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धर्मशाला में तिब्बतियों ने मनाया लोकतंत्र दिवस, कई कार्यक्रमों का आयोजन

तिब्बतियों द्वारा आज अपना 62वां लोकतंत्र स्थापना दिवस मनाया जा रहा (Tibetans 62nd Democracy Day) है. इसी कड़ी में हिमाचल के धर्मशाला में भी कार्यक्रम का आयोजन किया (Tibetan Democracy Day Celebrations in Dharamshala) गया. जिसमें स्थानीय विधायक ने शिरकत की.

Tibetans celebrate Democracy Day in Dharamsala
धर्मशाला में तिब्बतियों ने मनाया लोकतंत्र दिवस.
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Published : Sep 2, 2022, 2:37 PM IST

धर्मशाला: मैक्लोडगंज स्थित बौद्ध मंदिर में आज तिब्बतियों द्वारा अपना 62वां लोकतंत्र स्थापना दिवस मनाया (Tibetans 62nd Democracy Day) गया. इस दौरान तिब्बतियों द्वारा कई कार्यक्रम भी आयोजित किए (Tibetan Democracy Day Celebrations in Dharamshala) गए. स्थापना दिवस में बतौर मुख्यातिथि के रूप में धर्मशाला के विधायक विशाल नेहरिया ने शिरकत (Vishal Nehria in Tibetan Democracy Day) की. तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने तिब्बत के लोगों, नेता व तिब्बती शासन प्रणाली को लोकतांत्रिक बनाने के अपने लंबे समय से वांछित उद्देश्य को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है.

2 फरवरी, 1960 को बौद्धों के प्रमुख तीर्थ स्थल बोधगया में जब तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ (Tibetan Democracy Day) था, तब उसमें दलाईलामा ने आदेश-विचारों के साथ पूरी क्षमता के साथ निस्संदेह होकर चलने की प्रतिज्ञा ली थी. उसी समय दलाईलामा ने पूर्व लंबित तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के अपने-अपने प्रतिनिधियों को बनाए जाने की आदेशानुसार सर्वप्रथम निर्वासन में तिब्बती सांसदों को दलाईलामा की ओर हस्ताक्षरित स्थापित किए गए.

धर्मशाला में तिब्बतियों ने मनाया लोकतंत्र दिवस.

2 सितंबर, 1960 को कार्य की उत्तरदायित्व की शपथ लेने के बाद से तिब्बती लोकतंत्र पर्व को मानते हुए अब तक 62 वर्ष पूरे हो गए (Tibetan Democracy Day in Dharamshala) है. इसी कारण आज का दिन सभी तिब्बतियों के लिए एक विशेष दिन है. तिब्बती सांसद दावा सेरिंग ने कहा कि निर्वासन में शरणार्थियों के रूप में रहने वाले लोगों के सभी समुदायों में तिब्बती समुदाय एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चलने वाले समुदाय के रूप में खड़ा है. तिब्बती लोकतंत्र को उपभोग करते हुए अपने राष्ट्र के लिए संघर्ष, अपने पारंपरिक धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत की संरक्षण करने वाले विशेष समाज के तौर पर पहचान जाता है.

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की शासन प्रणाली वह है जो अपने कामकाज के सभी पहलुओं में पूरी तरह से लोकतांत्रिक है. इस दुनिया में आज किसी भी अन्य वास्तविक लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ बराबरी में खड़ा हो सके ऐसी विशेषताएं हैं. दलाईलामा द्वारा निर्धारित दीर्घकालिक दृष्टि और समय-समय पर उपदेश व मार्गदर्शन दिए जाने के कारण यह चमत्कारिक उपलब्धि पाई है. यह वास्तव में तिब्बती लोगों के लिए खुशी और गर्व का विषय रहा है. पिछले छह दशकों से अधिक समय में, निर्वासित तिब्बती लोगों की लोकतांत्रिक व्यवस्था के ढांचे में समय के अनुसार विकासक्रम में अत्यधिक बदलाव के रूप में स्पष्ट दिखा है.

2 सितंबर, 1960 के दिन, सर्वप्रथम तिब्बती लोगों की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना (Tibetans celebrate Tibetan Democracy Day) हुई. उसी के साथ निर्वासन में पहला तिब्बती संसद के सदस्यों ने पद की शपथ ली. उस समय दलाईलामा ने तिब्बती लोगों के वर्तमान और भविष्य के दीर्घकालिक कल्याण की उद्देश्यों के साथ, अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया, जिससे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि तिब्बती सरकार का राजनीतिक चरित्र निर्वासन में अहिंसा की विचारधारा पर आधारित होना चाहिए और यही वह आधार था जिस पर स्वतंत्रता, न्याय और समानता के विचारों से परिभाषित होकर तिब्बत का लोकतांत्रिक मार्ग उभरा है.

