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हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय की अनूठी परंपरा, लिखित समझौते के बाद नहीं टल सकती शादी - हिमाचल प्रदेश के गद्दी समुदाय

Unique tradition of Gaddi community: हिमाचली शादी में आपको अलग-अलग जगह बहुत सी रस्में देखने को मिलती हैं. जैसे किन्नौर में सात फेरे न होना. चंबा जिला के भरमौर क्षेत्र में दो (Gaddi Community Himachal Pradesh) परिवारों के बीच शादी से पहले चौरासी परिसर में शिव मंदिर के चबूतरे पर एक लिखित समझौता होता है.

marriage cannot be postponed after written agreement likhnotri in gaddi community
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Published : Dec 12, 2021, 10:44 PM IST

चंबा: Unique tradition of Gaddi community: हिमाचल में शादी हर समुदाय के लिए एक सामूहिक उत्सव की तरह होती है. हिमाचली शादी में आपको अलग-अलग जगह बहुत सी रस्में देखने को मिलती हैं. जैसे किन्नौर में सात फेरे न होना. चंबा जिले के भरमौर क्षेत्र में (Gaddi Community Himachal Pradesh) दो परिवारों के बीच शादी से पहले चौरासी परिसर में शिव मंदिर के चबूतरे पर एक लिखित समझौता होता है.

कुंडलिया मिलने के बाद वर और वधु पक्ष के पंडितों और परिजनों की मौजूदगी में ये लिखित समझौता (written agreement likhnotri in gaddi community) होता है. गद्दी भाषा में समझौते को लखणोतरी कहां जाता है. लखरणोतरी को स्थानीय भाषा में ही लिखा जाता है. ये लिखित समझौता दोनों पक्षों को दिया जाता है. इसे विवाह का लिखित दस्तावेज भी माना जाता है.

शादी वाले घर में किसी भी तरह की अनहोनी होने के बाद भी तय समय और तिथि पर ही बारात आती है और पूरे रिति रिवाज के साथ विवाह समपन्न होता है. मानयता है कि अगर किसी भी कारण से विवाह को रोक दिया जाता है तो दोनों परिवारों को भगवान भोले नाथ के क्रोध का सामना करना पड़ता है.

गद्दी समुदाय के लोगों को भगवान भोले नाथ का अनुयायी माना जाता है, यहां हर शुभ कार्य भगवान शिव के साथ जोड़ कर किया जाता है. लखणोतरी में भगवान भोले नाथ को साक्षी मान कर विवाह दस्तावेज तैयार किया जाता है. एक बार लखणोतरी पूरी हो गई, तो फिर किसी भी स्थिति में विवाह को रोका (marriage cannot be postponed after written agreement) नहीं जाता. ऐसा करना भगवान भोले नाथ का निरादर माना जाता है.

समुदाय के लोगों का कहना है कि कई बार ऐसे मौके भी आए हैं कि दूल्हे की बारात (Unique wedding tradition in Himachal Pradesh) जाने से पहले घर में किसी की मृत्यु हो गई, लेकिन इस स्थिती में भी विवाह समारोह को रोका नहीं गया. समुदाय में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी के घर से बारात लौट गई हो या फिर शादी को रोकना पड़ा हो. मान्यता है कि भगवान भोले नाथ को साक्षी मानकर तैयार होने वाले दस्तावेज लखणोतरी की वजह से ये संभव होता.

ये भी पढ़ें- विश्व प्रसिद्ध चंबा चप्पल के कारोबार पर महंगाई की मार, कारोबारियों ने सरकार से लगाई ये गुहार

चंबा: Unique tradition of Gaddi community: हिमाचल में शादी हर समुदाय के लिए एक सामूहिक उत्सव की तरह होती है. हिमाचली शादी में आपको अलग-अलग जगह बहुत सी रस्में देखने को मिलती हैं. जैसे किन्नौर में सात फेरे न होना. चंबा जिले के भरमौर क्षेत्र में (Gaddi Community Himachal Pradesh) दो परिवारों के बीच शादी से पहले चौरासी परिसर में शिव मंदिर के चबूतरे पर एक लिखित समझौता होता है.

कुंडलिया मिलने के बाद वर और वधु पक्ष के पंडितों और परिजनों की मौजूदगी में ये लिखित समझौता (written agreement likhnotri in gaddi community) होता है. गद्दी भाषा में समझौते को लखणोतरी कहां जाता है. लखरणोतरी को स्थानीय भाषा में ही लिखा जाता है. ये लिखित समझौता दोनों पक्षों को दिया जाता है. इसे विवाह का लिखित दस्तावेज भी माना जाता है.

शादी वाले घर में किसी भी तरह की अनहोनी होने के बाद भी तय समय और तिथि पर ही बारात आती है और पूरे रिति रिवाज के साथ विवाह समपन्न होता है. मानयता है कि अगर किसी भी कारण से विवाह को रोक दिया जाता है तो दोनों परिवारों को भगवान भोले नाथ के क्रोध का सामना करना पड़ता है.

गद्दी समुदाय के लोगों को भगवान भोले नाथ का अनुयायी माना जाता है, यहां हर शुभ कार्य भगवान शिव के साथ जोड़ कर किया जाता है. लखणोतरी में भगवान भोले नाथ को साक्षी मान कर विवाह दस्तावेज तैयार किया जाता है. एक बार लखणोतरी पूरी हो गई, तो फिर किसी भी स्थिति में विवाह को रोका (marriage cannot be postponed after written agreement) नहीं जाता. ऐसा करना भगवान भोले नाथ का निरादर माना जाता है.

समुदाय के लोगों का कहना है कि कई बार ऐसे मौके भी आए हैं कि दूल्हे की बारात (Unique wedding tradition in Himachal Pradesh) जाने से पहले घर में किसी की मृत्यु हो गई, लेकिन इस स्थिती में भी विवाह समारोह को रोका नहीं गया. समुदाय में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ है कि किसी के घर से बारात लौट गई हो या फिर शादी को रोकना पड़ा हो. मान्यता है कि भगवान भोले नाथ को साक्षी मानकर तैयार होने वाले दस्तावेज लखणोतरी की वजह से ये संभव होता.

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