हमीरपुर: आउटसोर्स भर्ती को जायज और नाजायज साबित करना वर्तमान परिदृश्य में सही मायनों में मुश्किल हो गया है. कर्मचारियों के लिए यह शब्द शोषण का पर्याय है और स्वायत्त संस्थाओं, विभागीय अधिकारियों और नेताओं के लिए मन मुताबिक भाई भतीजावाद कर भर्ती करने का. हमीरपुर जिले में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान हमीरपुर में आउट सोर्स शब्द पर खूब हंगामा हुआ और अब इस शब्द के कारण ही हिमाचल प्रदेश का तकनीकी विश्वविद्यालय प्रबंधन सवालों के घेरे में है.
हां यह अलग बात है कि इस शब्द और इस शब्द के बैनर तले हुई भर्तियों के बाद जो सवाल उठे और जांच हुई उससे एनआईटी हमीरपुर के निदेशक तो बर्खास्त हो गए, लेकिन प्रदेश सरकार के तकनीकी विश्वविद्यालय में वाइस चांसलर का पद भी लंबे समय से खाली ही चल रहा है. यहां पर बिना मुखिया के ही आउट सोर्स भर्तियां हो रही हैं और अब इन भर्तियों पर बवाल मचना भी शुरू हो गया है.
संक्षेप में कहें तो आउटसोर्स भर्ती प्रक्रिया (outsource recruitment process in hp) केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार के संस्थानों और विभागों में भर्तियों को नाजायज तरीके से जायज ठहराने का एक जरिया मात्र बन गया है. मीडिया में सुर्खियां मिलने के बाद हिमाचल तकनीकी यूनिवर्सिटी (HPTU outsourced recruitment) में आउटसोर्स आधार पर की गई नियुक्तियों के मामले में शिक्षा मंत्री रामलाल मारकंडा जांच के आदेश जारी कर चुके हैं. जांच का जिम्मा तकनीकी शिक्षा निदेशक विवेक चंदेल को सौंपा गया है. एनआईटी हमीरपुर में तो भर्ती में अनियमितताएं होने पर बड़ी कार्रवाई हुई थी, लेकिन क्या तकनीकी विश्वविद्यालय में भी प्रदेश सरकार की तरफ से इस तरह की कोई कार्रवाई की जाएगी जो अन्य विभागों और सरकारी उपक्रमों के लिए मिसाल बने.
यह है पूरा मामला, अधिकारियों के बेटे सूची में कर लिए शामिल: हाल ही में आउटसोर्स आधार पर सात अलग-अलग तरह की नियुक्तियां विश्वविद्यालय में की गई हैं. हालांकि अभी तक नियुक्त किए गए किसी भी सदस्य की जॉइनिंग विश्वविद्यालय प्रशासन ने नहीं ली है. इन नियुक्तियों के मामले में भाई भतीजावाद के आरोप लगे हैं तथा तकनीकी विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के बेटे की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठे हैं. कारण साफ है कि यह नियुक्तियां आउटसोर्स स्तर पर हुई हैं और महत्वपूर्ण पदों को भरने के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई है वही यूनिवर्सिटी के कामकाज पर सवाल उठाने लगी है.
ऐसी नियुक्तियां इसीलिए सवालों के घेरे में हैं. नेशनल इंस्टीट्यूट आफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इनफार्मेशन यानी नायलेट के द्वारा तकनीकी विश्वविद्यालय प्रशासन को नियुक्ति पत्र भेजा गया है, उसमें कुछ ऐसे भी उम्मीदवार हैं, जो पहले भी इस यूनिवर्सिटी में कार्यरत रहे हैं. नायलेट ने जिन 7 पदों के लिए ज्वाइनिंग का पत्र भेजा है, उनमें इंचार्ज डाटा सेंटर, इंचार्ज डाटा ऑपरेटर सेंटर और इंचार्ज वेब स्टूडियो के अलावा टेक्निकल असिस्टेंट डाटा ऑपरेटर, टेक्निकल असिस्टेंट आरपी सेंटर, टेक्निकल असिस्टेंट वेब स्टूडियो और कैमरामैन के पदों को भरने के लिए एक सांझा अप्वाइंटमेंट लेटर जारी किया है.
