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आस्था: धूमधाम से हुआ 'तुलसी और शालिग्राम' का विवाह, लखनपुर से बिलासपुर आई थी बारात

जिला बिलासपुर में शालिग्राम और तुलसी का विवाह बड़ी धूमधाम के साथ संपन्न हुआ. मान्यता है कि देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु चार महीने की नींद के बाद जागते हैं. इस दिन से हिंदु धर्म में सभी शुभ कार्यों का आरंभ हो जाता है. इसी के साथ इसी एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह (Tulasi and Shaligram Vivah ) किया जाता है.

Tulasi and Shaligram Vivah
Dev Uthani Ekadashi
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Published : Nov 15, 2021, 5:25 PM IST

बिलासपुर: शहर में एक विवाह ऐसा भी हुआ जिसके सभी लोग मुरीद हो गए. बारातियों के साथ ढोल-नगाड़ों के साथ बिलासपुर नगर के डियारा सेक्टर में पहुंची बारात को हर कोई देखने के लिए यहां पर पहुंच गया. बिलासपुर नगर के डियारा सेक्टर में शालिग्राम और तुलसी का विवाह बड़ी धूमधाम के साथ संपन्न हुआ. अवस्थी परिवार में वधु पक्ष का प्रबंध था जबकि पंडित बाबू राम शर्मा लखनपुर से शालिग्राम की बारात लेकर डियारा सेक्टर पहुंचे.

वर पक्ष की ओर से बारातियों के पारंपरिक साफे और उनकी वेशभूषा शानदार लग रही थी. अवस्थी परिवार की ओर से घर को आकर्षक तरीके से सजाया गया था. सुबह बारातियों का बाकायदा स्वागत हुआ, चाय पानी के बाद नाश्ता परोसा गया. इसके बाद घर के आंगन में सजाई गई वेदी में विद्वान पंडितों द्वारा विवाह पढ़ा गया और इससे संबंधित रस्में निभाई गईं.

वीडियो.
डियारा सेक्टर ही नहीं बल्कि नगरवासी भी इस अलौलिक विवाह के साक्षी बने. पंडित भास्करानंद जी की मानें तो जो कोई भी इस विवाह का साक्षी बनता है, उसके जीवन में ढेरों खुशियां आती हैं. उन्होंने बताया कि जीव द्वारा अपनी सभी इंद्रियों को भगवान नारायण यानि शालिग्राम तुलसी में रमा देना ही तुलसी विवाह कहलाता है. उन्होंने बताया कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु चतुर्मास की निंद्रा से जागते हैं. एकादश से पूर्णिमा तक यानि भीष्म पंजक के पांच दिनों में कभी भी इस विवाह कार्य को संपन्न किया जा सकता है. इस दौरान दीप दान महत्वपूर्ण है. पंडित भास्करानंद ने इस कथा पर प्रकाश डाला.

दरअसल शालीग्राम और कोई नहीं बल्कि स्वंय भगवान विष्णु (Lord Vishnu) हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव के गणेश और कार्तिकेय के अलावा एक और पुत्र थे, जिनका नाम था जलंधर. जलंधर असुर प्रवत्ति का था. वह खुद को सभी देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली समझता था. जलंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ. जलंधर का बार-बार देवताओं को परेशान करने की वजह से त्रिदेवों ने उसके वध की योजना बनाई, लेकिन वृंदा के सतीत्व के चलते कोई उसे मार नहीं पाता था.



इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु ने हल निकालते हुए सबसे पहले वृंदा के सतीत्व को भंग करने की योजना बनाई. ऐसा करने के लिए विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया. इसके बाद त्रिदेव जलंधर को मारने में सफल हो गए. वृंदा इस छल के बारे में जानकर बेहद दुखी हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया. सभी देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की विनती की, जिसे वृंदा ने माना और अपना श्राप वापस ले लिया. प्रायश्चित के लिए भगवान विष्णु ने खुद का एक पत्थर रूप प्रकट किया. इसी पत्थर को शालिग्राम नाम दिया गया.



वृंदा अपने पति जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला. इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने अपना प्रायच्शित जारी रखते हुए तुलसी को सबसे ऊंचा स्थान दिया और कहा कि, मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूंगा.

