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कुल्लू में आज से अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे का शुभारंभ, ढालपुर मैदान में पहुंचे सैकड़ों देवी-देवता - आराध्य देवी मां हिडिम्बा

कुल्लू के ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में विश्व विख्यात अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए सैकड़ों देवी-देवता अपने हरयानों के संग पहुंच रहे हैं. पूरे शहर में भाक्तिमय माहौल बना हुआ है.

International Kullu Dussehra festival
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Published : Oct 8, 2019, 6:05 PM IST

कुल्लूः जिला कुल्लू के ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में देव महाकुम्भ के नाम से विश्व विख्यात अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए सैकड़ों देवी-देवता अपने हरयानों के संग पहुंच रहे हैं. वैसे तो कुल्लू दशहरा में प्रत्येक देवी-देवता की अपनी अहम भूमिका रहती है, लेकिन कुछ ऐसे भी देवी-देवता हैं जिनके शिरकत के बिना कुल्लू दशहरा भी शुरू नहीं होता है.

इन्हीं में से एक हैं पर्यटन नगरी मनाली की आराध्य देवी मां हिडिम्बा. मां हिडिम्बा का कुल्लू दशहरे में विशेष योगदान है. भगवान रघुनाथ की पूजा-अर्चना करने के बाद मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी के साथ ढालपुर मैदान में शिरकत करती हैं.

एक सप्ताह अस्थायी शिविर में विराजेंगी मां हिडिम्बा

मां हिडिम्बा के बारे में अधिक जानकरी देते हुए माता के हरयान सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा जब कुल्लू पहुंचती हैं तो यहां पर उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी आती है और फिर माता यहां से कुल्लू दशहरा के लिए रवाना होती हैं. सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा अगले एक सप्ताह के लिए कुल्लू में अपने अस्थायी शिविर में विराजेंगी.

वीडियो.

मां हिडिम्बा को मानते हैं राजघराने की दादी

वहीं, भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने मां हिडिम्बा की अंतरारष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में रहने वाली भूमिका के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कुल्लू में भगवान रघुनाथ का आगमन काफी देर बाद हुआ था और उससे पूर्व यहां पर शिव और शक्ति की पूजा होती थी.

उन्होंने बताया कि यहां पहले जो मेला लगता था वे व्यापार के लिए लगता था. उन्होंने कहा कि मां हिडिम्बा को राजघराने की दादी कहा जाता है और जब भी मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में आती हैं तो उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी जाती है और फिर उसके बाद मां हिडिम्बा रामशिला से छड़ी के साथ रघुनाथ आती हैं.

ये भी पढ़ें- देश भर में दशहरे की धूम, राज्यपाल व मुख्यमंत्री ने प्रदेशवासियों को दी बधाई

छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने बताया कि जब मां हिडिम्बा राजमहल पहुंचती हैं तो पूरा राजपरिवार एक दरवाजे के पीछे छिप जाता है और फिर मां हिडिम्बा महल के अन्दर प्रवेश करती हैं और उसके बाद मां हिडिम्बा जब पुकारती हैं तो तब उनका परिवार बाहर आता है. इसके बाद कुछ समय विश्राम करने के बाद मां हिडिम्बा ढालपुर मैदान में होने वाली रथ यात्रा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी संग रघुनाथ मन्दिर से चल पड़ते हैं.

बता दें कि कुल्लू में आज से अगले सात दिनों तक चलने वाले इस देव महाकुम्भ में कई सास्कृतिक रंग देखने को मिलते हैं. एक तरफ जहां पूरे भारत में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते जलाये जाएंगे. वहीं, जिला कुल्लू में आज के सातवें दिन लंकादहन किया जाता है और इसकी खासियत एक यह भी है कि यहां पर दशहरे में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते नहीं जलाये जाते हैं बल्कि भगवान रघुनाथ की शोभा यात्रा से दशहरे का आगाज होता है.