क्या एनआईटी हमीरपुर में हुई कार्रवाई को आधार मानकर कार्रवाई करेगी सरकार?: एनआईटी हमीरपुर में आउट सोर्स आधार पर हुई भर्तियों में हुई धांधली पर सवाल उठने के बाद इसमें विस्तृत जांच की गई. यह जांच नतीजे लेकर आई और एनआईटी हमीरपुर के तत्कालीन निदेशक डॉ. विनोद यादव को बर्खास्त किया गया. बाकायदा कई लोगों की नौकरियां इस जांच के दौरान घेरे में आई, लेकिन अब सवाल यह है कि एनआईटी हमीरपुर में हुई इससे तमाम कार्रवाई को आधार मानकर क्या प्रदेश सरकार की जांच को गंभीरता के साथ करेगी या फिर तकनीकी शिक्षा मंत्री के आदेश महज खानापूर्ति ही साबित होंगे.
तकनीकी विश्वविद्यालय महज एक उदाहरण, हर विभाग, उपक्रम में आउट सोर्स से हो रही बैक डोर एंट्री: हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय में कथित तौर पररेवड़ियों की तरह आउट सोर्स आधार पर नौकरी बांटने के तो आरोप लगे हैं. यहां पर हुई भर्ती की कोशिशें तो सवालों में आ गई है, लेकिन प्रदेश सरकार के अन्य कई विभागों और सरकारी उपक्रमों में आउट सोर्स के जरिए बैक डोर एंट्री का सिलसिला लगातार जारी है.
क्या प्रदेश सरकार इस बैक डोर एंट्री पर लगाम लगा पाएगी. यहां पर बैक डोर एंट्री पर लगाम लगने पर संशय इसलिए भी है, क्योंकि नाजायज भर्तियों को जायज ठहरा कर नेताओं के साथ अधिकारी भी जवाबदेही से टल रहे हैं. तकनीकी विश्वविद्यालय के अधिकारियों की मानें तो आउटसोर्स आधार पर की गई नियुक्तियों में कोई भी अनियमितता नहीं बरती गई है. अधिकारियों का यह विश्वास करना ही पर है जिसे प्रदेश सरकार का लगभग हर विभाग अपना रहा है. ऐसे में क्या सरकार अपनी ही आउटसोर्स भर्ती व्यवस्था पर जांच करेगी यह बड़ा सवाल है.
निजी विश्वविद्यालय के मुकाबले अधिक वसूली जा रही फीस, एबीवीपी संघर्षरत: फीस बढ़ोतरी और अन्य कई कमियों को लेकर हमेशा से ही तकनीकी विश्वविद्यालय हमीरपुर सुर्खियों में रहा है. यह विश्वविद्यालय है तो सरकारी नियंत्रण में, लेकिन फिर से यहां पर निजी विश्वविद्यालय के मुकाबले विद्यार्थियों से अधिक वसूली जा रही है. यहां पर छात्र संगठन भी लंबे समय से फीस बढ़ोतरी और शैक्षणिक तथा गैर शैक्षणिक पदों पर स्थाई भर्ती के लिए संघर्षरत है.
ऐसे में अब भर्ती में धांधली और अनियमितताओं के सवाल से विश्वविद्यालय प्रबंधन में आ गया है. हिमाचल प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय में लंबे समय से संघर्षरत एबीवीपी के कैंपस अध्यक्ष महेश कुमार कहते हैं कि 12 वर्ष विश्वविद्यालय को स्थापित हुए भी चुके हैं, लेकिन न तो स्थाई वाइस चांसलर यहां पर नियुक्त है और नहीं स्थाई तौर पर शिक्षकों की तैनाती हुई है. हालात ऐसे हैं कि डीन से लेकर चपरासी तक कोई भी स्थाई नहीं है.
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