ये भी पढ़ें : KULLU: स्कूलों में लौटी रौनक: सरकारी स्कूलों में पहुंचे पहली और दूसरी कक्षा के बच्चे

बिलासपुर: शहर में एक विवाह ऐसा भी हुआ जिसके सभी लोग मुरीद हो गए. बारातियों के साथ ढोल-नगाड़ों के साथ बिलासपुर नगर के डियारा सेक्टर में पहुंची बारात को हर कोई देखने के लिए यहां पर पहुंच गया. बिलासपुर नगर के डियारा सेक्टर में शालिग्राम और तुलसी का विवाह बड़ी धूमधाम के साथ संपन्न हुआ. अवस्थी परिवार में वधु पक्ष का प्रबंध था जबकि पंडित बाबू राम शर्मा लखनपुर से शालिग्राम की बारात लेकर डियारा सेक्टर पहुंचे.

वर पक्ष की ओर से बारातियों के पारंपरिक साफे और उनकी वेशभूषा शानदार लग रही थी. अवस्थी परिवार की ओर से घर को आकर्षक तरीके से सजाया गया था. सुबह बारातियों का बाकायदा स्वागत हुआ, चाय पानी के बाद नाश्ता परोसा गया. इसके बाद घर के आंगन में सजाई गई वेदी में विद्वान पंडितों द्वारा विवाह पढ़ा गया और इससे संबंधित रस्में निभाई गईं.

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डियारा सेक्टर ही नहीं बल्कि नगरवासी भी इस अलौलिक विवाह के साक्षी बने. पंडित भास्करानंद जी की मानें तो जो कोई भी इस विवाह का साक्षी बनता है, उसके जीवन में ढेरों खुशियां आती हैं. उन्होंने बताया कि जीव द्वारा अपनी सभी इंद्रियों को भगवान नारायण यानि शालिग्राम तुलसी में रमा देना ही तुलसी विवाह कहलाता है. उन्होंने बताया कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु चतुर्मास की निंद्रा से जागते हैं. एकादश से पूर्णिमा तक यानि भीष्म पंजक के पांच दिनों में कभी भी इस विवाह कार्य को संपन्न किया जा सकता है. इस दौरान दीप दान महत्वपूर्ण है. पंडित भास्करानंद ने इस कथा पर प्रकाश डाला.

दरअसल शालीग्राम और कोई नहीं बल्कि स्वंय भगवान विष्णु (Lord Vishnu) हैं. पौराणिक कथा के मुताबिक भगवान शिव के गणेश और कार्तिकेय के अलावा एक और पुत्र थे, जिनका नाम था जलंधर. जलंधर असुर प्रवत्ति का था. वह खुद को सभी देवताओं से ज्यादा शक्तिशाली समझता था. जलंधर का विवाह भगवान विष्णु की परम भक्त वृंदा से हुआ. जलंधर का बार-बार देवताओं को परेशान करने की वजह से त्रिदेवों ने उसके वध की योजना बनाई, लेकिन वृंदा के सतीत्व के चलते कोई उसे मार नहीं पाता था.



इस समस्या के समाधान के लिए सभी देवगण भगवान विष्णु के पास पहुंचे. भगवान विष्णु ने हल निकालते हुए सबसे पहले वृंदा के सतीत्व को भंग करने की योजना बनाई. ऐसा करने के लिए विष्णु जी ने जलंधर का रूप धारण किया और वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया. इसके बाद त्रिदेव जलंधर को मारने में सफल हो गए. वृंदा इस छल के बारे में जानकर बेहद दुखी हुई और उसने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दिया. सभी देवताओं ने वृंदा से श्राप वापस लेने की विनती की, जिसे वृंदा ने माना और अपना श्राप वापस ले लिया. प्रायश्चित के लिए भगवान विष्णु ने खुद का एक पत्थर रूप प्रकट किया. इसी पत्थर को शालिग्राम नाम दिया गया.



वृंदा अपने पति जलंधर के साथ सती हो गई और उसकी राख से तुलसी का पौधा निकला. इतना ही नहीं भगवान विष्णु ने अपना प्रायच्शित जारी रखते हुए तुलसी को सबसे ऊंचा स्थान दिया और कहा कि, मैं तुलसी के बिना भोजन नहीं करूंगा.

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