ये भी पढ़ें- रामपुर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट 412 मेगावाट ने किया सतलुज आराधना का आयोजन, जीवनदायिनी नदी को स्वच्छ बनाए रखने की अपील

कुल्लूः जिला कुल्लू के ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में देव महाकुम्भ के नाम से विश्व विख्यात अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए सैकड़ों देवी-देवता अपने हरयानों के संग पहुंच रहे हैं. वैसे तो कुल्लू दशहरा में प्रत्येक देवी-देवता की अपनी अहम भूमिका रहती है, लेकिन कुछ ऐसे भी देवी-देवता हैं जिनके शिरकत के बिना कुल्लू दशहरा भी शुरू नहीं होता है.

इन्हीं में से एक हैं पर्यटन नगरी मनाली की आराध्य देवी मां हिडिम्बा. मां हिडिम्बा का कुल्लू दशहरे में विशेष योगदान है. भगवान रघुनाथ की पूजा-अर्चना करने के बाद मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी के साथ ढालपुर मैदान में शिरकत करती हैं.

एक सप्ताह अस्थायी शिविर में विराजेंगी मां हिडिम्बा

मां हिडिम्बा के बारे में अधिक जानकरी देते हुए माता के हरयान सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा जब कुल्लू पहुंचती हैं तो यहां पर उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी आती है और फिर माता यहां से कुल्लू दशहरा के लिए रवाना होती हैं. सुभाष ने बताया कि मां हिडिम्बा अगले एक सप्ताह के लिए कुल्लू में अपने अस्थायी शिविर में विराजेंगी.

वीडियो.

मां हिडिम्बा को मानते हैं राजघराने की दादी

वहीं, भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने मां हिडिम्बा की अंतरारष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में रहने वाली भूमिका के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कुल्लू में भगवान रघुनाथ का आगमन काफी देर बाद हुआ था और उससे पूर्व यहां पर शिव और शक्ति की पूजा होती थी.

उन्होंने बताया कि यहां पहले जो मेला लगता था वे व्यापार के लिए लगता था. उन्होंने कहा कि मां हिडिम्बा को राजघराने की दादी कहा जाता है और जब भी मां हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में आती हैं तो उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी जाती है और फिर उसके बाद मां हिडिम्बा रामशिला से छड़ी के साथ रघुनाथ आती हैं.

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छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने बताया कि जब मां हिडिम्बा राजमहल पहुंचती हैं तो पूरा राजपरिवार एक दरवाजे के पीछे छिप जाता है और फिर मां हिडिम्बा महल के अन्दर प्रवेश करती हैं और उसके बाद मां हिडिम्बा जब पुकारती हैं तो तब उनका परिवार बाहर आता है. इसके बाद कुछ समय विश्राम करने के बाद मां हिडिम्बा ढालपुर मैदान में होने वाली रथ यात्रा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी संग रघुनाथ मन्दिर से चल पड़ते हैं.

बता दें कि कुल्लू में आज से अगले सात दिनों तक चलने वाले इस देव महाकुम्भ में कई सास्कृतिक रंग देखने को मिलते हैं. एक तरफ जहां पूरे भारत में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते जलाये जाएंगे. वहीं, जिला कुल्लू में आज के सातवें दिन लंकादहन किया जाता है और इसकी खासियत एक यह भी है कि यहां पर दशहरे में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते नहीं जलाये जाते हैं बल्कि भगवान रघुनाथ की शोभा यात्रा से दशहरे का आगाज होता है.

