मंडी: करसोग उपमंडल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शोरशन में छात्रों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे मे जानकारी दी गई. रासायनिक खेती से स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में भी छात्रों को अवगत करवाया गया.
क्या है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर व गौमूत्र पर आधारित है. देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाया जाता है. इसका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार भी होता है.
देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तैयार किया जाता है और इसी से फसल के लिए कीटनाशक दवा भी तैयार की जाती है. लीना शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती में इसके उपयोग से अच्छी पैदावार हो सकती है.
जीवामृत का महीने में दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है, जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही इस तकनीक को अपनाने से किसान कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन कर सकते हैं.
लीना शर्मा खुद प्राकृतिक खेती करके अन्य महिलाओं को भी इस खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. रासायनिक खेती के इस दौर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लीना शर्मा ने अपने गांव पजयानु में बंजर पड़ी जमीन पर कड़ी मेहनत और लगन से फसल तैयार कर रही हैं.
लीना शर्मा ने अक्टूबर 2018 में पद्मश्री सुभाष पालेकर से शिमला के कुफरी में 5 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर 5 एकड़ भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू किया था. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू करने पर अच्छे परिणाम देखकर थाच, छंडियारा और फेगल की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही हैं. बता दें कि प्राकृतिक खेती का नाम पद्मश्री सुभाष पालेकर के नाम पर रखा गया है.