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पर्वतीय युद्ध कौशल में भारतीय सेना सर्वश्रेष्ठ, चीनी भी करते हैं तारीफ

पर्वतीय युद्ध कौशल में भारतीय सेना का कोई सानी नहीं है. चीनी भी इस मामले में भारत की खूब प्रशंसा करते हैं. हुआंग गुओझी एक पत्रिका के वरिष्ठ संपादक और चीनी विशेषज्ञ हैं. उन्होंने कहा कि वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वतीय सैन्य दल अमेरिका, रूस या यूरोप के किसी ताकतवर देश में नहीं बल्कि भारत में है.

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Published : Jun 24, 2020, 10:50 PM IST

Updated : Jun 25, 2020, 3:03 PM IST

INDIA ARMED FORCES Mountain
डिजाइन फोटो

हैदराबाद : गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़पों में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए हैं. चीन के भी कई जवानों की जान गई मगर अभी तक आंकड़ों का पता नहीं चला है. इस झड़प ने एक बार फिर से पर्वतीय युद्ध कौशल या ऊंचाई पर लड़े जाने वाले युद्ध कौशल को प्रकाश में ला दिया है. भारत का भी पर्वतीय युद्ध कौशल में एक समृद्ध इतिहास रहा है.

स्वतंत्रता से पहले रेड ईगल डिवीजन (अब 4 इन्फैंट्री डिवीजन) ने मार्च 1941 में इरीट्रिया के पहाड़ों में स्मरणीय जीत दर्ज की जब केरन में मजबूत इतालवी सेना को हराया था. इससे भी बड़ी सफलता तब मिली जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत ने जर्मन सेनाओं के खिलाफ चलाए गए इटली के अभियान में जोरदार तरीके से भाग लिया.

पहाड़ों पर भारत की कुछ प्रमुख जीत

  1. 1967 में नाथू ला-चू ला में चीन के साथ झड़पें हुईं जिसमें भारतीय वीरों ने चीनी पक्ष को भारी नुकसान पहुंचाया.
  2. 1987 में सोमडोरींग चू की घटना.
  3. सियाचिन ग्लेशियर : भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में 5,000 से अधिक मीटरों की ऊंचाई पर सैंकड़ों चौकियां स्थापित की हैं, जिसमें 6,000 से 7,000 भारतीय जवान तैनात हैं. सबसे ऊंची पोस्ट 6,749 मीटर की ऊंचाई पर है.
  4. सियाचिन ग्लेशियर में सैन्य ऑपरेशन : ऑपरेशन मेघदूत के जरिये भारत ने सियाचिन ग्लेशियर के पश्चिम में साल्टोरो रिज की ऊंचाइयों पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया.
  5. ऑपरेशन राजीव : 1987 में पाकिस्तानी सैनिकों ने बिलाफोंड-ला को पार करते हुए एक पर्वत शिखर पर कब्जा कर लिया, पाकिस्तानियों ने इसे 21,000 पोस्ट की ऊंचाई पर 'क्वाड पोस्ट' नाम दिया.
  6. सभी बाधाओं को पार करते हुए भारतीय सेना ने चुपके से बर्फ की दीवारों पर चढ़ाई करके हाथापाई के अलावा हथगोले और संगीनों की मदद से इस पोस्ट को वापस जीत लिया. पोस्ट पर कब्जा करने में बाना सिंह ने अनुकरणीय शौर्य का परिचय दिया और इस पोस्ट को बाना पोस्ट नाम दिया गया. उन्हें परम वीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था.
  7. कारगिल युद्ध 1999 : भारतीय सैनिकों और अधिकारियों ने कारगिल के द्रास में अदम्य साहस, दृढ़ता, धैर्य और बहादुरी का परिचय देते हुए कारगिल द्रास की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए पाकिस्तानियों को मार भगाया.

भारतीय सेना का माउंटेन डिवीजन

  • 1962 में चीनी सेना के हाथों पराजित होने के बाद भारतीय सेना ने खुद का पुनर्गठन और विस्तार किया.
  • गुलमर्ग के स्की स्कूल को हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल में अपग्रेड किया गया और माउंटेन डिवीजनों को स्थापित किया गया जिन्हें हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में संचालन के लिए गठित और प्रशिक्षित किया गया. इन डिवीजनों को हथियारों और उपकरणों से भी लैस किया गया. रक्षात्मक रणनीति विकसित की गई और इससे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर हमारी स्थिति बहुत मजबूत हुई.
  • भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी पर्वतीय सेना है, जिसमें 12 डिवीजन और दो लाख से अधिक सैनिक हैं.
  • चीनी विशेषज्ञ भारतीय सेना की प्रशंसा करते हैं. हुआंग गुओझी, आधुनिक हथियार पत्रिका के एक वरिष्ठ संपादक और चीनी विशेषज्ञ हैं, उन्होंने कहा कि वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वतीय सैन्य दल अमेरिक, रूस या यूरोप के किसी ताकतवर देश में नहीं बल्कि भारत में है.

पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स

  1. पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स को रक्षात्मक भूमिका में गठन करने का उद्देश्य ये था कि 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर चीन के आक्रामक व्यवहार और चीनी सेना के अतिक्रमण को रोका जाए.
  2. मई 2013 में डेपसांग क्षेत्र में चीनी घुसपैठ ने सरकार को मजबूर कर दिया कि पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स मामले में तुरंत अपनी सहमति दे दें.
  3. 2014 में इस फोर्स का पहला डिवीजन गठित हआ और इसका गठन पूर्वी सेक्टर में हुआ.
  4. पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स का मुख्यालय बनाया गया.
  5. 2017-18 में शुरू किये गए पठानकोट में दूसरे डिवीजन का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ. सरकार के पास धन की कमी के कारण इसे रोक दिया गया है.

पर्वतीय युद्ध की ट्रेनिंग के लिए भारत के प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र

  • हाई अल्टीट्यूड माउंटेन वारफेयर स्कूल :

भारतीय सेना के पास जम्मू और कश्मीर में गुलमर्ग के पास एक हाई एल्टीट्यूड माउंटेन वारफेयर स्कूल (HAWS) भी है जो दुनिया भर में अपने विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए माना जाता है.

इसे शुरुआत में एक फॉर्मेशन सिकली स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें स्कीबाजी तकनीक, पहाड़ों पर चढ़ना और आसमान में गश्त लगाना ये सब सिखाया जाता था.

आठ अप्रैल 1962 में स्कूल को ए श्रेणी में तब्दील किया गया और उसका नाम बदलकर हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल कर दिया गया.

अमेरिका, ब्रिटेन और रूस से विशेष ऑपरेशन टीमें यहां का दौरा करती रहती हैं.

एचएडब्ल्यूएस जिन सैनिकों को ट्रेनिंग देता है, उन्हें ऊंचाई और पर्वतीय युद्ध कौशल में श्रेष्ठ माना जाता है.

एचएडब्ल्यूएस से प्रशिक्षित सैनिकों का आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ होता है. सैनिकों को पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने की कला भी सिखाई जाती है ताकि वो ऊंचाई पर रह सके और हिमालय की सीमाओं की प्रभावी ढंग से रक्षा कर सकें.

  • कारगिल बैटल स्कूल :

भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर में कारगिल जिले के द्रास सेक्टर में एक कारगिल बैटल स्कूल भी स्थापित किया है, जो पहाड़ी युद्ध में सैनिकों को प्रशिक्षित करता है.

हैदराबाद : गलवान घाटी में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़पों में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए हैं. चीन के भी कई जवानों की जान गई मगर अभी तक आंकड़ों का पता नहीं चला है. इस झड़प ने एक बार फिर से पर्वतीय युद्ध कौशल या ऊंचाई पर लड़े जाने वाले युद्ध कौशल को प्रकाश में ला दिया है. भारत का भी पर्वतीय युद्ध कौशल में एक समृद्ध इतिहास रहा है.

स्वतंत्रता से पहले रेड ईगल डिवीजन (अब 4 इन्फैंट्री डिवीजन) ने मार्च 1941 में इरीट्रिया के पहाड़ों में स्मरणीय जीत दर्ज की जब केरन में मजबूत इतालवी सेना को हराया था. इससे भी बड़ी सफलता तब मिली जब दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारत ने जर्मन सेनाओं के खिलाफ चलाए गए इटली के अभियान में जोरदार तरीके से भाग लिया.

पहाड़ों पर भारत की कुछ प्रमुख जीत

  1. 1967 में नाथू ला-चू ला में चीन के साथ झड़पें हुईं जिसमें भारतीय वीरों ने चीनी पक्ष को भारी नुकसान पहुंचाया.
  2. 1987 में सोमडोरींग चू की घटना.
  3. सियाचिन ग्लेशियर : भारतीय सेना ने सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र में 5,000 से अधिक मीटरों की ऊंचाई पर सैंकड़ों चौकियां स्थापित की हैं, जिसमें 6,000 से 7,000 भारतीय जवान तैनात हैं. सबसे ऊंची पोस्ट 6,749 मीटर की ऊंचाई पर है.
  4. सियाचिन ग्लेशियर में सैन्य ऑपरेशन : ऑपरेशन मेघदूत के जरिये भारत ने सियाचिन ग्लेशियर के पश्चिम में साल्टोरो रिज की ऊंचाइयों पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लिया.
  5. ऑपरेशन राजीव : 1987 में पाकिस्तानी सैनिकों ने बिलाफोंड-ला को पार करते हुए एक पर्वत शिखर पर कब्जा कर लिया, पाकिस्तानियों ने इसे 21,000 पोस्ट की ऊंचाई पर 'क्वाड पोस्ट' नाम दिया.
  6. सभी बाधाओं को पार करते हुए भारतीय सेना ने चुपके से बर्फ की दीवारों पर चढ़ाई करके हाथापाई के अलावा हथगोले और संगीनों की मदद से इस पोस्ट को वापस जीत लिया. पोस्ट पर कब्जा करने में बाना सिंह ने अनुकरणीय शौर्य का परिचय दिया और इस पोस्ट को बाना पोस्ट नाम दिया गया. उन्हें परम वीर चक्र से भी सम्मानित किया गया था.
  7. कारगिल युद्ध 1999 : भारतीय सैनिकों और अधिकारियों ने कारगिल के द्रास में अदम्य साहस, दृढ़ता, धैर्य और बहादुरी का परिचय देते हुए कारगिल द्रास की ऊंची चोटियों पर कब्जा जमाए पाकिस्तानियों को मार भगाया.

