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1905 के भूकंप में क्षतिग्रस्त हुए 'टेढ़ा मंदिर' की नहीं ली जा रही सुध, पांडवों से जुड़ा है इतिहास - ज्वालामुखी के ज्वाला मां मंदिर

115 साल पहले 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के कारण टेढ़ा मंदिर नाम से प्रसिद्ध मंदिर टेढ़ा हो गया था. जिससे इसका नाम टेढ़ा मंदिर पड़ गया, लेकिन ये मंदिर सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.

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Published : Sep 20, 2019, 3:00 PM IST

Updated : Sep 20, 2019, 8:48 PM IST

जवालामुखी/कांगड़ा: ज्वालाजी शक्तिपीठ से दो किलोमीटर दूर टेढ़ा मंदिर नाम से रघुनाथेश्वर (राम सीता) का मंदिर स्थित है. 115 साल पहले 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के कारण ये मंदिर टेढ़ा हो गया था. जिससे इसका नाम टेढ़ा मंदिर पड़ गया, लेकिन ये मंदिर सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.

बता दें कि रघुनाथेश्वर मंदिर में भगवान राम-सीता की मूर्तियों स्थापित की गई है. कहा जाता है कि इस मंदिर को पांडवों ने अपने बनवास के दौरान बनाया था और यहां आने वाले भक्त आज भी टेढ़े खड़े होकर राम-सीता की मूर्तियों के दर्शन करते हैं. ये मंदिर प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी के पास स्थित है. ज्वालामुखी के ज्वाला मां मंदिर की बगल से इसका रास्ता जाता है. पूरा रास्ता ऊबड़-खाबड़ पत्थरों और चढ़ाई भरा है. इसके अलावा मंदिर तक पहुंचने के लिए जंगल से होकर जाना पड़ता है.

वीडियो.

राजा अकबर ने मां जवाला की शक्ति को आजमाने के लिए टेढ़ा मंदिर से पानी की नहर को लाया था. इस पानी को मंदिर में स्थित पावन ज्योतियों को बुझाने के लिए इस्तेमाल किया गया था, लेकिन राजा अकबर अपने घमंड के कारण इसमें कामयाब नहीं हो सका था.

tedha mandir
टेढ़ा मंदिर.

ये मंदिर पिछले 115 सालों से टेढ़ा है. कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने इसका निर्माण कराया था. कांगड़ा गैजेट में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है. भूकंप आने के बाद इस मंदिर की असली अष्टधातु की मूर्तियों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था. उसके बाद उन मूर्तियों को दोबारा नहीं देखा गया.

tedha mandir
टेढ़ा मंदिर.

टेढ़ा मंदिर अधिकारी और एसडीएम अंकुश शर्मा ने बताया कि टेढ़ा मंदिर का मामला अभी मेरे ध्यान में लाया गया है. उन्होंने बताया कि वो जाकर स्थिति का जायजा लेंगे और रास्ते, शौचालयों व पीने के पानी का जल्द प्रबंध किया जाएगा. 15 साल पहले 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के कारण टेढ़ा मंदिर नाम से प्रसिद्ध मंदिर टेढ़ा हो गया था. जिससे इसका नाम टेढ़ा मंदिर पड़ गया, लेकिन ये मंदिर सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.

जवालामुखी/कांगड़ा: ज्वालाजी शक्तिपीठ से दो किलोमीटर दूर टेढ़ा मंदिर नाम से रघुनाथेश्वर (राम सीता) का मंदिर स्थित है. 115 साल पहले 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के कारण ये मंदिर टेढ़ा हो गया था. जिससे इसका नाम टेढ़ा मंदिर पड़ गया, लेकिन ये मंदिर सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.

