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देवभूमि हिमाचल के चंदन से महकेगा भारत, हमीरपुर में चंदन की नर्सरी तैयार

डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी (Dr YS Parmar Research Center Neri) के वैज्ञानिकों ने खास किस्म के चंदन की नर्सरी तैयार की है. अनुसंधान केंद्र में शुरुआती दिनों में सफलतम तरीके से इन पौधों को तैयार किया जा रहा है और तैयार होने के बाद किसानों को आगे सप्लाई किया जा रहा है. हिमाचल के साथ ही देश भर (sandalwood plantation in himachal) में लगभग सभी राज्यों में जंगली जानवरों की वजह से किसान खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे में चंदन एक बेहतर विकल्प बन सकता है.

sandalwood plantation in himachal
हमीरपुर में चंदन की नर्सरी
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Published : Dec 3, 2021, 8:31 PM IST

Updated : Jan 4, 2022, 2:11 PM IST

हमीरपुर: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के चंदन से भारत देश महकेगा. मैसूर के चंदन की मांग तो बहुत अधिक होती है, लेकिन अब हिमाचल प्रदेश भी खुशबूदार चंदन के लिए पहचाना जाएगा. हिमाचल के हमीरपुर स्थित डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के वैज्ञानिकों ने खास किस्म के चंदन की नर्सरी (sandalwood farming in himachal) तैयार की है. हजारों पौधों की नर्सरी तैयार हो चुकी है. अनुसंधान केंद्र के पास देश भर से पौधों की डिमांड आ रही है.

वैसे तो हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के शक्तिपीठ ज्वालामुखी में भी सैकड़ों चंदन के पौधे हैं लेकिन हमीरपुर में नर्सरी विकसित होने के बाद अब प्रदेश के अन्य भागों में भी इसके पौधे लगाए जा सकेंगे. नेरी स्थित अनुसंधान केंद्र में कुछ वर्ष पहले कर्नाटक से लाए चंदन के पौधों पर रिसर्च शुरु हुई थी. डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने अब उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी तैयार करने में सफलता हासिल की है. अभी भी यहां पर चंदन के पौधों पर लगातार शोध किया जा रहा है. चंदन की पैदावार से न केवल हिमाचल की पहचान बनेगी बल्कि यहां आर्थिकी भी मजबूत होगी.

डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के डीन विशेषज्ञ डॉक्टर कमल शर्मा का कहना है कि 25 वर्ष में चंदन का पौधा तैयार होता है, यह अवधि लंबी है. अनुसंधान केंद्र में यह प्रयास और शोध किया जा रहा है कि चंदन के ऐसे पौधें और प्रजाति विकसित किए जांए जोकि कम अवधि में तैयार हो. आम तौर पर 7 सालों में चंदन के पेड़ के लकड़ी खुशबू देने लगती है और 25 वर्ष तक यह इस्तेमाल करने योग्य होती है. 7 से 25 वर्ष तक यह चंदन अलग-अलग कीमतों पर बिकता है.

अनुसंधान केंद्र में शुरुआती दिनों में सफलतम तरीके से इन पौधों को तैयार किया जा रहा है और तैयार होने के बाद किसानों को आगे सप्लाई किया जा रहा है. बाहरी राज्यों से भी लगातार अनुसंधान केंद्र को डिमांड मिल रही है. उल्लेखनीय है कि पूजा-पाठ के अलावा चंदन का औषधीय प्रयोग भी होता है. खुशबूदार चंदन कई हजार रुपए प्रति किलो बिकता है. हमीरपुर में डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के समीप खग्गल गांव में चंदन की नर्सरी (Sandalwood Nursery in Khagal) भी तैयार की गई है. यह पौधे बीजों के जरिए तैयार किए जा रहे हैं. हालांकि, छोटे पौधों का संरक्षण काफी कठिन है.

नेरी के विशेषज्ञों के मुताबिक चंदन का पेड़ 7 से लेकर 25 वर्ष के बाद अलग-अलग कीमत पर बिकता है. एक किलो चंदन की कीमत बाजार में चार से लेकर 15 हजार रुपये तक है. धार्मिक प्रयोग के अलावा दवा उद्योग में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. चंदन की खुशबू हर किसी को आकर्षित करती है मगर इसे उगाना सबके बस की बात नहीं है. डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी में तैयार किए जा रही चंदन की प्रजाति सेंटालम एलबम (Santalum album species of sandalwood) है. यह सदाबहार वृक्ष है जो मूल्यवान सुगंधित लकड़ी के लिए जाना जाता है. यह समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है. चंदन 12 से 13 मीटर ऊंचा होता है और इसका अधिकतम घेरा 2.4 मीटर तक होता है.

