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कुल्लू में मकर संक्रांति की धूम, भगवान रघुनाथ के मंदिर में बांटी गई खिचड़ी

मकर सक्रांति के अवसर पर हर वर्ष रघुनाथ मंदिर में खिचड़ी को बतौर प्रसाद परोसने की परंपरा है. वहीं, कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं.

makar sankranti celebrated in kullu
कुल्लू में मकर संक्रांति की धूम
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Published : Jan 14, 2020, 7:11 PM IST

कुल्लू: जिला कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया गया. इस मौके पर रघुनाथ मंदिर में देसी घी व दही के साथ खिचड़ी श्रद्धालुओं को प्रसाद के तौर पर बांटी गई. कार्यक्रम में रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भी मौजूद रहे. हालांकि सुबह से ही कुल्लू में मौसम खराब होता रहा लेकिन आस्था ठंड पर भारी पड़ी.

मकर सक्रांति के अवसर पर हर वर्ष रघुनाथ मंदिर में खिचड़ी को बतौर प्रसाद परोसने की परंपरा है. वहीं, कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं. मनाली सहित इर्द-गिर्द के क्षेत्र में मकर संक्रांति को बड़े हर्षोल्लास एवं बड़ों को जूब देकर वर्षों पुरानी परंपरा को निभाया जाता है.

मनाली गांव के बुजुर्ग मेहर चंद ने बताया कि मनाली में जिस प्रकार का माहौल अब देखने को मिल रहा है, पूर्व में किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी. घाटी में इस समय हल्की बर्फ गिरी है. पहले बर्फ इंच में नहीं बल्कि फुटों में देखने को मिलती थी. किसी प्रकार का कोई संचार या परिवहन माध्यम न होने के कारण निकट संबंधियों की कोई खैर खबर नहीं होती थी. ऐसे में मकर संक्रांति न केवल खुशियां लेकर आती थी बल्कि निकट संबंधियों के कुशल क्षेम की जानकारी भी आसानी से मिल जाती थी.

बुजुर्ग हीरा लाल ने बताया कि उस समय किसी प्रकार का कोई मनोरंजन साधन घाटी में उपलब्ध नहीं था. लिहाजा मेले एवं पर्व के समय ही अपनों से मिलने व अपनी भावनाओं को प्रकट करने के मुख्य साधन होते थे. अन्य क्षेत्रों में इस पर्व पर अधिकांश जनमानस तीर्थ स्थलों का रूख कर डुबकी लगाते हैं.

बहुत से स्थानों पर मकर संक्रांति को 'खिचड़ी का साजा' नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन घर-घर में माश की खिचड़ी बनाई जाती है.भले ही आज घाटी के घर-घर में टेलीफोन व्यवस्था होने से उनके निकट संबंधी संपर्क में रहते हैं, लेकिन आज की यह आधुनिकता कई सदियों से चले आ रहे इस त्योहार की मिठास को कम नहीं कर पाई है.

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ये भी पढ़ें: मकर सक्रांती रे मौके पर इकी बर्तना च बनी 1995 किलो खिचड़ी, बनया नया वर्ल्ड रिकॉर्ड

कुल्लू: जिला कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार धूमधाम से मनाया गया. इस मौके पर रघुनाथ मंदिर में देसी घी व दही के साथ खिचड़ी श्रद्धालुओं को प्रसाद के तौर पर बांटी गई. कार्यक्रम में रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भी मौजूद रहे. हालांकि सुबह से ही कुल्लू में मौसम खराब होता रहा लेकिन आस्था ठंड पर भारी पड़ी.

मकर सक्रांति के अवसर पर हर वर्ष रघुनाथ मंदिर में खिचड़ी को बतौर प्रसाद परोसने की परंपरा है. वहीं, कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है. सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं. मनाली सहित इर्द-गिर्द के क्षेत्र में मकर संक्रांति को बड़े हर्षोल्लास एवं बड़ों को जूब देकर वर्षों पुरानी परंपरा को निभाया जाता है.

मनाली गांव के बुजुर्ग मेहर चंद ने बताया कि मनाली में जिस प्रकार का माहौल अब देखने को मिल रहा है, पूर्व में किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी. घाटी में इस समय हल्की बर्फ गिरी है. पहले बर्फ इंच में नहीं बल्कि फुटों में देखने को मिलती थी. किसी प्रकार का कोई संचार या परिवहन माध्यम न होने के कारण निकट संबंधियों की कोई खैर खबर नहीं होती थी. ऐसे में मकर संक्रांति न केवल खुशियां लेकर आती थी बल्कि निकट संबंधियों के कुशल क्षेम की जानकारी भी आसानी से मिल जाती थी.

