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शहीद की जयंती! देवभूमि हिमाचल का वो शूरवीर, जिसने कारगिल युद्ध में पाई थी पहली शहादत

कारगिल युद्ध के पहले शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का परिवार आज भी शहीद बेटे को न्याय दिलाने के लिए अकेले ही बिना किसी हथियारों के लड़ रहा है. वीरभूमि हिमाचल के उस वीर सपूत की आज जंयती है, जिसने कारगिल का पहला शहीद कहा जाता है. इस महान युद्धा का बलिदान हमेशा याद किया जाएगा.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया.
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Published : Jun 29, 2021, 10:20 AM IST

पालमपुर: देवभूमि हिमाचल को वीरभूमि के नाम से भी जाना जाता है. इस भूमि ने देश को कई वीर योद्धा दिए हैं, जिनके बलिदान की गाथा इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है. इन्हीं योद्धाओं में से एक हैं कारगिल के पहले शरीद कैप्टन सौरभ कालिया. आज इस शूरवीर की जयंती है. शहीद का परिवार दो दशक से अपने शहीद बेटे के साथ पाकिस्तान के द्वारा किये गये अमानवीय बर्ताव के बारे में न्याय दिलाने के लिये लड़ाई लड़ रहा है.

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, भारत में हुआ था. इनकी माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके. कालिया है. इनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई. इन्होंने स्नातक उपाधि (बीएससी मेडिकल) कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की.

कारगिल सेक्टर में हुई थी पहली तैनाती

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे और कई छात्रवृत्तियां प्राप्त कर चुके थे. अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) के साथ कारगिल सेक्टर में हुई.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया.

महज 21 साल की उम्र में 4- जाट रेजीमेंट के अधिकारी बने थे सौरभ

31 दिसंबर 1998 को जाट रेजिमेंट सेंटर, बरेली में प्रस्तुत होने के उपरांत वे जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल पहुंचे. मात्र 22 साल के कैप्टन सौरभ कालिया 4-जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे. उन्होंने ही सबसे पहले कारगिल में पाकिस्तानी फौज के नापाक इरादों की सेना को जानकारी मुहैया कराई थी.

पेट्रोलिंग के दौरान पाकिस्तानी सेना ने बनाया था बंदी

कारगिल में तैनाती के बाद 5 मई 1999 को वह अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया.

पाकिस्तान की जेल में दी गई अमानवीय यातनाएं

22 दिनों तक इन्हें बंदी बनाकर रखा गया और अमानवीय यातनाएं दी गईं. उनके शरीर को गर्म सरिए और सिगरेट से दागा गया. आंखें फोड़ दी गईं और निजी अंग काट दिए गए. पाकिस्तान ने इन शहीदों के शव 22-23 दिन बाद 7 जून 1999 को भारत को सौंपे थे.

सौरभ के परिवार ने भारत सरकार से इस मामले को पाकिस्तान सरकार के सामने और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाने की बात कही थी. आपको बता दें कि किसी युद्धबंदी की नृशंस हत्या करना जेनेवा संधि व भारत-पाक के बीच हुए द्विपक्षीय शिमला समझौते का भी उल्लंघन है.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
घर में रखे हुए सौरभ कालिया के मेडल और सामान.

कैप्टन कालिया ने जन्मदिन पर घर आने की कही थी बात

एनके कालिया बताते हैं कि उस वक्त टेलीफोन और अन्य कम्यूनिकेशन की सुविधाएं उस स्तर पर नहीं होती थी. 30 अप्रैल को छोटे बेटे के जन्मदिन पर उन्होंने हमसे बात की थी और कहा था कि 29 जून को वो अपने जन्मदिन के दिन घर आएंगे...वो आये तो घर जरूर, लेकिन तिरंगे में लिपटकर आये.

डॉ. कालिया कहते हैं, सरकार ने हमें जो भी दिया हम उसके लिए शुक्रगुजार हैं. अगर उन्होंने हमें कुछ दिया भी नहीं होता तो हमें इसका भी कोई गिला नहीं होता. बस हमारा एक ही मुद्दा है कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों के साथ जो पाकिस्तान की ओर से बर्बरता की गई वो उचित नहीं था.

बचपन की यादों के किस्से

वैभव बताते हैं कि सौरभ उनसे 2 साल बड़े थे. उनका स्वभाव भी काफी देखभाल वाला था और वो अकसर घर में मेरे वकील का काम करते थे, वो खाना बहुत अच्छा बनाते थे. वैभव कहते हैं कि सौरभ मुझसे एक क्लास आगे पढ़ते थे जिस वजह से मुझे उनके नोट्स भी मिल जाते थे.