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Intro:लोकेशन कुल्लू

कुल्लू में आज स्वर्ग से धरती पर उतरेंगे देवी देवता ।

कुल्लू में आज से होगा देव महाकुम्भ का आगाज ।

देवमहाकुम्भ में शिरकत करने के लिए ढालपुर मैदान पंहुच रहे सैकड़ो देवी देवता ।
Body:एंकर:-जिला कुल्लू के ऐतिहासिक ढालपुर मैदान में आज से आरम्भ हो रहे देव महाकुम्भ के नाम से विश्व विख्यात अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए सैकडों देवी देवता अपने हरयानों संग पंहुच रहे हैं । यूं तो कुल्लू दशहरा में प्रत्येक देवी देवता की अपनी अहम भूमिका रहती है परन्तु कुछ ऐसे भी देवी देवता है जिनके शिरकत के बिना कुल्लू दशहरा भी अरम्भ नही होता है । इन्हीं में से एक है पर्यटन नगरी मनाली की आराध्य देवी माँ हिडिम्बा जिन्हें कुल्लू राजघराने की दादी भी कहा जाता है । माँ हिडिम्बा का कुल्लू दशहरे में विशेष योगदान है । माँ हिडिम्बा जब कुल्लू पंहुचती है तो यंहा पर भगवान रघुनाथ की छड़ी माँ हिडिम्बा को लेने के लिए रामशिला नामक स्थान पर आती है और यंहा से माँ हिडिम्बा भगवान रघुनाथ की छड़ी संग व अपने हरयानों संग रघुनाथपुर में स्थित भगवान रघुनाथ के मन्दिर की और जाती है । ।ततप्शचात भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना करने के बाद माँ हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ पालकी संग ढालपुर मैदान आती है और अगले सात दिन तक अपने अस्थायी शिविर में विराजती है । माँ हिडिम्बा के बारे में अधिक जानकरी देते हुए माता के हरयान सुभाष ने बताया कि माँ हिडिम्बा जब कुल्लू पंहुचती है तो यंहा पर उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी आती है और फिर माता यंहा से कुल्लू दशहरा के लिए रवाना हो रहा है। सुभाष ने बताया कि माँ हिडिम्बा अगले एक सप्ताह के लिए कुल्लू स्थित अपने अस्थायी शिविर में विराजेंगी।

बाइट:-सुभाष, हरयान माँ हिडिम्बा ।

वीओ:- वंही भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबदार महेश्वर सिंह ने माँ हिडिम्बा की अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में रहने वाली भूमिका के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि कुल्लू में भगवान रघुनाथ का आगमन काफी लेट हुआ था और उससे पूर्व यंहा पर शिव और शक्ति की पूजा होती थी और जो मेला लगता था वह व्यापार के लिए लगता था । उन्होने कहा कि माँ हिडिम्बा को राजघराने की दादी कहा जाता है और जब भी माँ हिडिम्बा कुल्लू दशहरा में आती है तो उन्हें लेने के लिए भगवान रघुनाथ की छड़ी जाती है और फिर उसके बाद माँ हिडिम्बा रामशिला से छड़ी के साथ रघुनाथ आती हैं। उन्होने बताया कि जब माँ हिडिम्बा राजमहल पंहुचती है तो पुरा राजपरिवार एक दरवाजे के पिछे छिप जाता है और फिर माँ हिडिम्बा महल के अन्दर प्रवेश करती है और उसके बाद माँ हिडिम्बा जब पुकारती है तो तब उनका परिबार बाहर आता है और उसके पश्चात कुछ समय विश्राम करने के बाद माँ हिडिम्बा ढालपुर मैदान में होने वाली रथ यात्रा में शिरकत करने के लिए भगवान रघुनाथ की पालकी संग रघुनाथ मन्दिर से चल पड़ते हैं।

बाइट:- महेशवर सिंह ,मुख्य छड़ीबदार भगवान रघुनाथ जी

रिपोर्ट :- सचिन शर्मा , मनालीConclusion:बता दें कि कुल्लू में आज से अगले सात दिनों तक चलने वाले इस देव महा कुम्भ में हमें कई रंग देखने को मिलते हैं । एक तरफ जंहा पुरे भारत में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते जलायें जायेंगे वंही जिला कुल्लू में आज के सातवें दिन लकादहन किया जाता है और इसकी खासियत एक यह भी है कि यंहा पर दशहरे में रावण कुम्भकर्ण और मेघनाथ के पुलते नही जलाये जाते हैं ब्लकि भगवान रघुनाथ की शोभा यात्रा से दशहरे का आगाज होता है।
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