बता दें कि रघुनाथेश्वर मंदिर में भगवान राम-सीता की मूर्तियों स्थापित की गई है. कहा जाता है कि इस मंदिर को पांडवों ने अपने बनवास के दौरान बनाया था और यहां आने वाले भक्त आज भी टेढ़े खड़े होकर राम-सीता की मूर्तियों के दर्शन करते हैं. ये मंदिर प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी के पास स्थित है. ज्वालामुखी के ज्वाला मां मंदिर की बगल से इसका रास्ता जाता है. पूरा रास्ता ऊबड़-खाबड़ पत्थरों और चढ़ाई भरा है. इसके अलावा मंदिर तक पहुंचने के लिए जंगल से होकर जाना पड़ता है.

वीडियो.

राजा अकबर ने मां जवाला की शक्ति को आजमाने के लिए टेढ़ा मंदिर से पानी की नहर को लाया था. इस पानी को मंदिर में स्थित पावन ज्योतियों को बुझाने के लिए इस्तेमाल किया गया था, लेकिन राजा अकबर अपने घमंड के कारण इसमें कामयाब नहीं हो सका था.

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टेढ़ा मंदिर.

ये मंदिर पिछले 115 सालों से टेढ़ा है. कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने इसका निर्माण कराया था. कांगड़ा गैजेट में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है. भूकंप आने के बाद इस मंदिर की असली अष्टधातु की मूर्तियों को सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया था. उसके बाद उन मूर्तियों को दोबारा नहीं देखा गया.

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टेढ़ा मंदिर.

टेढ़ा मंदिर अधिकारी और एसडीएम अंकुश शर्मा ने बताया कि टेढ़ा मंदिर का मामला अभी मेरे ध्यान में लाया गया है. उन्होंने बताया कि वो जाकर स्थिति का जायजा लेंगे और रास्ते, शौचालयों व पीने के पानी का जल्द प्रबंध किया जाएगा. 15 साल पहले 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप के कारण टेढ़ा मंदिर नाम से प्रसिद्ध मंदिर टेढ़ा हो गया था. जिससे इसका नाम टेढ़ा मंदिर पड़ गया, लेकिन ये मंदिर सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा है.

Intro:बदहाली के आंसू रो रहा टेढ़ा मंदिर नाम से रघुनाथेसवर (राम सीता) का मंदिर


सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार हो रहा टेडा मन्दिर
पिछले 115 सालों से टेढ़ा है मन्दिर
ऊबड़-खाबड़, चढ़ाई भरे व पथरीले रास्ते से होकर जाना पड़ता है, आज तक नही बना पाया मन्दिर प्रसाशन रास्ताBody:स्पेशल स्टोरी (एक्सक्लूसिव)


ज्वालामुखी, 20 सितम्बर (नितेश कुमार): जवालामुखी शक्तिपीठ मंदिर से दो किलोमीटर दूर टेढ़ा मंदिर नाम से रघुनाथेसवर (राम सीता) का मंदिर स्थित है, 115 साल पहले 1905 में जिला काँगड़ा में आए भयानक भूंकप के कारण यह मंदिर टेढ़ा हो गया था, उस समय से ही इस मंदिर का नाम टेढ़ा मंदिर पड गया था । आज के समय में यह मंदिर बाहर से आने वाले श्रदालुओ के लिए आस्था का केंद्र बन गया है आज भी लोग यहां मंदिर में टेढ़े खड़े होकर ही यहां स्तिथ राम सीता की मूर्तियों के दर्शन करते है। इस मंदिर को पांडवो ने अपने बनवास के दौरान बनाया था।
हिमालय की गोद में बसा देवभूमि हिमाचल गर्मी के मौसम में जहां बाहर से आने वाले पर्यटकों को गर्मियों से निजात दिलाता है। वहीं दूसरी और यहां के अनेकों शक्तिपीठो के दर्शन भी करवाता है। श्रदालुओ की गहरी आस्था का केंद्र रहा यह मंदिर भी आज भी अपने बजूद पर ज्यो का त्यों खड़ा है।

