कुल्लू: केंद्र सरकार द्वारा बागवानी व कृषि कार्य में प्रयुक्त होने वाले करीब 27 कीटनाशकों को बंद करने का फैसला लिया है, ऐसे में बागवानो का कहना है कि पहले केंद्र सरकार इन कीटनाशकों का विकल्प जनता को दे, उसके बाद ही इन कीटनाशकों को बैन करने का फैसला लिया जाए.
जिला कुल्लू में भी हजारों किसानों व बागवानों की आर्थिकी का मुख्य स्त्रोत कृषि व बागवानी कार्य ही है. जिनमें इन सभी कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है. वहीं, बागवानों का मानना है कि अगर सरकार ने इन कीटनाशकों को बैन कर दिया तो उनके बगीचे बुरी तरह से तबाह हो जाएंगे.
बागवानों का कहना है कि वे पिछले कई सालों से इन कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं जिससे उनके बगीचों में बेहतर परिणाम आ रहे हैं. वहीं, इन कीटनाशकों का अभी दूसरा कोई विकल्प भी तैयार नहीं हुआ है. अगर एक सीजन में भी इन कीटनाशकों की स्प्रे ना की जाए तो कई तरह की बीमारियां उनके फलदार पेड़ों को घेर लेती हैं और बगीचा तबाह होने की कगार पर पहुंच जाता है.
अगर केंद्र सरकार को इन सभी दवाइयों को बैन करना है तो वह पहले इसका विकल्प तैयार करें, ताकि बागवान और किसानों को नुकसान न उठाना पड़े. कुल्लू फलोत्पादन मंडल के अध्यक्ष एवं बागवान प्रेम शर्मा का कहना है कि वह भी पिछले कई सालों से इन कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक इसके कोई दुष्प्रभाव नजर नहीं आए हैं.
अगर सरकार इन कीटनाशकों को बैन करना चाहती है तो इससे पहले इसका विकल्प भी तैयार करें ताकि प्रदेश के लाखों किसानों व बागवानों को नुकसान उठाना पड़े. वहीं, इन कीटनाशकों पर केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी तो 50 प्रतिशत दी जाती है, लेकिन दवाइयों का कोटा बहुत कम मात्रा में आता है, ऐसे में अधिकतर किसानों व बागवानों को अपने स्तर पर ही इन कीटनाशकों का इंतजाम करना पड़ता है.
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा प्राकृतिक खेती को दिए जा रहे बढ़ावे के सवाल पर कुल्लु के बागवान प्रेम शर्मा ने कहा कि सरकार इस दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं कर पा रही है. पहले सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी देने के लिए खुद खेतों की ओर अपने अधिकारियों को भेजे, उसके बाद ही इस बात पर निर्णय लिया जा सकता है कि प्राकृतिक खेती से प्रदेश के कितने किसानों को लाभ मिल सकता है.