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देहरी मंदिर में खुदाई के दौरान मिली सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति, जानें क्या है पूरा मामला

सुकेत रियासत के ऐतिहासिक नगरी पांगणा के देहरी मंदिर में सराय भवन के निर्माण के लिए की जा रही खुदाई के दौरान सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति मिली है. सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि भगवान सूर्य हिंदू परंपरा के पंचदेवों में से एक माने जाते हैं. भारतीय देव पूजा पद्धति में गणेश, सूर्य, देवी, शिव, विष्णु की आराधना का विधान है. पांगणा के देहरी माता मंदिर मे इन पांचों देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदाई में निकली हैं.

Ancient statue of God  Sun
Ancient statue of God Sun
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Published : Jan 13, 2021, 10:59 PM IST

मंडीः सुकेत रियासत के ऐतिहासिक नगरी पांगणा के देहरी मंदिर में सराय भवन के निर्माण के लिए की जा रही खुदाई के दौरान सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति मिली है. कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का बताया जा रहा है.

सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि भगवान सूर्य हिंदू परंपरा के पंचदेवों में से एक माने जाते हैं. भारतीय देव पूजा पद्धति में गणेश, सूर्य, देवी, शिव, विष्णु की आराधना का विधान है. पांगणा के देहरी माता मंदिर मे इन पांचों देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदाई में निकली हैं. सूर्य का वर्णन ऋग्वक में मिलता है. सूर्य को वैदिक ऋषि कश्यप और अदिति का पुत्र माना जाता है. खुदाई में मिली इस मूर्ति के सिर के पृष्ठ भाग में आभामंडल है, जो धर्म चक्र का प्रतीक है. हिंदू धर्म की मूर्ति परंपरा में सूर्य देव की स्थानक मुद्रा में दोनों हाथों में सूर्य भगवान पुष्प लिए हुए हैं.

पांगणा के इतिहास को करता है स्पष्ट

आरंभ की ईशा शताब्दियों की भारतीय सूर्य प्रतिमा कला पक्ष की दृष्टि से इरान-यूनान की प्रतिमाओं की तरह है. सतलुज घाटी के इस क्षेत्र में सूर्य की ऐसी वैभवपूर्ण मूर्ति का मिलना पांगणा के गौरवशाली इतिहास को स्पष्ट करता है. ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है.

सुरक्षित स्थान पर रखवाई गई मुर्ति

इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के चलते मूर्ति की स्थापना का काल आठवीं-नवीं शताब्दी बैठता है. कला की दृष्टि से यह मूर्ति काओ-ममेल के मंदिरों में स्थापित प्रतिहार शैली की मूर्तियों से कम नहीं है. खुदाई मे मूर्ति के मिलने के बाद डॉक्टर जगदीश शर्मा ने भाषा एवं संस्कृति निदेशालय के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर चुनीलाल कश्यप और हिमाचल प्रदेश के राज्य संग्रहालय के प्रभारी संग्राध्यक्ष डॉक्टर हरि चौहान से संपर्क कर इस मूर्ति के दिव्य विग्रह के स्वरूप और इसके निर्माण काल की जानकारी प्राप्त कर मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी शनि शर्मा को इस मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया है.

'देहरी मंदिर में एक पुरातात्विक खजाना'

राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि सूर्य देव की इस मूर्ति की शोभा देखते ही बनती है. उनका कहना है कि देहरी के इस मंदिर में एक विकसित सभ्यता का बेशकीमती पुरातात्विक खजाना दबा पड़ा है. इस स्थान पर पुरातात्विक धरोहरों को खोजने और संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग को वैज्ञानिक और व्यवस्थित प्रयास करने के साथ संस्कृति की अमूल्य धरोहर देहरी माता मंदिर रूपी इस ज्योति स्तंभ के जीर्णोद्धार के साथ यहां आसपास निकली मूर्तियों के रख-रखाव के लिए संग्रहालय कक्ष के निर्माण का भरसक प्रयास करना चाहिए, ताकि इस अमूल्य निधि का रक्षण हो सके.

ये भी पढ़ें- कोरोना योद्धाओं के सामने थी ये चुनौतियां, सुनें कहानी वॉरियर्स की जुबानी

मंडीः सुकेत रियासत के ऐतिहासिक नगरी पांगणा के देहरी मंदिर में सराय भवन के निर्माण के लिए की जा रही खुदाई के दौरान सूर्य देव की प्राचीन मूर्ति मिली है. कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का बताया जा रहा है.

सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेंद्र बाली का कहना है कि भगवान सूर्य हिंदू परंपरा के पंचदेवों में से एक माने जाते हैं. भारतीय देव पूजा पद्धति में गणेश, सूर्य, देवी, शिव, विष्णु की आराधना का विधान है. पांगणा के देहरी माता मंदिर मे इन पांचों देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदाई में निकली हैं. सूर्य का वर्णन ऋग्वक में मिलता है. सूर्य को वैदिक ऋषि कश्यप और अदिति का पुत्र माना जाता है. खुदाई में मिली इस मूर्ति के सिर के पृष्ठ भाग में आभामंडल है, जो धर्म चक्र का प्रतीक है. हिंदू धर्म की मूर्ति परंपरा में सूर्य देव की स्थानक मुद्रा में दोनों हाथों में सूर्य भगवान पुष्प लिए हुए हैं.

पांगणा के इतिहास को करता है स्पष्ट

आरंभ की ईशा शताब्दियों की भारतीय सूर्य प्रतिमा कला पक्ष की दृष्टि से इरान-यूनान की प्रतिमाओं की तरह है. सतलुज घाटी के इस क्षेत्र में सूर्य की ऐसी वैभवपूर्ण मूर्ति का मिलना पांगणा के गौरवशाली इतिहास को स्पष्ट करता है. ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है.

सुरक्षित स्थान पर रखवाई गई मुर्ति

इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के चलते मूर्ति की स्थापना का काल आठवीं-नवीं शताब्दी बैठता है. कला की दृष्टि से यह मूर्ति काओ-ममेल के मंदिरों में स्थापित प्रतिहार शैली की मूर्तियों से कम नहीं है. खुदाई मे मूर्ति के मिलने के बाद डॉक्टर जगदीश शर्मा ने भाषा एवं संस्कृति निदेशालय के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरेक्टर चुनीलाल कश्यप और हिमाचल प्रदेश के राज्य संग्रहालय के प्रभारी संग्राध्यक्ष डॉक्टर हरि चौहान से संपर्क कर इस मूर्ति के दिव्य विग्रह के स्वरूप और इसके निर्माण काल की जानकारी प्राप्त कर मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी शनि शर्मा को इस मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया है.

'देहरी मंदिर में एक पुरातात्विक खजाना'

राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डॉक्टर जगदीश शर्मा का कहना है कि सूर्य देव की इस मूर्ति की शोभा देखते ही बनती है. उनका कहना है कि देहरी के इस मंदिर में एक विकसित सभ्यता का बेशकीमती पुरातात्विक खजाना दबा पड़ा है. इस स्थान पर पुरातात्विक धरोहरों को खोजने और संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग को वैज्ञानिक और व्यवस्थित प्रयास करने के साथ संस्कृति की अमूल्य धरोहर देहरी माता मंदिर रूपी इस ज्योति स्तंभ के जीर्णोद्धार के साथ यहां आसपास निकली मूर्तियों के रख-रखाव के लिए संग्रहालय कक्ष के निर्माण का भरसक प्रयास करना चाहिए, ताकि इस अमूल्य निधि का रक्षण हो सके.

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