हिमाचल प्रदेश में चंदन के पेड़ (sandalwood forest in himachal) कांगड़ा, बिलासपुर, हमीरपुर व सिरमौर जिलों में पाए जाते हैं. कांगड़ा जिले की ज्वालामुखी घाटी में चंदन 30 से 35 हेक्टेयर व बिलासपुर जिले के चंगर सेक्टर में 10-15 हेक्टेयर में है. सिरमौर की पांवटा घाटी में भी चंदन के पेड़ हैं. चंदन का पेड़ शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में उगने की क्षमता रखता है.

चंदन एक ऐसा पौधा है जिसे शुरुआती दिनों में दूसरे पौधों की मदद से तैयार किया जाता है. चंदन का पौधा 35 से 40 फीट ऊंचा होता है. एक एकड़ भूमि पर 300 पौधे तैयार किए जा सकते हैं. चंदन के पेड़ में करीब 2 घन फीट लकड़ी तैयार होती है जिसका वजन 15 से 20 किलोग्राम होता है. यह 600 से 1000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में तैयार हो जाता है. एक एकड़ जमीन से 15 साल में 15 किलोग्राम प्रति पेड़ की दर से (300 पौधे से) करीब ढाई करोड़ कमाए जा सकते हैं.

हिमाचल के साथ ही देश भर में लगभग सभी राज्यों में जंगली जानवरों की वजह से किसान खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे में चंदन एक बेहतर विकल्प बन सकता है. हिमाचल प्रदेश में अधिकतर जमीन पथरीली है या फिर उसमें सिंचाई का कोई साधन नहीं है. जंगली जानवर भी फसलों को तबाह कर रहे हैं. ऐसे में चंदन की खेती (sandalwood plantation in himachal) आमदनी का बेहतर स्रोत है. चंदन की खेती में जंगली जानवरों की उजाड़ का भी कोई डर नहीं है.

ये भी पढ़ें :शिमला जल प्रबंधन निगम का दावा, 90 फीसदी सही बिल जनरेट कर रही कंपनी

हमीरपुर: देवभूमि हिमाचल प्रदेश के चंदन से भारत देश महकेगा. मैसूर के चंदन की मांग तो बहुत अधिक होती है, लेकिन अब हिमाचल प्रदेश भी खुशबूदार चंदन के लिए पहचाना जाएगा. हिमाचल के हमीरपुर स्थित डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के वैज्ञानिकों ने खास किस्म के चंदन की नर्सरी (sandalwood farming in himachal) तैयार की है. हजारों पौधों की नर्सरी तैयार हो चुकी है. अनुसंधान केंद्र के पास देश भर से पौधों की डिमांड आ रही है.

वैसे तो हिमाचल के सबसे बड़े जिला कांगड़ा के शक्तिपीठ ज्वालामुखी में भी सैकड़ों चंदन के पौधे हैं लेकिन हमीरपुर में नर्सरी विकसित होने के बाद अब प्रदेश के अन्य भागों में भी इसके पौधे लगाए जा सकेंगे. नेरी स्थित अनुसंधान केंद्र में कुछ वर्ष पहले कर्नाटक से लाए चंदन के पौधों पर रिसर्च शुरु हुई थी. डॉ. वाईएस परमार उद्यानिकी एवं वानिकी महाविद्यालय नेरी के विशेषज्ञों ने अब उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी तैयार करने में सफलता हासिल की है. अभी भी यहां पर चंदन के पौधों पर लगातार शोध किया जा रहा है. चंदन की पैदावार से न केवल हिमाचल की पहचान बनेगी बल्कि यहां आर्थिकी भी मजबूत होगी.

डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के डीन विशेषज्ञ डॉक्टर कमल शर्मा का कहना है कि 25 वर्ष में चंदन का पौधा तैयार होता है, यह अवधि लंबी है. अनुसंधान केंद्र में यह प्रयास और शोध किया जा रहा है कि चंदन के ऐसे पौधें और प्रजाति विकसित किए जांए जोकि कम अवधि में तैयार हो. आम तौर पर 7 सालों में चंदन के पेड़ के लकड़ी खुशबू देने लगती है और 25 वर्ष तक यह इस्तेमाल करने योग्य होती है. 7 से 25 वर्ष तक यह चंदन अलग-अलग कीमतों पर बिकता है.

