हमीरपुर: 10 से 15 ग्राम की वजनी पारंपरिक हरड़ के बारे में तो आपने सुना होगा. इसके गुणों के बारे में भी आप जानते होंगे. उत्तरी भारत में जंगलों में औषधीय गुणों की खान माने जाने वाला हरड़ का पौधा बहुतायत में पाया जाता है, लेकिन इस की उन्नत किस्म को हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री कॉलेज नेरी हमीरपुर के विशेषज्ञों ने तैयार किया है.
इसकी 6 उन्नत किस्म तैयार की गई हैं. जिनमें सबका वजन 100 के लगभग और इससे अधिक ही है. इतना ही नहीं ग्राफ्टिंग तकनीक के माध्यम से तैयार की गई किस्स से दो साल उम्र में गमले में ही फसल भी ली जा रही है महज 2 साल के भीतर ही उन्नत किस्म के यह हरड़ के पौधे फसल भी दे रहे हैं, जबकि पारंपरिक का हरड़ के पेड़ 10 से 12 साल के बाद ही फल देते हैं और उनका वजन महज 10 से 15 ग्राम होता है.
कम जगह और किचन गार्डन में भी ली जा सकती है अच्छी फसल: इन छह उन्नत किस्म के हरड़ के पौधों की प्रजातियों के खास बात यह भी है कि किचन गार्डन में जहां जगह कम रहती है वहां पर भी इनकी फसल ली जा सकती है. पौधे गमले में ही फसल देना शुरू कर देते हैं. जब पौधा बड़ा होता है तो क्विंटल के हिसाब से इसमें फल तैयार होता है, लेकिन कुछ सालों तक गमले में ही इसकी फसल आराम से ली जा सकती है. मसलन जहां पर यदि किसी के पास जमीन की कमी हो या फिर जमीन ना हो तो वह भी अब अपने आंगन या बालकनी में हरड़ का पौधा लगाकर इसके औषधीय गुणों का फायदा उठा सकते हैं.
बाजार में बेहतर कीमत भी और जंगली जानवरों का भी कोई खतरा नहीं: उन्नत किस्म की इस प्रजाति के फलों को बाजार में भी बेहतर कीमत मिल रही है जहां पारंपरिक हरड़ की कीमत 10 से ₹12 प्रति किलो बाजार में आमतौर पर मिलती है वही इस उन्नत किस्म की बाजार में ₹70 से भी अधिक कीमत मिल सकती है, जबकि सुखाई जाने के बाद इसकी कीमत ₹200 से 300 प्रति किलो भी किसानों व बागवानों को मिल सकती है. जंगली और आवारा जानवरों के उजाड़ से तंग होकर जिन किसानों ने खेती छोड़ दी है उनके लिए भी यह बेहद ही बेहतर विकल्प हो सकता है क्योंकि ना तो बंदर और ना ही कोई अन्य जंगली जानवर इसकी उजाड़ करते हैं.
गल्फ देशों में बहुत ज्यादा है हरड़ की मांग: भारत के कई राज्यों में हरड़ की मांग के साथ ही विदेशों में भी विशेष तौर पर गल्फ देशों में हरड़ की बहुत अधिक मांग है. ऐसे में बागवानों के लिए यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है. उत्तरी भारत में इसकी खेती की जा सकती है तो वहीं, देश के अन्य राज्यों में भी इसको उगाया जा सकता है, क्योंकि मौसम की दृष्टि से इसके पौधे कहीं भी उगाए जा सकते हैं. उन्नत किस्म के प्रजातियों से पैदावार लेकर किसान और बागवान खुद को आर्थिक तौर पर भी संपन्न बना सकते हैं.
जल्द ही बाजार में मिलेगी हरड़ की कैंडी: हॉर्टिकल्चर एंड फॉरेस्ट्री कॉलेज नेरी हमीरपुर के डीन डॉ. कमल शर्मा जानकारी देते हुए बताया कि हरड़ औषधीय गुणों की खान है. त्रिफला में यह महत्वपूर्ण घटक है, जबकि इसके अब कहीं और उत्पाद भी तैयार किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि इसका मुरब्बा भी तैयार किया जा सकता है जो के कच्चे फल का तैयार होता है, जबकि सुखाने के बाद इसे त्रिफला में इस्तेमाल किया जा सकता है यहां योजना बनाई जा रही है कि इसे कैंडी के तौर पर विकसित कर बाजार में उतारा जाए.
आयुर्वेद में विशेष महत्व: डॉ. कमल शर्मा ने बताया कि आयुर्वेद में जिसका बेहद महत्व है और इसके निरंतर सेवन से शरीर में सिर से लेकर सिर तक हर व्याधि का समाधान होता है. डॉ. कमल शर्मा ने बताया कि बीज से यदि पौधा तैयार किया जाता है तो वह 10 से 12 साल के बाद ही फल देना शुरू करता है, लेकिन ग्राफ्टिंग से महज 2 साल में ही फल लगना शुरू हो जाते हैं.
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