उन्होंने कहा कि जब सौरभ आईएमए से पास आउट होकर घर आये थे, तो मैंने उनसे मजाक में कहा कि चलो यूनिफॉर्म में होलटा चलते हैं और देखते हैं कि कैसे ऑफिसर को सैल्यूट मारी जाती है, लेकिन उन्होंने कहा कि होलटा चल पड़ेंगे, लेकिन यूनिफॉर्म में नहीं क्योंकि इस वक्त मैं ड्यूटी पर नहीं हूं.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की तस्वीर.

शहादत से पहले आखिरी बार 30 अप्रैल को परिवार से हुई थी बात

वैभव बताते हैं कि उस वक्त केवल चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी. चिट्ठियों में वो बस इतना ही लिखते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है. आखिरी बार उनसे 30 अप्रैल को बात हुई थी कि वो अपने जन्मदिन पर घर आएंगे, तो मैंने कहा था कि हम पार्टी करेंगे. उन्होंने अपना प्रॉमिस पूरा तो किया, लेकिन उस हिसाब से नहीं हो पाया.

आखिरी सांस तक न्याय के लिए लड़ता रहूंगा- एनके कालिया

डॉ. कालिया दुखी मन से कहते हैं कि इस बर्बरता के बाद भी आज तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सुप्रीम कोर्ट में भी इस केस को उठाया गया, लेकिन आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला. डॉ. कालिया कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर सांस है, मैं इस मुद्दे को उठाता रहूंगा.

फौज का प्रोत्साहन जरूरी

वहीं, कैप्टन सौरभ कालिया के भाई वैभव कालिया कहते हैं कि उस समय कारगिल युद्ध बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में लड़ा गया और इस युद्ध को जीता गया था. उन्होंने कहा कि आज देश की परिस्थिति थोड़ी अलग है जो हमें भाई-भाई कहते थे वो आज दुश्मन हो गए हैं, इसलिए आज हमें हमारी फौज का प्रोत्साहन करना जरूरी है.

ये भी पढ़ें: विजय दिवस: कारगिल युद्ध का वो पहला शहीद जिसे 21 साल बाद भी नहीं मिला न्याय

पालमपुर: देवभूमि हिमाचल को वीरभूमि के नाम से भी जाना जाता है. इस भूमि ने देश को कई वीर योद्धा दिए हैं, जिनके बलिदान की गाथा इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है. इन्हीं योद्धाओं में से एक हैं कारगिल के पहले शरीद कैप्टन सौरभ कालिया. आज इस शूरवीर की जयंती है. शहीद का परिवार दो दशक से अपने शहीद बेटे के साथ पाकिस्तान के द्वारा किये गये अमानवीय बर्ताव के बारे में न्याय दिलाने के लिये लड़ाई लड़ रहा है.

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया का जन्म 29 जून 1976 को अमृतसर, भारत में हुआ था. इनकी माता का नाम विजया व पिता का नाम डॉ. एनके. कालिया है. इनकी प्रारंभिक शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कूल पालमपुर से हुई. इन्होंने स्नातक उपाधि (बीएससी मेडिकल) कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, हिमाचल प्रदेश से सन् 1997 में प्राप्त की.

कारगिल सेक्टर में हुई थी पहली तैनाती

शहीद कैप्टन सौरभ कालिया अत्यंत प्रतिभाशाली छात्र थे और कई छात्रवृत्तियां प्राप्त कर चुके थे. अगस्त 1997 में संयुक्त रक्षा सेवा परीक्षा द्वारा सौरभ कालिया का चयन भारतीय सैन्य अकादमी में हुआ, और 12 दिसंबर 1998 को वे भारतीय थलसेना में कमीशन अधिकारी के रूप में नियुक्त हुए. उनकी पहली तैनाती 4 जाट रेजिमेंट (इन्फेंट्री) के साथ कारगिल सेक्टर में हुई.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया.

महज 21 साल की उम्र में 4- जाट रेजीमेंट के अधिकारी बने थे सौरभ

31 दिसंबर 1998 को जाट रेजिमेंट सेंटर, बरेली में प्रस्तुत होने के उपरांत वे जनवरी 1999 के मध्य में कारगिल पहुंचे. मात्र 22 साल के कैप्टन सौरभ कालिया 4-जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे. उन्होंने ही सबसे पहले कारगिल में पाकिस्तानी फौज के नापाक इरादों की सेना को जानकारी मुहैया कराई थी.

पेट्रोलिंग के दौरान पाकिस्तानी सेना ने बनाया था बंदी

कारगिल में तैनाती के बाद 5 मई 1999 को वह अपने पांच साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल, भीखाराम, मूलाराम, नरेश के साथ लद्दाख की बजरंग पोस्ट पर पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने सौरभ कालिया को उनके साथियों सहित बंदी बना लिया.

