करसोग: देवभूमि करसोग में कई रहस्य आज भी मानव जाति को हैरान करने वाले हैं. यहां लोगों की देवी देवताओं पर अटूट आस्था है. यही कारण है कि सदियों से देवी देवताओं पर बना लोगों का विश्वास आज के आधुनिक दौर में भी कायम है.
उपमंडल करसोग में ऐसी ही आस्था का एक मंदिर मूल माहूनाग का है. राजा कर्ण का अवतार माने गए माहूनाग के मंदिर में महाभारत काल से अखंड धुना जल रहा है. लोगों की आस्था ने आज भी कभी धुनें को बुझने नहीं दिया है.
महाभारत काल से जल रहा है धुना
जानकारी देते हुए मूल माहूनाग मंदिर के पुजारी लीलाधर शर्मा का कहना है कि अखंड धुना महाभारत काल से निरंतर जला है. देवताओं ने जब राक्षसों का नाश किया था तो यहां एक पेड़ पर आसमानी बिजली गिरी थी. तब से इस धुने को अखंड रखा गया है.
आसमानी बिजली गिरने के बाद से जल रहा है ये धुना
बड़ी बात ये है कि सदियों से दिन और रात जल रहे इस धुनें से कभी राख बाहर नहीं निकली. मंदिर के पुजारी के मुताबिक देवताओं द्वारा राक्षसों का नाश करने के बाद यहां मंदिर परिसर में एक पेड़ पर आसमानी बिजली गिरी थी. उसी समय से ये अखंड धुना जलता आ रहा है.
राख से कभी भी नहीं भरता धुना
ये धुना कभी राख से नहीं भरता है. यही नहीं ये राख भी चमत्कार से कम नहीं है. रोगों का नाश करने वाली इस राख को देश सहित प्रदेश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु अपने साथ भी लेकर जाते हैं.
खूबसूरत पहाड़ों से घिरा है माहूनाग मंदिर
धुने की राख को मंदिर के मुख्यद्वार के सामने में एक थाली पर रखी गई है. जहां से श्रद्धालु माहूनाग देवता के दर्शन करने के बाद राख का माथे पर तिलक लगाकर कागज में साथ भी ले जाते हैं. प्रसिद्ध मूल माहूनाग मंदिर करसोग से 33 किलोमीटर और शिमला से करीब 100 किलोमीटर की दूरी पर चारों ओर खूबसूरत पहाड़ों से घिरे माहूनाग की चोटी पर स्थित है.
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