खतरनाक डरावने सुनसान जंगल से गुजरता है रास्ता
यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में ज्वालामुखी के पास स्थित है। ज्वालामुखी के ज्वाला मां मंदिर की बगल से ही इसके लिए रास्ता जाता है। ज्वाला जी से इसकी दूरी करीब दो किलोमीटर है। पूरा रास्ता ऊबड़-खाबड़ पत्थरों से युक्त चढ़ाई भरा है। खतरनाक डरावने सुनसान जंगल से होकर यह रास्ता जाता है।

टेढ़ा मंदिर से लाइ थी राजा अकबर ने पानी की नहर
राजा अकबर ने माँ जवाला की शक्ति को आजमाने के लिए टेढ़ा मंदिर से एक पानी की नहर को लाया गया था इस पानी को मंदिर में स्थित पावन ज्योतियों को बुझाने के लिए इस्तेमाल किया गया था लेकिन राजा अकबर अपने घमंड के कारण इसमें कामयाब नहीं हो सका था।

पांडवों ने करवाया था निर्माण
यह मंदिर पिछले 115 सालों से टेढ़ा है। कहा जाता है कि वनवास काल के दौरान पांडवों ने इसका निर्माण कराया था। 1905 में कांगड़ा में आए भयानक भूकंप से कांगड़ा का किला तो बिलकुल खंडहरों में तब्दील हो गया था। भूकंप के ही प्रभाव से यह मंदिर भी एक तरफ झुककर टेढ़ा हो गया। तभी से इसका नाम टेढ़ा मंदिर है। इसके अंदर जाने पर डर लगता है कि कहीं यह गिर ना जाए। कांगड़ा गैजेट में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है। भूकंप आने के बाद इस मंदिर की असली अष्टधातु की मूर्तियों को सरकार ने अपने कब्जे मे ले लिया था। उसके बाद उन मूर्तियों को दोवारा नहीं देखा गया।

सरकार व प्रशासन की उपेक्षा का शिकार
टेढ़ा मंदिर आज भी सरकार की उपेक्षा का शिकार बना हुआ है यहां पर आने के लिए आज भी ऊबड़-खाबड़, चढ़ाई भरे व पथरीले रास्ते से होकर जाना पड़ता है। मंदिर में श्रदालुओ के लिए शौचालय तक नहीं है। यही नही राजा अकबर द्वारा बनाई गई पानी की नहर का भी कहीं नामोनिशा नहीं है, साथ ही पानी का भी कोई उचित प्रबंध नहीं है। पानी को एक खुली बाबड़ी में इकठा किया जाता है जो की आने वाले श्रदालुओ के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है। जहाँ तक देखा जाए तो मंदिर का रखरखाव भी न के बराबर है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए दो रास्ते है एक रास्ता पैदल, पथरीला व चढ़ाईनुमा है व दूसरा रास्ता वाहन योग्य है लेकिन इस रास्ते पर मबेशियो के अबशेषो व कूड़े को खुले में फेंका जा रहा है जिससे की यहां अक्सर वदवू फैली रहती ह। वहीं यहां की स्थानीय लोगों का कहना है की अकबर की नहर का जीर्णोद्धार कर आने वाले श्रदालुओ के लिए आस्था का केंद्र बन सकती है यह नहर, लेकिन मन्दिर प्रसाशन इस ओर कोई खास ध्यान नही दे रहा है।

क्या कहते है एस डी एम
मंदिर अधिकारी एवं एस.डी.एम. अंकुश शर्मा
ने बताया की टेढ़ा मंदिर का मामला मेरे ध्यान में अभी लाया गया है व मैं स्वयं वहाँ जाकर स्थित का जायजा लूंगा व टेढ़ा मंदिर के रास्ते, शौचालयों व पीने के पानी का जल्द ही उचित प्रबंध किया जायगा।Conclusion:
Last Updated : Sep 20, 2019, 8:48 PM IST
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