड़ता था, जोकि आज उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर का कस्बा है.

कहा जाता है कि लाला रामदास नामक व्यक्ति जो सदियों पहले त्रिलोकपुर में (Balasundari Temple Trilokpur) नमक का व्यापार करते थे, उनकी नमक की बोरी में माता उनके साथ यहां आई थी. लाला रामदास की दुकान त्रिलोकपुर में पीपल के वृक्ष के नीचे हुआ करती थी. लाला रामदास ने देवबंद से लाया तमाम नमक दुकान में डाल दिया और बेचते गए, मगर नमक समाप्त होने में नहीं आया. लाला जी उस पीपल के वृक्ष को हर रोज सुबह जल दिया करते थे और पूजा करते थे. उन्होंने नमक बेचकर बहुत पैसा कमाया और चिंता में पड़ गए कि नमक समाप्त क्यों नहीं हो रहा.

एक दिन माता बाला सुंदरी ने प्रसन्न होकर रात्रि को लाला जी के सपने में आकर दर्शन दिए और कहा कि भक्त मैं तुम्हारे भक्तिभाव से अति प्रसन्न हूं. मैं यहां पीपल वृक्ष के नीचे पिंडी रूप में स्थापित होना चाहती हूं और तुम मेरा यहां पर भवन बनवाओ. लाला जी को अब भवन निर्माण की चिंता सताने लगी. स्वप्न में लाला जी ने माता से आहवान किया कि इतने बड़े भवन निर्माण के लिए मेरे पास सुविधाओं व धन का अभाव है और विनती की कि आप सिरमौर के महाराजा को भवन निर्माण का आदेश दें.

माता ने अपने भक्त की पुकार सुन ली और उस समय के सिरमौर के राजा प्रदीप प्रकाश को सोते समय स्वप्न में दर्शन देकर भवन निर्माण करने को कहा. महाराजा प्रदीप प्रकाश ने तुरंत जयपुर से कारीगरों को बुलाकर भवन निर्माण का कार्य पूरा किया और वर्तमान में यह स्थल धार्मिक पर्यटन के रूप में अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर उभर चुका है.


यह भी है किदवंति- हालांकि मां बालासुंदरी के नमक की बोरी में आने की किदवंति अधिक परिचालित है, लेकिन यदि मंदिर परिसर में मंदिर के इतिहास को लेकर लगाए गए बोर्ड की मानें तो वहां उपरोक्त इतिहास के बाद एक दूसरी किदवंति का भी जिक्र किया गया है. दूसरी किदवंति के अनुसार लाला रामदास के घर के सामने पीपल का एक पेड़ था. वहां वह हर रोज जल एवं फल- फूल चढ़ाया करता था. एक बार भंयक तूफान आया और पीपल का पेड़ उखड़ गया.

उस पेड़ के स्थान पर एक पिंडी प्रकट हुई. रामदास उस पिंडी को उठाकर घर लाए और उसे नहला पूजा अर्चना करने लगे. उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और मंदिर बनवाने के लिए कहा. रामदास जी ने स्वप्न की चर्चा राजा से की, जिन्होंने श्रद्धापूर्वक त्रिलोकपुर में मंदिर बनवाया. मंदिर का दो बार सन 1823 में राजा फतेह प्रकाश व सन 1851 में राजा रघुबीर प्रकाश द्वारा जीर्णोद्धार करवाया गया.

ये भी है यहां लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता- यहां पर चैत्र और अश्वनी मास के नवरात्रों में लगने वाले मेले की मुख्य विशेषता यह है कि यहां पर किसी भी प्रकार की शोभा यात्रा या जुलूस नहीं निकाला जाता. लोग हजारों की संख्या में पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश से टोलियों में मां भगवती की भेंटे गाते व जयकारे लगाते हुए यहां आते हैं. मुरादें पाने के लिए सुबह से ही लंबी कतारों में माता का गुणगान करते हुए माता बालासुंदरी के विशाल भवन में दर्शन करते हैं. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस पावन स्थली पर माता साक्षात रूप में विराजमान है और यहां पर की गई मनोकामना अवश्य पूरी होती है.
बाहरी राज्यों से आते हैं श्रद्धालु- मंदिर के पुजारी पंडित डॉ. सुरेश कुमार भारद्वाज ने बताया कि दूर-दूर से मां के दर्शनों के लिए यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं और मां सबकी मनोकामना पूरी करती है. कुल मिलाकर महामाया बालासुंदरी के प्रति लाखों श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है. यही वजह है कि दूर-दूर से भक्त माता के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं और मंदिर न्यास द्वारा भी यहां श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं.

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