मंडी: पंडित सुखराम का अंतिम संस्कार ( Pandit Sukh Ram last rites) आज मंडी में होगा. उनका पार्थिव शरीर मंडी पहुंच गया है. वहीं, गुरुवार सुबह 11 बजे पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरी मंच पर रखा जाएगा. जिसके बाद हनुमानघाट स्थित श्मशानघाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
पंडित सुखराम के अंतिम संस्कार में सीएम जयराम समेत भाजपा और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के पहुंचने की उम्मीद है. अंतिम संस्कार को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. अंतिम संस्कार को लेकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. बता दें कि अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पंडित सुखराम के बेटे अनिल शर्मा ने कहा कि आयुष शर्मा आज रात को मंडी पहुंचेंगे, जबकि उनकी पत्नी और बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान की बहन अर्पिता खान और अन्य लोग गुरुवार सुबह मंडी पहुंचेंगे.
बता दें कि बुधवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम (pandit sukh ram passes away) का निधन हो गया. दिल्ली स्थित एम्स में पंडित सुखराम ने अंतिम सांस ली. बीती रात को पंडित सुखराम को फिर से दिल का दौरा पड़ा, जिस कारण उनका देहांत हो गया. इससे पहले 9 मई को भी उन्हें दिल का दौरा पड़ा था और उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा गया था. बता दें कि 4 मई को मनाली में पंडित सुखराम को ब्रेन स्ट्रोक हुआ था. जिसके बाद उन्हें जोनल अस्पताल मंडी में उपचार के लिए भर्ती करवाया गया था. 7 मई सुबह 9:30 बजे पंडित सुखराम को बेहतर इलाज के लिए राज्य सरकार के हेलीकॉप्टर के माध्यम से दिल्ली ले जाया गया था. जहां एम्स में पंडित सुखराम भर्ती थे. पंडित सुखराम 95 वर्ष के थे. काफी लंबे समय तक उन्होंने देश-प्रदेश की राजनीति में अपना सक्रिय योगदान दिया है.
राजनीतिक सफर: प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम (political journey of pandit sukh ram) का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र (Mandi Sadar Assembly Constituency) से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.
1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. 1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.
हिविकां ने 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए. पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी. 2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए.
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