ये भी पढ़ें: गणपति बप्पा मोरिया के जयकारों के साथ टिहरा टनल का ब्रेक थ्रू..

धर्मशाला: मैक्लोडगंज स्थित बौद्ध मंदिर में आज तिब्बतियों द्वारा अपना 62वां लोकतंत्र स्थापना दिवस मनाया (Tibetans 62nd Democracy Day) गया. इस दौरान तिब्बतियों द्वारा कई कार्यक्रम भी आयोजित किए (Tibetan Democracy Day Celebrations in Dharamshala) गए. स्थापना दिवस में बतौर मुख्यातिथि के रूप में धर्मशाला के विधायक विशाल नेहरिया ने शिरकत (Vishal Nehria in Tibetan Democracy Day) की. तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा ने तिब्बत के लोगों, नेता व तिब्बती शासन प्रणाली को लोकतांत्रिक बनाने के अपने लंबे समय से वांछित उद्देश्य को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है.

2 फरवरी, 1960 को बौद्धों के प्रमुख तीर्थ स्थल बोधगया में जब तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के प्रतिनिधियों का सम्मेलन हुआ (Tibetan Democracy Day) था, तब उसमें दलाईलामा ने आदेश-विचारों के साथ पूरी क्षमता के साथ निस्संदेह होकर चलने की प्रतिज्ञा ली थी. उसी समय दलाईलामा ने पूर्व लंबित तीनों प्रांत और भिन्न धार्मिक संप्रदाय के अपने-अपने प्रतिनिधियों को बनाए जाने की आदेशानुसार सर्वप्रथम निर्वासन में तिब्बती सांसदों को दलाईलामा की ओर हस्ताक्षरित स्थापित किए गए.

धर्मशाला में तिब्बतियों ने मनाया लोकतंत्र दिवस.

2 सितंबर, 1960 को कार्य की उत्तरदायित्व की शपथ लेने के बाद से तिब्बती लोकतंत्र पर्व को मानते हुए अब तक 62 वर्ष पूरे हो गए (Tibetan Democracy Day in Dharamshala) है. इसी कारण आज का दिन सभी तिब्बतियों के लिए एक विशेष दिन है. तिब्बती सांसद दावा सेरिंग ने कहा कि निर्वासन में शरणार्थियों के रूप में रहने वाले लोगों के सभी समुदायों में तिब्बती समुदाय एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चलने वाले समुदाय के रूप में खड़ा है. तिब्बती लोकतंत्र को उपभोग करते हुए अपने राष्ट्र के लिए संघर्ष, अपने पारंपरिक धार्मिक, सांस्कृतिक और भाषाई विरासत की संरक्षण करने वाले विशेष समाज के तौर पर पहचान जाता है.

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन की शासन प्रणाली वह है जो अपने कामकाज के सभी पहलुओं में पूरी तरह से लोकतांत्रिक है. इस दुनिया में आज किसी भी अन्य वास्तविक लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ बराबरी में खड़ा हो सके ऐसी विशेषताएं हैं. दलाईलामा द्वारा निर्धारित दीर्घकालिक दृष्टि और समय-समय पर उपदेश व मार्गदर्शन दिए जाने के कारण यह चमत्कारिक उपलब्धि पाई है. यह वास्तव में तिब्बती लोगों के लिए खुशी और गर्व का विषय रहा है. पिछले छह दशकों से अधिक समय में, निर्वासित तिब्बती लोगों की लोकतांत्रिक व्यवस्था के ढांचे में समय के अनुसार विकासक्रम में अत्यधिक बदलाव के रूप में स्पष्ट दिखा है.

2 सितंबर, 1960 के दिन, सर्वप्रथम तिब्बती लोगों की लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की स्थापना (Tibetans celebrate Tibetan Democracy Day) हुई. उसी के साथ निर्वासन में पहला तिब्बती संसद के सदस्यों ने पद की शपथ ली. उस समय दलाईलामा ने तिब्बती लोगों के वर्तमान और भविष्य के दीर्घकालिक कल्याण की उद्देश्यों के साथ, अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान किया, जिससे उन्होंने यह स्पष्ट किया कि तिब्बती सरकार का राजनीतिक चरित्र निर्वासन में अहिंसा की विचारधारा पर आधारित होना चाहिए और यही वह आधार था जिस पर स्वतंत्रता, न्याय और समानता के विचारों से परिभाषित होकर तिब्बत का लोकतांत्रिक मार्ग उभरा है.

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