हमीरपुर: भारत को आज आजाद (Indian Independence Day) हुए 75 वर्ष हो गए हैं और पूरा देश इस साल आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. 75 सालों (Achievements 75) के इस सफर में भारत ने कई बड़े मुकाम हालिस किए हैं. आजादी के इस अमृत महोत्सव का उत्साह देश के उन खिलाड़ियों के बगैर अधूरा (Achievements75) है जिन्होंने खेल के मैदानों में दुनियाभर के खिलाड़ियों को पस्त किया है. हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे पहाड़ी राज्य ने भी भारत को कई ऐसे खिलाड़ी दिए हैं, जो आज देश-दुनियां में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. हाल ही में हुए बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में हिमाचल के हमीरपुर जिले के विकास ठाकुर ने भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और वेट लिफ्टिंग में रजत पदक जीता.
फावड़े से शुरू हुआ था सफर: विकास ठाकुर की वेटलिफ्टर (Weightlifter Vikas Thakur) बनने की कहानी काफी रोचक है. दो साल की उम्र में फावड़े से रेत उठाने से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स में सैंकड़ों किलोग्राम वजन उठाकर कर देश के लिए लगातार तीसरा पदक लाने वाले वेटलिफटर विकास ठाकुर का सफर अपने आप में प्रेरक रहा है. दो साल की उम्र में विकास की इस प्रतिभा को घर के नजदीक स्थित सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने पहचान लिया था. यह नब्बे के दशक की बात जब विकास ठाकुर की उम्र महज दो साल की थी. विकास के पिता बृज ठाकुर ने घर का निर्माण कार्य लगाया हुआ था. उनके घर के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में एक डॉक्टर तैनात थे.
डॉक्टर ने विकास को रेत के ढेर के पास खेलते हुए देखा. विकास एक फावड़े को पकड़ कर रेत को इकट्ठा कर रहे थे. दो साल के बच्चे को इतना वजन उठाता देख कर डाक्टर हैरत में पकड़ गए. डाक्टर रवि ने तुरंत विकास के पिता बृज ठाकुर से कहा कि ये बच्चा साधारण नहीं हैं. जिस उम्र में बच्चे सही ढ़ग से चल नहीं पाते विकास एक वजनी फावड़ा उठाकर रेत इकट्ठा कर रहा था. पिता बृज ठाकुर ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत में इस प्रेरणादायक घटना का जिक्र भी किया. बृज ठाकुर बताते हैं कि डॉक्टर रवि ने दो साल की उम्र के विकास की त्वचा की जांचा की थी और ये बताया था कि विकास की त्वचा आम बच्चों से कहीं अधिक मोटी है.
दो साल की उम्र में विकास ने पालने में पांव दिखाने वाली कहावत को सार्थक करने की ओर कदम बढ़ा दिए थे. यही वजह रही कि लुधियाना में जिस सरकारी स्पोटर्स क्लब में 14 साल की उम्र में बच्चों को खेल गतिविधियों को निखारने का मौका मिलता था, वहां पर विकास सात साल की उम्र में वजन उठाने लग पड़े थे. नौ साल की उम्र में लुधियान में प्रैक्टिस करते हुए विकास स्कूली खेलों के बूते स्टेट चैंपियन बन गए थे. वह लगातार 20 वर्षों से वेटलिफटिंग कर रहे हैं.
कॉमनवेल्थ गेम्स में लगातार तीसरी बार जीता पदक: हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर के रहने वाले वेटलिफ्टर विकास ठाकुर ने इस दफा कॉमनवेल्थ गेम्स में 96 किलोग्राम भार वर्ग में सिल्वर मेडल जीत कर इतिहास (Vikas Thakur Won Silver in CWG) रचा है. विकास ने लगातार तीसरी बार कॉमनवेल्थ गेम्स में मेडल अपने नाम किया है. वह इससे पहले 2014 में 85 किलो वर्ग में सिल्वर और 2018 में 94 किलो वर्ग में कांस्य पदक जीत चुके हैं. विकास ठाकुर भारतीय वायु सेना में सेवारत हैं. कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games 2022) में देश के लिए हिमाचल के किसी खिलाड़ी का यह पहला मेडल है. वेटलिफ्टर विकास ठाकुर ने पुरुषों के 96 किलोग्राम भारव वर्ग में सिल्वर मेडल जीता है.
विकास के नाम कई रिकॉर्ड: विकास ठाकुर ने एलकेजी के बाद की पढ़ाई लुधियान से ही की है. स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में चैंपियन बनने के बाद नेशनल स्तर पर उनका जलवा नौ वर्षों से कायम है. वह नौ बार नेशनल चैंपियन बन चुके हैं. पिछले साल ही राष्ट्रीय भारोत्तोलन प्रतियोगिता में 102 किलोग्राम वर्ग के स्नैच वर्ग में 151 किग्रा भार उठाकर उन्होंने यह कीर्तिमान स्थापित करते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया था.
इससे पूर्व भारतीय रेलवे के प्रदीप सिंह ने स्नैच में 150 किलोग्राम भार उठाकर नेशनल रिकॉर्ड बनाया था. इस नेशनल स्पर्धा में 102 किलोग्राम वर्ग में कुल 331 किलोग्राम भार उठाकर विकास ठाकुर नेशनल चैंपियन बने थे. विकास ठाकुर हमीरपुर के टौणीदेवी के रहने वाले हैं. विकास ठाकुर आठवीं बार नेशनल चैंपियन, साउथ एशियन चैंपियनए राष्ट्रमंडल खेल चैंपियन और 96 किलोग्राम वर्ग में स्नैच 159 और क्लीन एंड जर्क में 200 किग्रा भार उठाने का रिकॉर्ड बना चुके हैं.
पिता रेलवे और विकास वायुसेना में कार्यरत: विकास के पिता बृजलाल ठाकुर रेलवे में नौकरी करते हैं. माता आशा ठाकुर गृहिणी है. उन्होंने कहा कि परिवार लंबे समय से लुधियाना रह रहा है. हालांकि बीच-बीच में विकास ठाकुर परिवार सहित अपने टौणीदेवी आते रहे है. विकास ने पढ़ाई लुधियाना से ही की है. विकास ठाकुर 2012 से वायु सेना में सेवारत है और वर्तमान में वह जूनियर वारंट अफसर के पद पर तैनात हैं. हमीरपुर में एलकेजी की पढ़ाई के बाद पिता बृज ठाकुर लुधियाना में नौकरी के चलते बेटे को वहीं ले गए थे. वह कहते हैं विकास बचपन से शरारती था. ऐसे में उसे व्यस्त रखना पड़ता था. लुधियाना में स्पोटर्स क्लब में दाखिले के बाद विकास ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
डॉक्टर विकास को बुलाते है घटोत्कच: पिता बृज ठाकुर ने बताया कि उन्हे बेटे की उपलब्धि पर खुशी होती है. वह जल्द ही बेटे और परिवार के साथ हमीरपुर (Vikas Thakur of Hamirpur Himachal) आकर कुलदेवी के समक्ष शीश नवाएंगे. उन्होंने कहा कि दो साल की उम्र में बच्चे की प्रतिभा के पारखी डॉक्टर रवि प्यार से विकास को घटोत्कच बुलाते है. उन्होंने कहा कि आज भी डॉक्टर जब मिलते हैं तो विकास को इसी नाम से ही बुलाते हैं. पिता बृज ठाकुर की माने तो बचपन से विकास उनके बेहद करीब रहा है. विकास अपने पिता को ही अपना पहला कोच मानते हैं.
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