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राजेंद्र राणा का सरकार पर निशाना, कहा- निजी शिक्षा को बनाया गया भ्रष्टाचार का कारोबार

विधायक राजेंद्र राणा ने प्रेस बयान जारी करते हुए आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार निजी शिक्षा को भ्रष्टाचार का कारोबार बना चुकी है. राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब सरकार का निजी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण ही नहीं है तो सरकार ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की वकालत किस मुंह से कर रही है.

MLA Rajender Rana Targeting BJP government regarding Corruption to private education
विधायक राजेंद्र राणा
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Published : Jan 17, 2021, 7:07 PM IST

सुजानपुर: बीजेपी सरकार के दौरान सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है. ये बात विधायक राजेंद्र राणा ने जारी प्रेस बयान में कही है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार निजी शिक्षा को भ्रष्टाचार का कारोबार बना चुकी है.

बीजेपी सरकार के दौरान सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है. उन्होंने कहा कि प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में कार्यरत सैकड़ों कॉलेजों के प्रिंसिपलों की नियुक्ति नियमों को ताक पर रखकर की गई है.

प्रिंसिपल की शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं

उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपल की ही अपनी शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं है, तो ऐसे में निजी शिक्षा के नाम पर प्रदेश में अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने वाले इन कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर क्या होगा यह प्रिंसिपलों की योग्यता से ही तय हो जाता है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपलों का सर्विस प्रोफाइल ही शक और संदेह के घेरे में है. अनेक प्रिंसिपल तो अपनी शैक्षणिक योग्यता ही पूरी नहीं करते हैं.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन को भेजी गई रपट में कई प्रिंसिपलों की नियुक्ति को लेकर दिया गया ब्यौरा ही आधा-अधूरा है.100 से ज्यादा निजी कॉलेजों ने अभी तक रेगुलेटरी कमीशन के पास अपना रिकॉर्ड भेजा है. जिनमें से 75 कॉलेजों के रिकॉर्ड की जांच हो चुकी है. इन 75 कॉलेजों में आधे से ज्यादा प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं.

15 सालों तक पढ़ाने का अनुभव जरूरी

निजी डिग्री, टेक्निकल, पॉलिटेक्निकल, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, फॉर्मेसी, नर्सिंग और बीएड कॉलेजों में अधिकांश प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं. यूजीसी नियमों के मुताबिक प्रिंसिपल नियुक्त होने के लिए पीएचडी की डिग्री के साथ 15 सालों तक पढ़ाने का अनुभव जरूरी है.

मास्टर डिग्री के साथ 55 फीसदी से ज्यादा अंक जरूरी

मास्टर डिग्री में कम से कम 55 फीसदी से ज्यादा अंक होने जरूरी हैं. इसी के साथ 70 वर्ष से अधिक आयु की सीमा भी लगी हुई है, लेकिन सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार के कारण अधिकांश कॉलेजों में प्रिंसिपलों की नियुक्ति में भारी धांधलियां पाई गई हैं. उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं अनेक कॉलेजों ने रेगुलेटरी कमीशन को अपना प्रिंसिपल की नियुक्ति का रिकॉर्ड भेजा ही नहीं है. जोकि सत्ता संरक्षण के कारण बेखौफ बने हुए हैं.

भ्रष्टाचार का खुलासा

अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलने वाले यह निजी कॉलेज शिक्षा के नाम पर अब लूट का अड्डा बन कर रह गए हैं, जबकि प्रदेश में चल रहे हजारों निजी स्कूलों की भी यही स्थिति है. राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब सरकार का निजी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण ही नहीं है तो सरकार ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की वकालत किस मुंह से कर रही है.

लाखों फर्जी डिग्रियां बेचने के मामले में पहले ही प्रदेश देश और दुनिया में काफी बदनाम हो चुका है. ऐसे में अब निजी कॉलेजों में भी नियमों को ताक पर रखकर नियुक्त किए गए प्रिंसिपलों का मामला भी सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहा है.

सुजानपुर: बीजेपी सरकार के दौरान सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है. ये बात विधायक राजेंद्र राणा ने जारी प्रेस बयान में कही है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार निजी शिक्षा को भ्रष्टाचार का कारोबार बना चुकी है.

बीजेपी सरकार के दौरान सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है. उन्होंने कहा कि प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में कार्यरत सैकड़ों कॉलेजों के प्रिंसिपलों की नियुक्ति नियमों को ताक पर रखकर की गई है.

प्रिंसिपल की शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं

उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपल की ही अपनी शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं है, तो ऐसे में निजी शिक्षा के नाम पर प्रदेश में अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने वाले इन कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर क्या होगा यह प्रिंसिपलों की योग्यता से ही तय हो जाता है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपलों का सर्विस प्रोफाइल ही शक और संदेह के घेरे में है. अनेक प्रिंसिपल तो अपनी शैक्षणिक योग्यता ही पूरी नहीं करते हैं.

इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन को भेजी गई रपट में कई प्रिंसिपलों की नियुक्ति को लेकर दिया गया ब्यौरा ही आधा-अधूरा है.100 से ज्यादा निजी कॉलेजों ने अभी तक रेगुलेटरी कमीशन के पास अपना रिकॉर्ड भेजा है. जिनमें से 75 कॉलेजों के रिकॉर्ड की जांच हो चुकी है. इन 75 कॉलेजों में आधे से ज्यादा प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं.

15 सालों तक पढ़ाने का अनुभव जरूरी

निजी डिग्री, टेक्निकल, पॉलिटेक्निकल, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, फॉर्मेसी, नर्सिंग और बीएड कॉलेजों में अधिकांश प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं. यूजीसी नियमों के मुताबिक प्रिंसिपल नियुक्त होने के लिए पीएचडी की डिग्री के साथ 15 सालों तक पढ़ाने का अनुभव जरूरी है.

मास्टर डिग्री के साथ 55 फीसदी से ज्यादा अंक जरूरी

मास्टर डिग्री में कम से कम 55 फीसदी से ज्यादा अंक होने जरूरी हैं. इसी के साथ 70 वर्ष से अधिक आयु की सीमा भी लगी हुई है, लेकिन सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार के कारण अधिकांश कॉलेजों में प्रिंसिपलों की नियुक्ति में भारी धांधलियां पाई गई हैं. उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं अनेक कॉलेजों ने रेगुलेटरी कमीशन को अपना प्रिंसिपल की नियुक्ति का रिकॉर्ड भेजा ही नहीं है. जोकि सत्ता संरक्षण के कारण बेखौफ बने हुए हैं.

भ्रष्टाचार का खुलासा

अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलने वाले यह निजी कॉलेज शिक्षा के नाम पर अब लूट का अड्डा बन कर रह गए हैं, जबकि प्रदेश में चल रहे हजारों निजी स्कूलों की भी यही स्थिति है. राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब सरकार का निजी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण ही नहीं है तो सरकार ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की वकालत किस मुंह से कर रही है.

लाखों फर्जी डिग्रियां बेचने के मामले में पहले ही प्रदेश देश और दुनिया में काफी बदनाम हो चुका है. ऐसे में अब निजी कॉलेजों में भी नियमों को ताक पर रखकर नियुक्त किए गए प्रिंसिपलों का मामला भी सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहा है.

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