भारतीय सेना का माउंटेन डिवीजन

  • 1962 में चीनी सेना के हाथों पराजित होने के बाद भारतीय सेना ने खुद का पुनर्गठन और विस्तार किया.
  • गुलमर्ग के स्की स्कूल को हाई एल्टीट्यूड वॉरफेयर स्कूल में अपग्रेड किया गया और माउंटेन डिवीजनों को स्थापित किया गया जिन्हें हाई एल्टीट्यूड क्षेत्रों में संचालन के लिए गठित और प्रशिक्षित किया गया. इन डिवीजनों को हथियारों और उपकरणों से भी लैस किया गया. रक्षात्मक रणनीति विकसित की गई और इससे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर हमारी स्थिति बहुत मजबूत हुई.
  • भारतीय सेना दुनिया की सबसे बड़ी पर्वतीय सेना है, जिसमें 12 डिवीजन और दो लाख से अधिक सैनिक हैं.
  • चीनी विशेषज्ञ भारतीय सेना की प्रशंसा करते हैं. हुआंग गुओझी, आधुनिक हथियार पत्रिका के एक वरिष्ठ संपादक और चीनी विशेषज्ञ हैं, उन्होंने कहा कि वर्तमान में दुनिया का सबसे बड़ा पर्वतीय सैन्य दल अमेरिक, रूस या यूरोप के किसी ताकतवर देश में नहीं बल्कि भारत में है.

पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स

  1. पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स को रक्षात्मक भूमिका में गठन करने का उद्देश्य ये था कि 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर चीन के आक्रामक व्यवहार और चीनी सेना के अतिक्रमण को रोका जाए.
  2. मई 2013 में डेपसांग क्षेत्र में चीनी घुसपैठ ने सरकार को मजबूर कर दिया कि पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स मामले में तुरंत अपनी सहमति दे दें.
  3. 2014 में इस फोर्स का पहला डिवीजन गठित हआ और इसका गठन पूर्वी सेक्टर में हुआ.
  4. पश्चिम बंगाल के पानागढ़ में पर्वतीय स्ट्राइक फोर्स का मुख्यालय बनाया गया.
  5. 2017-18 में शुरू किये गए पठानकोट में दूसरे डिवीजन का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ. सरकार के पास धन की कमी के कारण इसे रोक दिया गया है.

पर्वतीय युद्ध की ट्रेनिंग के लिए भारत के प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र

  • हाई अल्टीट्यूड माउंटेन वारफेयर स्कूल :

भारतीय सेना के पास जम्मू और कश्मीर में गुलमर्ग के पास एक हाई एल्टीट्यूड माउंटेन वारफेयर स्कूल (HAWS) भी है जो दुनिया भर में अपने विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए माना जाता है.

इसे शुरुआत में एक फॉर्मेशन सिकली स्कूल के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें स्कीबाजी तकनीक, पहाड़ों पर चढ़ना और आसमान में गश्त लगाना ये सब सिखाया जाता था.

आठ अप्रैल 1962 में स्कूल को ए श्रेणी में तब्दील किया गया और उसका नाम बदलकर हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल कर दिया गया.

अमेरिका, ब्रिटेन और रूस से विशेष ऑपरेशन टीमें यहां का दौरा करती रहती हैं.

एचएडब्ल्यूएस जिन सैनिकों को ट्रेनिंग देता है, उन्हें ऊंचाई और पर्वतीय युद्ध कौशल में श्रेष्ठ माना जाता है.

एचएडब्ल्यूएस से प्रशिक्षित सैनिकों का आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ होता है. सैनिकों को पर्यावरण के साथ तालमेल बिठाने की कला भी सिखाई जाती है ताकि वो ऊंचाई पर रह सके और हिमालय की सीमाओं की प्रभावी ढंग से रक्षा कर सकें.

  • कारगिल बैटल स्कूल :

भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर में कारगिल जिले के द्रास सेक्टर में एक कारगिल बैटल स्कूल भी स्थापित किया है, जो पहाड़ी युद्ध में सैनिकों को प्रशिक्षित करता है.

Last Updated : Jun 25, 2020, 3:03 PM IST
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