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पहाड़ ने पढ़ा प्राकृतिक खेती का 'पहाड़ा', जहर वाली खेती को बाय-बाय करने को स्कूलों से भी शुरू हुआ अभियान

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर व गौमूत्र पर आधारित है. देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाया जाता है.

लीना शर्मा
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Published : Nov 5, 2019, 12:42 PM IST

Updated : Nov 5, 2019, 1:09 PM IST

मंडी: करसोग उपमंडल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शोरशन में छात्रों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे मे जानकारी दी गई. रासायनिक खेती से स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में भी छात्रों को अवगत करवाया गया.

क्या है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर व गौमूत्र पर आधारित है. देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाया जाता है. इसका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार भी होता है.

देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तैयार किया जाता है और इसी से फसल के लिए कीटनाशक दवा भी तैयार की जाती है. लीना शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती में इसके उपयोग से अच्छी पैदावार हो सकती है.

जीवामृत का महीने में दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है, जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही इस तकनीक को अपनाने से किसान कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन कर सकते हैं.

वीडियो

लीना शर्मा खुद प्राकृतिक खेती करके अन्य महिलाओं को भी इस खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. रासायनिक खेती के इस दौर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लीना शर्मा ने अपने गांव पजयानु में बंजर पड़ी जमीन पर कड़ी मेहनत और लगन से फसल तैयार कर रही हैं.

लीना शर्मा ने अक्टूबर 2018 में पद्मश्री सुभाष पालेकर से शिमला के कुफरी में 5 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर 5 एकड़ भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू किया था. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू करने पर अच्छे परिणाम देखकर थाच, छंडियारा और फेगल की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही हैं. बता दें कि प्राकृतिक खेती का नाम पद्मश्री सुभाष पालेकर के नाम पर रखा गया है.

मंडी: करसोग उपमंडल में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शोरशन में छात्रों को सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती के बारे मे जानकारी दी गई. रासायनिक खेती से स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में भी छात्रों को अवगत करवाया गया.

क्या है सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती
सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर व गौमूत्र पर आधारित है. देसी गाय के गोबर व गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है. देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर व मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाया जाता है. इसका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार भी होता है.

देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत तैयार किया जाता है और इसी से फसल के लिए कीटनाशक दवा भी तैयार की जाती है. लीना शर्मा ने बताया कि प्राकृतिक खेती में इसके उपयोग से अच्छी पैदावार हो सकती है.

जीवामृत का महीने में दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है, जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है. इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है. साथ ही इस तकनीक को अपनाने से किसान कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन कर सकते हैं.

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लीना शर्मा खुद प्राकृतिक खेती करके अन्य महिलाओं को भी इस खेती से जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं. रासायनिक खेती के इस दौर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लीना शर्मा ने अपने गांव पजयानु में बंजर पड़ी जमीन पर कड़ी मेहनत और लगन से फसल तैयार कर रही हैं.

लीना शर्मा ने अक्टूबर 2018 में पद्मश्री सुभाष पालेकर से शिमला के कुफरी में 5 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद गांव की कुछ महिलाओं को साथ लेकर 5 एकड़ भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू किया था. सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू करने पर अच्छे परिणाम देखकर थाच, छंडियारा और फेगल की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही हैं. बता दें कि प्राकृतिक खेती का नाम पद्मश्री सुभाष पालेकर के नाम पर रखा गया है.

Intro:रासायनिक खेती से मुक्ति की ओर तेजी से पड़ रहे पजयानु गांव से संबन्ध रखने वाली लीना शर्मा ने छात्रों को बताया कि कैसे देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत और घनजीवामृत तैयार किया जाता है और इसी से फसल के लिए कीटनाशक दवा भी तैयार की जाती है। Body:इस पहाड़ का पहाड़ा, जहर वाली खेती को बाय बाय करने को स्कूलों से भी शुरू हुआ अभियान
करसोग
करसोग में जहर वाली रासायनिक खेती को बाय बाय करने को अब स्कूल के बच्चे भी अपनी भूमिका निभाएंगे। इसी कड़ी में राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला शोरशन छात्रों को रासायनिक खेती से स्वास्थ्य और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी दी गई। इस दौरान सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती में अपनी पहचान बना चुकी लीना शर्मा छात्रों को प्राकृतिक खेती को अपनाने से होने वाले फायदों के बारे में बताया। लीना शर्मा बतौर रिसोर्स पर्सन स्कूल में बुलाया गया था। रासायनिक खेती से मुक्ति की ओर तेजी से पड़ रहे पजयानु गांव से संबन्ध रखने वाली लीना शर्मा ने छात्रों को बताया कि कैसे देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत और घनजीवामृत तैयार किया जाता है और इसी से फसल के लिए कीटनाशक दवा भी तैयार की जाती है। प्राकृतिक खेती में इसके उपयोग से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। उन्होंने रासायनिक खेती से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के बारे में भी छात्रों विस्तृत जानकारी दी।

प्राकृतिक खेती की दी पहचान:
करसोग में लीना शर्मा ने प्राकृतिक खेती को नई दिशा प्रदान कर रही है। वे न केवल खुद प्राकृतिक खेती कर रही है बल्कि अपने आसपास के इलाकों की महिलाओं को भी प्रेरित कर रही है। रासायनिक खेती के इस दौर में तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद लीना शर्मा ने अपने गांव पजयानु में बंजर पड़ चुकी भूमि की कोख को कड़ी मेहनत और लगन से सींच कर सोने जैसी बालियों वाली फसल तैयार कर रही हैं। अक्टूबर 2018 में पदम् श्री सुभाष पालेकर से शिमला के कुफ़री में 5 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने गांव की कुछ एक महिलाओं को साथ लेकर 5 बीघा भूमि पर सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती का कार्य शुरू किया। इसके अच्छे परिणाम देखकर अब न केवल पण्याणु बल्कि आसपास के गांवों थाच, छंडियारा व फेगल की महिलाएं भी प्राकृतिक खेती की तकनीक को अपना रही है। लीना की मेहनत और लगन को देखकर उन्हें अब प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी देने के लिए स्कूलों में रिसोर्स पर्सन के तौर पर बुलाया जा रहा है।


सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती क्या है?

सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत आदि बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तकनीक को अपनाने से किसान कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन ले सकता है।Conclusion:सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र पर आधारित है। एक देसी गाय के गोबर एवं गौमूत्र से एक किसान तीस एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती कर सकता है। देसी प्रजाति के गौवंश के गोबर एवं मूत्र से जीवामृत, घनजीवामृत व बीजामृत आदि बनाया जाता है। इनका खेत में उपयोग करने से मिट्टी में पोषक तत्वों की वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है। जीवामृत का महीने में एक अथवा दो बार खेत में छिड़काव किया जा सकता है।जबकि बीजामृत का इस्तेमाल बीजों को उपचारित करने में किया जाता है। इस विधि से खेती करने वाले किसान को बाजार से किसी प्रकार की खाद और कीटनाशक रसायन खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तकनीक को अपनाने से किसान कम बारिश में भी अच्छा उत्पादन ले सकता है।
Last Updated : Nov 5, 2019, 1:09 PM IST
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