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'देवभूमि' के इस जिला में ना भगवान बस पाए और न इंसान, पौराणिक मंदिरों को आज भी जल समाधि खत्म होने का इंतजार - गोविंद सागर झील हिमाचल

मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर आज भी अपने अस्तित्व की वाट टोह रहे हैं. गोविंद सागर झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो  इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है.

mythological temples in bad condition in bilaspur
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Published : Sep 6, 2019, 5:28 PM IST

बिलासपुर: दशकों से गोविंद सागर झील में जलमग्न हुए पुराने मंदिर रंगनाथन, मुकेश्वर अपने अस्तिव के लिए जंग लड़ रहे हैं. हालांकि भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आई और कई चली गई, लेकिन हर बार जिला के पौराणिक मंदिरों को लेकर सियासत ही हुई है.

मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर आज भी अपने जीर्णोद्धार की वाट टोह रहे हैं. गोविंद सागर झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है. कुछ समय पहले जब ये मंदिर पानी से बाहर आए तो केंद्र की टीम ने सर्वे किया और वापस चली गई. टीम को गए हुए तकरीबन 2 से 3 महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक ना ही इसकी रिपोर्ट आई है और ना ही आगामी काम की शुरूआत की गई है.

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साहित्यकार विजय कुमार ने बताया कि जिला के जो ऐतिहासिक मंदिर है, उनको स्थानांतरित करने के लिए प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने बहुत प्रयास किए हैं, लेकिन सारा मामला फाइलों से बाहर नहीं निकला है. उन्होंने बताया कि हर बार यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम जाती है और सर्वेक्षण करती है. वहीं, अगर वास्तव में ये मंदिर स्थानांतरित हो जाते हैं तो पर्यटन की दृष्टि से बिलासपुर एक आकर्षण का केंद्र बनेगा.

बिलासपुर: दशकों से गोविंद सागर झील में जलमग्न हुए पुराने मंदिर रंगनाथन, मुकेश्वर अपने अस्तिव के लिए जंग लड़ रहे हैं. हालांकि भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आई और कई चली गई, लेकिन हर बार जिला के पौराणिक मंदिरों को लेकर सियासत ही हुई है.

मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर आज भी अपने जीर्णोद्धार की वाट टोह रहे हैं. गोविंद सागर झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है. कुछ समय पहले जब ये मंदिर पानी से बाहर आए तो केंद्र की टीम ने सर्वे किया और वापस चली गई. टीम को गए हुए तकरीबन 2 से 3 महीने बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक ना ही इसकी रिपोर्ट आई है और ना ही आगामी काम की शुरूआत की गई है.

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साहित्यकार विजय कुमार ने बताया कि जिला के जो ऐतिहासिक मंदिर है, उनको स्थानांतरित करने के लिए प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने बहुत प्रयास किए हैं, लेकिन सारा मामला फाइलों से बाहर नहीं निकला है. उन्होंने बताया कि हर बार यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम जाती है और सर्वेक्षण करती है. वहीं, अगर वास्तव में ये मंदिर स्थानांतरित हो जाते हैं तो पर्यटन की दृष्टि से बिलासपुर एक आकर्षण का केंद्र बनेगा.

Intro:
बिलासपुर में न भगवान बस पाए, न इंसान
पौराणिक मंदिरों की कई दशकों से नहीं हो रही देखभाल
सर्वे को हर साल पहुंच जाती है टीमें


भाखडा विस्थापितों का शहर...जहाँ न तो पुराणिक मंदिरो का बसाव हो सका और न ही यहाँ पर लोगो का। जी, हाँ हम बात कर रहे है बिलासपुर शहर की। यहाँ पर कई दशकों से बने पौराणिक मंदिर अभी भी अपने अस्तित्व की वाट टोह रहे है। लेकिन हर साल सरकार के आश्वाशन के आगे यह मंदिर यहाँ से शिफ्ट नही हो सके।



Body:दशकों से गोविंद सागर झील में जलमग्न हुए पुराने मंदिर रंगनाथन, मुकेश्वर, ठाकुरद्वारा, मुरली मनोहर, राजा आनंद चंद्र द्वारा बनाए गए गोपाल मंदिर और हनुमान मंदिर इत्यादि अपने अस्तित्व की जंग लड़ रहे हैं। हालांकि भाखड़ा बांध के अस्तित्व में आने के बाद राज्य में कई सरकारें आई और कई चले गए लेकिन हर बार बिलासपुर के लोगों की आस्था के प्रतीक इस पौराणिक मंदिरों को लेकर रियासत ही हुई और यहां मंदिर राजनीति का शिकार हो रहे हैं। इस झील का जलस्तर नीचे उतरता है तो गले इन मंदिरों की दुर्दशा देखी जा सकती है।
हालांकि कुछ समय पहले जब यह मंदिर पानी से बाहर आए तो केंद्र की टीम यहां पर सर्वे के लिए आई थी। जिन्होंने मंदिर के हर एक स्थान की जांच की और इसकी रिपोर्ट तैयार करने के लिए वापस चली गईं। टीम को गए हुए तकरीबन 2 से 3 माह हो गए हैं लेकिन अभी तक ना ही इसकी रिपोर्ट आई है और ना ही आगामी क्या कार्य किए जाएगा इसकी कोई जानकारी दी जा रही है। बता दें कि अभी मंदिर पानी में जलमग्न हो गए हैं जिस कारण पानी अधिक होने से यह मंदिर दिखाई नहीं देते हैं लेकिन जैसे ही पानी उतरता है तो इन मंदिरों की दुर्दशा देखते ही बनती है।

क्या कहते है साहित्यकार विजय कुमार
बाइट...
बिलासपुर के ऐतिहासिक जो मंदिर है उनको स्थानांतरित करने के लिए यूं तो प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार ने बहुत प्रयास किए हैं लेकिन यह सारा जो मसौदा है वह कभी भी फाइलों से बाहर निकल नहीं पाया है। हर बार यहां पर पुरातत्व विभाग की टीम जाती है सर्वेक्षण करती है और फिर चली जाती हैं। बस वास्विकता यही है कि यह मंदिर कभी भी स्थानांतरित नहीं हो पाए हैं। यदि वास्तव में यह मंदिर स्थानांतरित हो जाते हैं तो न सिर्फ पर्यटन की दृष्टि से बिलासपुर एक आकर्षण का केंद्र बनेगा बल्कि यहां के बेरोजगार युवाओं को भी रोजगार के साधन पैदा होंगे।



Conclusion:
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