पाकिस्तान की जेल में दी गई अमानवीय यातनाएं

22 दिनों तक इन्हें बंदी बनाकर रखा गया और अमानवीय यातनाएं दी गईं. उनके शरीर को गर्म सरिए और सिगरेट से दागा गया. आंखें फोड़ दी गईं और निजी अंग काट दिए गए. पाकिस्तान ने इन शहीदों के शव 22-23 दिन बाद 7 जून 1999 को भारत को सौंपे थे.

सौरभ के परिवार ने भारत सरकार से इस मामले को पाकिस्तान सरकार के सामने और इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में उठाने की बात कही थी. आपको बता दें कि किसी युद्धबंदी की नृशंस हत्या करना जेनेवा संधि व भारत-पाक के बीच हुए द्विपक्षीय शिमला समझौते का भी उल्लंघन है.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
घर में रखे हुए सौरभ कालिया के मेडल और सामान.

कैप्टन कालिया ने जन्मदिन पर घर आने की कही थी बात

एनके कालिया बताते हैं कि उस वक्त टेलीफोन और अन्य कम्यूनिकेशन की सुविधाएं उस स्तर पर नहीं होती थी. 30 अप्रैल को छोटे बेटे के जन्मदिन पर उन्होंने हमसे बात की थी और कहा था कि 29 जून को वो अपने जन्मदिन के दिन घर आएंगे...वो आये तो घर जरूर, लेकिन तिरंगे में लिपटकर आये.

डॉ. कालिया कहते हैं, सरकार ने हमें जो भी दिया हम उसके लिए शुक्रगुजार हैं. अगर उन्होंने हमें कुछ दिया भी नहीं होता तो हमें इसका भी कोई गिला नहीं होता. बस हमारा एक ही मुद्दा है कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों के साथ जो पाकिस्तान की ओर से बर्बरता की गई वो उचित नहीं था.

बचपन की यादों के किस्से

वैभव बताते हैं कि सौरभ उनसे 2 साल बड़े थे. उनका स्वभाव भी काफी देखभाल वाला था और वो अकसर घर में मेरे वकील का काम करते थे, वो खाना बहुत अच्छा बनाते थे. वैभव कहते हैं कि सौरभ मुझसे एक क्लास आगे पढ़ते थे जिस वजह से मुझे उनके नोट्स भी मिल जाते थे.

उन्होंने कहा कि जब सौरभ आईएमए से पास आउट होकर घर आये थे, तो मैंने उनसे मजाक में कहा कि चलो यूनिफॉर्म में होलटा चलते हैं और देखते हैं कि कैसे ऑफिसर को सैल्यूट मारी जाती है, लेकिन उन्होंने कहा कि होलटा चल पड़ेंगे, लेकिन यूनिफॉर्म में नहीं क्योंकि इस वक्त मैं ड्यूटी पर नहीं हूं.

STORY ON BIRTH ANNIVERSARY OF MARTYR CAPTAIN SAURABH KALIA
शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की तस्वीर.

शहादत से पहले आखिरी बार 30 अप्रैल को परिवार से हुई थी बात

वैभव बताते हैं कि उस वक्त केवल चिट्ठियों से ही ज्यादा बातचीत होती थी. चिट्ठियों में वो बस इतना ही लिखते थे कि वह पोस्ट पर हैं और यहां बहुत बर्फ है. आखिरी बार उनसे 30 अप्रैल को बात हुई थी कि वो अपने जन्मदिन पर घर आएंगे, तो मैंने कहा था कि हम पार्टी करेंगे. उन्होंने अपना प्रॉमिस पूरा तो किया, लेकिन उस हिसाब से नहीं हो पाया.

आखिरी सांस तक न्याय के लिए लड़ता रहूंगा- एनके कालिया

डॉ. कालिया दुखी मन से कहते हैं कि इस बर्बरता के बाद भी आज तक सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. सुप्रीम कोर्ट में भी इस केस को उठाया गया, लेकिन आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला. डॉ. कालिया कहते हैं कि जब तक मेरे अंदर सांस है, मैं इस मुद्दे को उठाता रहूंगा.

फौज का प्रोत्साहन जरूरी

वहीं, कैप्टन सौरभ कालिया के भाई वैभव कालिया कहते हैं कि उस समय कारगिल युद्ध बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों में लड़ा गया और इस युद्ध को जीता गया था. उन्होंने कहा कि आज देश की परिस्थिति थोड़ी अलग है जो हमें भाई-भाई कहते थे वो आज दुश्मन हो गए हैं, इसलिए आज हमें हमारी फौज का प्रोत्साहन करना जरूरी है.

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