बुजुर्ग हीरा लाल ने बताया कि उस समय किसी प्रकार का कोई मनोरंजन साधन घाटी में उपलब्ध नहीं था. लिहाजा मेले एवं पर्व के समय ही अपनों से मिलने व अपनी भावनाओं को प्रकट करने के मुख्य साधन होते थे. अन्य क्षेत्रों में इस पर्व पर अधिकांश जनमानस तीर्थ स्थलों का रूख कर डुबकी लगाते हैं.

बहुत से स्थानों पर मकर संक्रांति को 'खिचड़ी का साजा' नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दिन घर-घर में माश की खिचड़ी बनाई जाती है.भले ही आज घाटी के घर-घर में टेलीफोन व्यवस्था होने से उनके निकट संबंधी संपर्क में रहते हैं, लेकिन आज की यह आधुनिकता कई सदियों से चले आ रहे इस त्योहार की मिठास को कम नहीं कर पाई है.

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Intro:कुल्लू में मनाया मकर सक्रांति का त्यौहार
भगवान रघुनाथ के मंदिर में बंटी खिचड़ीBody:



जिला कुल्लू में मकर संक्रांति का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया। इसी के तहत रघुनाथ मंदिर कुल्लू में भी मंगलवार को देसी घी व दही के साथ खिचड़ी श्रद्धालुओं में प्रसाद के तौर पर बांटी गई। इस मौके पर सैकड़ों लोगों ने रघुनाथ मंदिर में माथा भी टेका। विशेष पूजा-अर्चना के बाद मंदिर में लोगों की भीड़ लगनी शुरू हो गई। इस कार्यक्रम में रघुनाथ जी के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह भी मौजूद रहे। हालांकि सुबह से कुल्लू में मौसम खराब होता रहा लेकिन आस्था हाड़ कंपकपा देने वाली ठंड पर भारी पड़ी। माघ मास के पहले प्रविष्टे मकर सक्रांति पर हर वर्ष रघुनाथ मंदिर में खिचड़ी को बतौर प्रसाद परोसने की परंपरा है। वही, कुल्लू में मकर संक्रांति का त्योहार मनाने का अपना ही अंदाज है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अुनसार कुल्लू में लोग अपने निकट संबंधियों को जौ (जूब) प्रदान कर सुरक्षित सर्द ऋतु गुजर जाने पर खुशियां मनाते हैं। मनाली सहित इर्द-गिर्द के क्षेत्र में मकर संक्रांति को बड़े हर्षोल्लास एवं बड़ों को जूब देकर वर्षो पुरानी परंपरा को निभाया जा रहा है। मनाली गांव के बुजुर्ग मेहर चंद ने बताया कि मनाली में जिस प्रकार का माहौल अब देखने को मिल रहा है, पूर्व में किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की होगी। घाटी में इस समय हलकी बर्फ गिरी है। पहले बर्फ इंच में नहीं बल्कि फुटों में देखने को मिलती थी। किसी प्रकार का कोई संचार या परिवहन माध्यम न होने के कारण निकट संबंधियों की कोई खैर खबर नहीं होती थी। ऐसे में मकर संक्रांति न केवल खुशियां लेकर आती थी बल्कि निकट संबंधियों के कुशल क्षेम की जानकारी भी आसानी से मिल जाती थी। बुजुर्ग हीरा लाल ने बताया कि उस समय समय व्यतीत करने के लिए किसी प्रकार का कोई मनोरंजन साधन घाटी में उपलब्ध नहीं था। लिहाजा मेले एवं पर्व ही अपनों से मिलने व अपनी भावनाओं को प्रकट करने के मुख्य साधन होते थे। मकर संक्रांति ऊझी घाटी में मिलने मिलाने व कुशलक्षेम पूछने से संपन्न होती है, Conclusion:

वहीं अन्य क्षेत्रों में इस पर्व पर अधिकांश जनमानस तीर्थ स्थलों का रूख कर डुबकी लगाते हैं। बहुत से स्थानों पर मकर संक्रांति को 'खिचड़ी का साजा' नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस दिन घर-घर में माश की खिचड़ी बनाई जाती है। भले ही आज घाटी के घर-घर में टेलीफोन व्यवस्था होने से उनके निकट संबंधी संपर्क में हों और कई प्रकार के परिवहन माध्यम होने से पूर्व के विपरीत कभी भी अपने चहेतों से मिला जा सकता है। लेकिन आज की यह आधुनिकता कई सदियों से चले आ रहे इस त्योहार की मिठास को कम नहीं कर पाई है।

बाईट: महेश्वर सिंह
बाईट: विकास
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