धर्मशाला: अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन की तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी हैं. पांच अगस्त का दिन स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा, लेकिन इस दिन के लिए कई दशकों की लंबी लड़ाई लड़ी गई. राम मंदिर के आंदोलन ने देश की राजनीति की दशा-दिशा दोनों ही बदल दी. राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी में नई जान डाल दी (राम लल्ला हम आएंगे...मंदिर वहीं बनाएंगे).
राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत करने वालों में परमहंस से लेकर इसे आगे बढ़ाने में विश्व हिंदू परिषद के अशोक सिंघल और बीजेपी नेता एलके आडवाणी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. 80 के दशक में बीजेपी अपने बाल्यकाल में थी. बीजेपी अभी राजनीति के अखाड़े में अपने पैरों पर खड़ी हो रही थी. कांग्रेस समेत दूसरे दल भी बीजेपी का उपहास उड़ाते थे.
बीजेपी ने तय कर लिया था कि अगर उसे अपने से सौ साल पुरानी पार्टी को टक्कर देनी है तो कुछ अलग करना होगा. इसके बाद बीजेपी ने अपनी नजर आयोध्या राम जन्म भूमि पर डाली और यहीं से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी. बीजेपी ने तय किया कि अब बीएचपी के साथ मिलकर राम मंदिर निर्माण का खुला समर्थन किया जाएगा.
सन 1989 में पालमपुर के रोटरी भवन में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई. इस बैठक में स्वर्गीय वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी के अलावा पार्टी के उस समय के सभी दिग्गज नेताओं ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित की थी. इसी बैठक में बीजेपी ने राममंदिर निर्माण का प्रस्ताव पारित किया था.
भगवान श्री राम के मंदिर निर्माण का प्रस्ताव तैयार करने में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने अहम भूमिका निभाई थी. इससे संबंधित चर्चा दो दिन तक पालमपुर में रहकर उन्होंने तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ की थी.
पार्टी ने राम मंदिर के प्रस्ताव को पालमपुर में पहली बार पारित किया और इसमें अटल जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दो दिन तक चले इस अधिवेशन के दौरान अटल जी सेशन हाउस में रुके थे. वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी ने पालमपुर के गांधी मैदान में एक जनसभा को संबोधित किया था. रात का समय था और जब अटल जी जब भाषण दे रहे थे तो सुनने वाले सब चुपचाप बैठे थे. बीजेपी की ओर आयोध्या में राम मंदिर का प्रस्ताव लाने की बात सुनकर लोग खुशी से झूम उठे. मैदान में ही लोगों ने नाच-गाना शुरू कर दिया.
उस समय पार्टी के सभी बड़े नेता भी वाजपेयी और आडवाणी का अनुसरण करते थे. 1989 की बैठक और अटल जी का पालमपुर आना इतिहास के पन्नों में अमर है. पालमपुर में हुई बैठक के बाद आडवाणी की अध्यक्षता में भाजपा ने 1989 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर के मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया. हिंदू राष्ट्रवाद के जरिये चुनावी समर्थन जुटाने की कवायद में उन्होंने 1990 के दशक की शुरुआत में राम रथयात्रा निकाली. बिहार में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने आडवाणी को गिरफ्तार करवाया.
मिशन राम मंदिर के बाद बीजेपी में नया जोश
मिशन राम मंदिर के बाद बीजेपी में नया जोश आया. बीजेपी को हिंदू समर्थित पार्टी कहा जाने लगा. राम मंदिर आंदोलन के बाद 1991 में बीजेपी ने पहली बार जीत का स्वाद चखा. 1991 में यूपी में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. कल्याण सिंह को यूपी का मुख्यमंत्री बनाया गया.
कल्याण सिंह की सरकार के समय 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरा दी गई. देशभर में दंगे भड़क गए. कल्याण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. जांच एजेंसी ने ऊमा भारती, आडवणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार समेत 60 से अधिक लोगों को नामजद किया. कल्याणा सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.
राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी में नई ऊर्जा का संचार कर दिया. राम मंदिर के सहारे हिंदू वोट बैंक को अपने पक्ष में किया. 1996 में बीजेपी को 161 सीटें मिलीं. अटल बिहारी वाजपेयी 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने. 1998 में हुए चुनाव में बीजेपी ने अपने दम पर 182 सीटें ले ली. एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेई 13 महीनों के लिए प्रधानंत्री बने. 1999 में हुए 13वीं लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 545 में 182 सीटें जीत ली और 2004 तक केंद्र में अटल बिहारी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार रही.
2004-2009 में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा. 2014-2019 में बीजेपी ने जोरदार वापसी की. सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने विवादित जमीन पर मंदिर बनाने का फैसला दिया, जबकि मुस्लिम पक्ष को अलग स्थान पर 5 एकड़ भूमि देने का आदेश दिया.
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