अनुसंधान केंद्र में शुरुआती दिनों में सफलतम तरीके से इन पौधों को तैयार किया जा रहा है और तैयार होने के बाद किसानों को आगे सप्लाई किया जा रहा है. बाहरी राज्यों से भी लगातार अनुसंधान केंद्र को डिमांड मिल रही है. उल्लेखनीय है कि पूजा-पाठ के अलावा चंदन का औषधीय प्रयोग भी होता है. खुशबूदार चंदन कई हजार रुपए प्रति किलो बिकता है. हमीरपुर में डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी के समीप खग्गल गांव में चंदन की नर्सरी (Sandalwood Nursery in Khagal) भी तैयार की गई है. यह पौधे बीजों के जरिए तैयार किए जा रहे हैं. हालांकि, छोटे पौधों का संरक्षण काफी कठिन है.

नेरी के विशेषज्ञों के मुताबिक चंदन का पेड़ 7 से लेकर 25 वर्ष के बाद अलग-अलग कीमत पर बिकता है. एक किलो चंदन की कीमत बाजार में चार से लेकर 15 हजार रुपये तक है. धार्मिक प्रयोग के अलावा दवा उद्योग में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. चंदन की खुशबू हर किसी को आकर्षित करती है मगर इसे उगाना सबके बस की बात नहीं है. डॉ. वाईएस परमार अनुसंधान केंद्र नेरी में तैयार किए जा रही चंदन की प्रजाति सेंटालम एलबम (Santalum album species of sandalwood) है. यह सदाबहार वृक्ष है जो मूल्यवान सुगंधित लकड़ी के लिए जाना जाता है. यह समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है. चंदन 12 से 13 मीटर ऊंचा होता है और इसका अधिकतम घेरा 2.4 मीटर तक होता है.

हिमाचल प्रदेश में चंदन के पेड़ (sandalwood forest in himachal) कांगड़ा, बिलासपुर, हमीरपुर व सिरमौर जिलों में पाए जाते हैं. कांगड़ा जिले की ज्वालामुखी घाटी में चंदन 30 से 35 हेक्टेयर व बिलासपुर जिले के चंगर सेक्टर में 10-15 हेक्टेयर में है. सिरमौर की पांवटा घाटी में भी चंदन के पेड़ हैं. चंदन का पेड़ शून्य से 45 डिग्री सेल्सियस तापमान में उगने की क्षमता रखता है.

चंदन एक ऐसा पौधा है जिसे शुरुआती दिनों में दूसरे पौधों की मदद से तैयार किया जाता है. चंदन का पौधा 35 से 40 फीट ऊंचा होता है. एक एकड़ भूमि पर 300 पौधे तैयार किए जा सकते हैं. चंदन के पेड़ में करीब 2 घन फीट लकड़ी तैयार होती है जिसका वजन 15 से 20 किलोग्राम होता है. यह 600 से 1000 मीटर की ऊंचाई वाले इलाके में तैयार हो जाता है. एक एकड़ जमीन से 15 साल में 15 किलोग्राम प्रति पेड़ की दर से (300 पौधे से) करीब ढाई करोड़ कमाए जा सकते हैं.

हिमाचल के साथ ही देश भर में लगभग सभी राज्यों में जंगली जानवरों की वजह से किसान खेती छोड़ रहे हैं. ऐसे में चंदन एक बेहतर विकल्प बन सकता है. हिमाचल प्रदेश में अधिकतर जमीन पथरीली है या फिर उसमें सिंचाई का कोई साधन नहीं है. जंगली जानवर भी फसलों को तबाह कर रहे हैं. ऐसे में चंदन की खेती (sandalwood plantation in himachal) आमदनी का बेहतर स्रोत है. चंदन की खेती में जंगली जानवरों की उजाड़ का भी कोई डर नहीं है.

ये भी पढ़ें :शिमला जल प्रबंधन निगम का दावा, 90 फीसदी सही बिल जनरेट कर रही कंपनी

Last Updated : Jan 4, 2022, 2:11 PM IST
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